(1878-1937) कथाकार, नाटककार और कवि। अपने ज्वलंत, प्रकृतिपरक और आधुनिकतावादी गद्य के लिए प्रसिद्ध। उन्होंने प्रेम पागलपन और मौत की कहानियाँ’, ‘जंगली’, ‘जंगल की कहानियांलिखीं।

एक बार की बात है बुएनोस आयरेस1  में एक आदमी रहता था, वह बहुत खुश था क्योंकि वह एक स्वस्थ और मेहनती आदमी था। लेकिन एक दिन वह बीमार हो गया। डॉक्टरों ने उसे कहा कि केवल ग्रामीण क्षेत्र जाने से ही वह ठीक हो सकता है। अपने छोटे भाई के पालन पोषण की जिम्मेदारी उसपर थी जिस कारण वह जाना नहीं चाहता था, पर दिन- प्रतिदिन बीमार होता जा रहा था।

तब उसके एक दोस्त ने, जो चिड़ियाघर के निदेशक थे, उससे कहा, ‘आप मेरे दोस्त हो, आप एक अच्छे और मेहनती आदमी हो। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप पहाड़ पर जाकर रहें, खुली हवा में खूब सारा व्यायाम करें ताकि आपकी सेहत अच्छी हो जाए। चूंकि आपका बंदूक से निशाना बहुत अच्छा है, इसलिए जंगली जानवरों का शिकार करके मेरे लिए खाल ले आएं और मैं आपको पहले से पैसे दे दूंगा ताकि आपके छोटे भाई अच्छी तरह से जीवनयापन कर सकें।’ बीमार आदमी ने स्वीकार कर लिया और बहुत दूर मिसियोनेस (अर्जेंटाइना एक राज्य) से भी दूर पहाड़ों में रहने चला गया। यहां बहुत गर्मी थी जो उसके लिए अच्छी थी।

वह जंगल में अकेला रहता और खाना खुद ही बनाता। बंदूक से शिकार करके पहाड़ों की पक्षियों और कीड़ों को खाता और फल भी खाता। पेड़ों के छांव के नीचे सोता और जब मौसम खराब होता, तो पांच मिनट में ताड़ के पत्तों से एक झोपड़ी बना लेता, जहां बैठकर धूम्रपान करता रहता। वह हवा और बारिश से गरजते जंगल के बीच में बहुत खुश रहता था।

उसने जानवरों की खालों का एक गठ्ठा बनाया और अपने कंधे पर उठा लिया। कई जहरीले नागों को भी जीवित पकड़ा और उन सबको एक बड़े टिन के अंदर रखा, क्योंकि वहां पर मिट्टी के तेल के डिब्बे जैसे बहुत बड़े- बड़े कनस्तर होते थे। उस आदमी की सेहत फिर से अच्छी हो गई, वह ताकतवर हो गया और उसकी भूख भी बढ़ गई।

उसने दो दिनों से कुछ भी शिकार नहीं किया था, जिस कारण वह बहुत भूखा था। उसने एक बड़े लैगून के किनारे एक विशाल बाघ को देखा जो अपने पंजों को अंदर दबाए हुए नाखूनों से मांस झपट कर खाना चाहता था। आदमी को देखकर बाघ ने भयानक दहाड़ लगाई और झपटा। लेकिन शिकारी ने, जिसका निशाना बहुत सटीक था, उसकी आंखों के बीच निशाना साधा और उसका सिर चकनाचूर कर दिया। उसके बाद, उसने खाल निकाला, इतना बड़ा कि अकेले ही एक कमरे के लिए गलीचे के रूप में काम आ सकता था।

-अब मैं कछुआ खाने जा रहा हूँ, जो बहुत स्वादिष्ट मांस है, आदमी ने कहा।

लेकिन जब वह कछुआ के पास पहुंचा, तो शिकारी ने देखा कि वह पहले से ही घायल थी और उसका सिर उसकी गर्दन से लगभग अलग हो रहा था। सिर लगभग मांस के दो या तीन धागों से लटका हुआ था।

