युवा कवि। विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित। संप्रति अध्यापन।

ईर्ष्या का सृजन

जब हैसियत
सपने देखने की भी नहीं रही
तब ईर्ष्या का सृजन नहीं हुआ
ईर्ष्या का सृजन तब हुआ
जब हम नहीं जान पाए
हमारी सपने देखने वाली रातें
कहाँ और कैसे चोरी हो गईं?

पानी और रेत

जिंदगी में कभी ऐसा वक्त आता है
जब परिवार पानी की तरह लगने लगता है
और हम रेत होने लगते हैं

हमारी जिंदगी में यह वक्त
तुम्हारे आने के बाद आया

हम कभी-कभी यह तय नहीं कर पाते
कब कौन रेत हो जाता है, कौन पानी?

नाव

मुझे पानी ने नहीं
वक्त ने तैरना सिखाया
तब भी मेरे अंदर कोई नाव नहीं है

अगर होती
तो बच जाता
उथले समय में डूबने से।

न बता पाने का संकोच

उस दौर में
जबकि मंच लगाकर
प्रतिभाओं को ढूंढा जा रहा था
हम वहां तक नहीं पहुंच सके

न उनमें से
किसी ने हमसे आकर पूछा
हम किस क़ाबिल हैं।

कमज़ोर पंक्तियां

कभी
कुछ कमजोर पंक्तियों
की भी
जरूरत होती है
ताकि संभावना बची रहे
कि कुछ
बेहतर किया जाना
अभी भी बाकी है।

संपर्क : आर्य समाज (अनारकली), मंदिर मार्ग, नई (निकटथाना मंदिर मार्ग), दिल्ली– 110001मो. 9971617509