युवा कवि। कविता संग्रह ‘समुद्र से लौटेंगे रेत के घर’
1. बचे रहते हैं शब्द
बहुत आसान होता है
बंदूक की किसी गोली के लिए
सर को छेद देना
या फाड़ देना देह के किसी हिस्से को
लेकिन शब्द गोली की पहुँच से
हमेशा रह जाते हैं बहुत दूर
शब्द चुन ही लेते हैं हर बार अपने लिए
किसी न किसी दुस्साहसी को
और मौजूद रहते हैं हमारे बीच
हमारे वजूद को बचाते हुए
गोली चलानेवाला हाथ
और गोली चलने के पीछेवाला हाथ
दोनों नहीं जान पाते कभी
उस बारूद के बारे में
जो देह के बाद भी सुलगती रहती है हमेशा
शब्द बचे ही रहते हैं
हथियार की तरह
कुछ ज़िद्दी किस्म के लोगों के पास
जो नहीं जानते समझौते का मतलब
शब्द इसी तरह बचे रहते हैं दुनिया में
तमाम गोलियों और तोपों के बीच
उम्मीद की तरह ।
2. समय के सफ़ेद टुकड़े पर दो हर्फ़ :
पहला हर्फ़
नदी कुछ ही दूर थी
और उतनी ही दूर था चांद भी
बहुत दूर बज रहा था कोई गीत
और घुल रही थी हमारे बीच एक चुप्पी
हम गुज़रना चाहते थे
बिना हताहत हुए
अपने-अपने अतीत से होकर
तुम उतरना चाहती थी मेरे ढलानों पर
पहाड़ी झरने की तरह तेज़
मैं धुएँ की तरह चढ़ना चाहता था
तुम्हारे पहाड़ पर धीरे-धीरे
रात की पगडंडी पर चलते हुए
दाखिल हो रहे थे हम
एक-दूसरे के जंगल में।
दूसरा हर्फ़
शाम निढाल होकर
उतर आती है तुम्हारे कंधों पर
मैं एक ठहरी हुई नदी में
छोड़ आता हूँ कुछ स्पर्श
अंधेरे में रोप देती हो तुम
कुछ अनकहे शब्द
हम देर तक रुके रहना चाहते हैं
समय के एक छोटे से सफ़ेद टुकड़े पर।
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