भूख लगने के बावजूद, आदमी को बेचारी कछुआ पर दया आ गई और उसे रस्सी से खींचकर अपने तंबू में ले गया। उसके सिर पर कपड़े की पट्टी बांध दी, जो उसने अपनी कमीज से ली थी। क्योंकि उसके पास केवल एक ही कमीज थी, आदमी के पास कोई और कपड़ा नहीं था। कछुआ विशाल था, एक कुर्सी जितना लंबा, वजन एक आदमी जैसा, फिर भी इसने खींच लिया था ।

कछुआ एक कोने में पड़ी रही और उसने वहीं बिना हिले-डुले कई दिन गुजार दिए। 

आदमी हर दिन इलाज करता, फिर हाथ से उसकी पीठ थपथपाता था।

आखिरकार कछुआ ठीक हो गई। लेकिन आदमी फिर बीमार हो गया। बुखार से उसके पूरे शरीर में दर्द हो रहा था। उसके बाद वह फिर उठ नहीं सका। ज्वर लगातार बढ़ता जा रहा था और अत्यधिक प्यास से उसका गला सूखने लगता था। आदमी को एहसास हुआ कि वह गंभीर रूप से बीमार है,  अकेले में भी जोर-जोर से बोलने लगा क्योंकि उसे तेज़ बुखार था-

 -मैं मर जाऊंगा! आदमी ने कहा- मैं अकेला हूँ, मैं अब उठ नहीं सकता और मेरे पास मुझे पानी पिलाने वाला भी कोई नहीं है। मैं यहीं भूखा-प्यासा मर जाऊंगा!

और जल्द ही बुखार और अधिक बढ़ गया। इससे उसने होश खो दिया। लेकिन कछुए ने उसकी बात सुन ली। वह समझ गई कि शिकारी क्या कह रहा है। उसने तब सोचा :

-आदमी ने दूसरी बार भी मुझे नहीं खाया, भले ही वह बहुत भूखा था। उसने मेरी देखभाल की। उसने मुझे ठीक कर दिया। अब मैं इसका ख्याल रखूंगी।

फिर वह लैगून में गई, एक छोटे से कछुए के खोल की तलाश की और उसे रेत और राख से अच्छी तरह से साफ करने के बाद, उसने उसमें पानी भर दिया और उस आदमी को पीने के लिए दिया, जो अपने कंबल पर लेटा हुआ, प्यास से मर रहा था। कछुए ने तुरंत स्वादिष्ट जड़ों और कोमल खरपतवारों की तलाश शुरू कर दी, जिन्हें वह आदमी खिला सके। आदमी ने यह सोचे बिना खाया कि उसे खाना किसने दिया है, क्योंकि वह बुखार में बेसुध था और कुछ समझ नहीं पा रहा था।

हर सुबह, कछुआ आदमी को देने के लिए अधिक समृद्ध जड़ों की तलाश में पहाड़ों पर चढ़ती और वह फल के लिए पेड़ पर न चढ़ पाने का अफसोस करती।

शिकारी कई दिनों तक इसी तरह खाता रहा, बिना यह जाने कि उसे भोजन किसने दिया।

एक दिन उसे होश आया। उसने हर तरफ देखा, देखा कि वह अकेला है, क्योंकि वहां केवल वह और कछुआ है, जो एक जानवर है। उसने फिर जोर से कहा :

-मैं जंगल में अकेला हूँ, बुखार फिर से लौटने वाला है। मैं यहीं मरने वाला हूँ, क्योंकि केवल बुएनोस आयरेस में ही मुझे ठीक करने के उपाय हैं। लेकिन अफसोस कि मैं कभी नहीं जा पाऊंगा और यहीं मर जाऊंगा!

