पापा मुझे एक साइकिल खरीद दीजिए, स्कूल से पैदल आने-जाने में काफी थक जाता हूँ।

पिता ने कहा- ठीक है। एक दो महीने रुक जाओ बेटा। जरूरत के हिसाब से साइकिल मेरे भी काम आ जाएगी।

मजदूरी के पैसे में से बचाकर खदेरन रोज २० रुपये गुलक में डालने लगा। करीब चार महीने में लगभग पचीस सौ रुपये जमा हो गए।

पता चला, मुहल्ले के मास्टर साहब को एक पुरानी साइकिल बेचनी है।

खदेरन ने मास्टर साहब से इतने में सेकंड हैंड साइकिल ले ली।

उसके बाद कुछ रुपये लगाकर उसकी रिपेयरिंग करवाई।

साइकिल घर ले आया।

खदेरन का बेटा सोनू बेसब्री से साइकिल का इंतजार कर रहा है।

अचानक वह पापा को साइकिल से आते देखकर चहकने लगा।

मां-बेटा दोनों ने साइकिल पर फूल चढ़ाए। आरती उतारी। साइकिल को श्रद्धा के साथ मां-बेटे ने प्रणाम किया।

अगल-बगल के लोग यह देखकर हँसते हुए बातें कर रहे थे, ‘लगता है, इसके घर में साइकिल नहीं मर्सिडीज कार आई है!’

आदर्शनगर, हसपुरा, औरंगाबाद, बिहार८२४१२० मो.९९३४००३५००

Painting : World Art Community