और जैसा कि उसने कहा था, उस दोपहर बुखार फिर से लौट आया, पहले से भी अधिक तेज और वह फिर से बेसुध हो गया। लेकिन इस बार भी कछुए ने यह सुन लिया था। उसने खुद से कहा–  अगर पहाड़ पर रहने से यह मर जाएगा, क्योंकि कोई और उपाय नहीं है तो मुझे इसे बुएनोस आयरेस ले जाना होगा!

यह कहकर, उसने सुंदर और मजबूत लताएं काटीं रस्सियां जैसी। आदमी को बड़ी सावधानी से अपनी पीठ पर लिटा लिया और लताओं से अच्छी तरह पकड़कर रखा, ताकि वह गिर न सके। उसने बंदूक, खाल और सांपों के कनस्तर को कई प्रयासों के बाद उचित व्यवस्था करते हुए, शिकारी को परेशान किए बिना अपनी यात्रा शुरू की।

कछुआ चलती रही, चलती रही, चलती रही, इस तरह दिन-रात चलती रही। उसने पहाड़ों, खेतों को पार किया, नदियों को तैरकर पार किया और दलदल को पार किया जिसमें वह लगभग दफन हो गई मगर उसने हमेशा मरते हुए आदमी को अपने ऊपर रखा।

आठ या दस घंटे चलने के बाद वह रुकती, गांठें खोलती और आदमी को बहुत सावधानी से ऐसी जगह पर लिटा देती जहां बहुत सूखी घास होती।

फिर वह पानी और कोमल जड़ें ढूंढ़ने जाती और बीमार आदमी को खाने देती। उसने भी खाया हालांकि वह इतनी थकी होती कि उसे सोना भारी लगता था। कभी-कभी उसे धूप में चलना पड़ता था। चूंकि गर्मी का मौसम था, शिकारी को कई बार ऐसा बुखार हो जाता कि वह बेसुध हो जाता और प्यास से मर रहा होता। वह चिल्लाता- पानी! पानी! हर बार कछुए को उसे पानी पिलाना पड़ता था।

वह कई दिनों तक, सप्ताह-दर-सप्ताह इसी प्रकार चलती रही। वे बुएनोस आयरेस के करीब पहुंच रहे थे। लेकिन हर दिन कछुआ कमजोर होती जा रही थी। हर दिन उसकी ताकत कम होती जा रही थी, हालांकि उसने कोई शिकायत नहीं की। कभी-कभी वह पूरी तरह से शक्तिहीन होकर वहीं पड़ी रहती और आदमी जब आधा होश में आ जाता था, वह जोर-जोर से कहता था-

-मैं मर जाऊंगा, मैं और अधिक बीमार होता जा रहा हूँ, और केवल बुएनोस आयरेस में ही मैं ठीक हो सकता हूँ। लेकिन मैं यहीं पहाड़ों में अकेले मर जाऊंगा!

उस आदमी को लग रहा था कि वह अभी भी झोपड़ी में है, क्योंकि उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। कछुआ फिर उठी। फिर से चल पड़ी। एक रोज संध्या में, उस कछुए की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया। वह अपनी क्षमता की अंतिम सीमा तक पहुंच गई। अब उससे और बर्दाश्त नहीं होता लग रहा था। उसने वहां जल्दी पहुंचने के लिए एक सप्ताह तक खाना तक नहीं खाया था। उसमें कुछ भी ताकत नहीं बची थी।

जब रात पूरी तरह से घिर गई, उसने क्षितिज पर दूर, एक रोशनी देखी, एक चमक, जिसने आकाश को रोशन कर दिया मगर उसे नहीं पता था कि वह क्या था।

वह लगातार दुर्बल महसूस करने लगी थी।  फिर उसने शिकारी के साथ ही मरने के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं। वह यह सोचकर दुखी थी कि वह उस आदमी को बचाने में सफल नहीं हो पाई, जिसने उसके साथ अच्छा व्यवहार किया था। यद्यपि वह पहले से बुएनोस आयरेस में ही थी, मगर उसे यह नहीं पता था। आकाश में उसने जो रोशनी देखी वह शहर की चमक थी और जब वह अपनी अत्यंत साहसिक यात्रा के अंतिम चरण पर थी, तब वह मृत्यु से हारती लग रही थी।

एक छोटे से शहरी चूहे पेरेज को मृत्यु के द्वार पर खड़े हुए दो यात्री दिखे।

-क्या कछुआ है! चूहे ने कहा- मैंने इतना बड़ा कछुआ कभी नहीं देखा है! और तुम जो पीछे रखे हुए को ले जा रहे हो, वह क्या है? क्या जलाऊ लकड़ी है?

-नहीं, कछुए ने उदास होकर उत्तर दिया- एक आदमी है!

-तुम इस आदमी के साथ कहां जा रही हो? जिज्ञासु चूहे ने विस्मय से पूछा।

-मैं जा रही हूँ… मैं जा रही हूँ…मैं बुएनोस आयरेस जाना चाहती थी! बेचारी कछुए ने इतनी धीमी आवाज में उत्तर दिया कि उसे मुश्किल से सुना जा सकता था। फिर कछुआ ने कहा- लेकिन हम लोग यहीं मरने जा रहे हैं क्योंकि मैं वहां कभी नहीं पहुंच पाऊंगी! 

-आह, मूर्ख… मूर्ख! छोटे चूहे ने हँसते हुए कहा- मैंने कभी मूर्ख कछुआ नहीं देखा!

-अरे आप बुएनोस आयरेस में पहले ही आ चुके हैं! वह रोशनी जो आप वहां देख रहे हैं वह बुएनोस आयरेस है।

यह सुनकर कछुए को बहुत ताकत महसूस हुई, क्योंकि उसके पास अभी भी शिकारी को बचाने का समय था और वह तुरंत फिर चल पड़ी।

अभी भी सवेरा था, जब चिड़ियाघर के निदेशक ने एक मैला और बेहद पतला कछुआ आते देखा, जिसके साथ एक आदमी था जो उसकी पीठ पर पड़ा हुआ मर रहा था और लताओं से बंधा हुआ था ताकि वह गिर न जाए। निदेशक ने अपने दोस्त को पहचान लिया। वह इलाज ढूंढ़ने के लिए तुरंत दौड़ा, जिससे शिकारी तुरंत ठीक हो गया।

जब शिकारी को पता चला कि कछुए ने उसे कैसे बचाया है, कैसे उपचार के लिए तीन सौ मील की यात्रा की है, तो वह उससे अलग नहीं होना चाहता था। चूंकि वह उसे अपने घर में नहीं रख सकता था, क्योंकि वह बहुत छोटा था, चिड़ियाघर के निदेशक ने उसे बगीचे में रखने का और उसकी देखभाल भी करने का वादा किया जैसे कि वह उसकी अपनी बेटी हो। और वैसा ही हुआ।

कछुआ अपने प्रति प्यार से खुश और संतुष्ट होकर, बगीचे में घूमती है। यह वही विशाल कछुआ है जिसे हम हर दिन बंदर के पिंजरे के आसपास घास खाते हुए देखते हैं। शिकारी हर दोपहर उससे मिलने आता है और वह अपने मित्र को दूर से पहचान लेती है। कुछ घंटे वे एकसाथ बिताते हैं। वह कभी नहीं चाहती कि आदमी उसकी पीठ पर प्यार भरी थपकी दिए बिना किसी दिन भी जाए।

 

 

 

अनुवादक : शाईसता प्रवीण

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधार्थी।  लैटिन अमेरिकी साहित्य में शैली अध्ययन, लिंग अध्ययन, स्मृति और पहचान इनके अध्ययन के क्षेत्र हैं। संप्रति मैक्सिकन ऑटोफिक्शन लेखन पर काम।

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