हिंदी प्रस्तुति : बालकृष्ण काबरा ‘एतेश’ कवि और अनुवादक।अद्यतन कविता संग्रह : ‘छिपेगा कुछ नहीं यहां’।विश्व काव्यों के अनुवादों के दो संग्रह ‘स्वतंत्रता जैसे शब्द’ और ‘जब उतरेगी सांझ शांतिमय’ और विश्व कथाओं और लेखों का संग्रह प्रकाशित ‘ये झरोखे उजालों के’। |
शरीफा पासुन
अफगानिस्तान की महिला कथाकार।२०२० में ‘डिसीसन’ नाम से प्रकाशित यह कहानी अफगानिस्तान के तालिबानी नियंत्रण के पहले लिखी गई थी।यह १९८० के दशक में सोवियत–अफगान युद्ध के दौरान की एक घटना का बयान करती है।शायद सुरक्षा कारणों से शरीफा पासुन का फोटो और परिचय उपलब्ध नहीं है।
पश्तो भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद : ज़रघुना कारगर
सांगा ने अलमारी से अपना स्कर्ट और जैकेट सूट निकाला।कपड़े पहनने के बाद उसने अपने को थ्री-पीस आईने में देखा।अपने बालों को संवारा और खुद को फिर से निहारा।उसने देखा कि वह अच्छी लग रही थी।उसके लंबे केश कंधों को छू रहे थे और खिड़की से आ रही धूप से वे चमक रहे थे।
ड्रेसिंग टेबल पर पड़े पेन को उसने अपने हैंडबैग में रखा।फिर अपनी घड़ी की ओर देखा।शाम के पांच बज रहे थे।कार का हॉर्न सुनाई देते ही उसने अपने दूसरी मंजिल के अपार्टमेंट की खिड़की से नीचे देखा।बिल्डिंग की सीढ़ियों के पास स्लेटी रंग की कार उसका इंतजार कर रही थी।ड्राइवर ने ऊपर निगाह कर उसे देखा और हॉर्न बजाना बंद कर दिया।सांगा ने तुरंत हैंडबैग अपने कंधे पर लटकाया और कमरे से बाहर आ गई।गलियारे में आकर उसने आवाज दी, ‘मां कार आ गई है।मैं जा रही हूँ।बाई!’
उसकी मां दौड़कर गलियारे में आ गई।हाथ में चाकू था और आस्तीनें चढ़ी हुई थीं।वह प्याज काट रही थी, जिससे उसकी आंखों में आंसू थे।
सांगा ने पीछे मुड़कर कहा, ‘घमाई का ध्यान रखिएगा।मैं नहीं चाहती कि वह मुझे जाते हुए देखे -वह बालकनी में अपनी बाइक चला रहा है।’
वह तेजी से नीचे उतरी।उसकी मां उसके कार में बैठने तक उसे देखती रही और उसकी सुरक्षा की कामना की।फिर दरवाजा बंद कर लिया।
सांगा नेशनल रेडियो और टेलीविजन मुख्यालय पहुंची, जहां वह शाम को काम करती थी।दिन में वह काबुल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करती थी।
वह सीधे मेक-अप रूम में चली गई, जो बिल्डिंग के बाईं ओर की पहली मंजिल के गलियारे के अंत में था।कमरे में मेक-अप करने वाली महिला मरियम मौजूद थी।वह लंबी थी और उसने अपने घुंघराले बालों को भूरे रंग से रंग लिया था।उसका चश्मा माथे पर ऊपर सरकाया हुआ था, जिसकी डोरी पीछे की ओर लटकी हुई थी।वह बीच वाले शीशे में दूसरे न्यूजरीडर के घुंघराले बाल ठीक कर रही थी।
सांगा ने बेसिन के सामने जाकर गर्म पानी से अपना चेहरा धोया, फिर शीशे में देखते हुए पेपर नैप्किन से उसे सुखाया।मरियम जिस महिला के बाल संवार रही थी, उससे पूछा, ‘क्या मैं आपका मेक-अप जारी रखूं या अब आप खुद कर लेंगी?’
सात बजे के न्यूजरीडर ने कहा, ‘अब आपको सांगा के बाल ठीक करने होंगे।ज्यादा समय नहीं है—- मैं अब अपना मेक-अप खुद कर लूंगी।’
सांगा सात बजे वाली न्यूजरीडर के पास बैठ गई और मरियम उसके पास आ गई।उसने सांगा के मुलायम बालों को छुआ और उसके पहनावे की जांच की।
‘अच्छी बात है कि आपने शालीन कपड़े पहने हैं।’
सांगा को मरियम की यह बात पसंद नहीं आई।वह कहना चाहती थी कि वह हमेशा ही शालीन और माकूल कपड़े पहनती है, तभी उसी समय गगनभेदी आवाज के साथ रॉकेट विस्फोट हुआ और वे सभी घबरा गए।सात बजे वाली न्यूजरीडर ने कहा, ‘लगता है कि यह कहीं पास में ही हुआ है।’
मरियम ने कहा, ‘ख़ुदा हमारी हिफ़ाज़त करें।उम्मीद करती हूँ कि और हमले न हों।’
सांगा ने मरियम की ओर देखते हुए कहा, ‘यदि तुम मेरा मेक-अप और बाल संवारने का काम जल्दी से कर दो, तो तुम शीघ्र ही घर जा सकोगी।मुझे तो यहां देर तक रुकना होगा।’
यह १९८५ का साल था।विरोधी पक्ष अफगानी सेना से लड़ने और सरकारी इमारतों व संस्थानों को निशाना बनाते हुए रॉकेट दागने में व्यस्त था।
सांगा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।आते समय उसने अपने दो साल के बेटे को चूमकर बाई भी नहीं किया था, क्योंकि ऐसा करने पर घमई रोता और उसके साथ जाने की जिद करता।वह उसे काम पर नहीं ले जा सकती थी, इसीलिए वह सामान्यत: उसे बिना बताए ही घर से निकल जाती थी।
मरियम गुस्से से फूट पड़ी, ‘कैसा देश है यह? वे हमें चैन से जीने भी नहीं देते।ऐसी हालत में हम कैसे रहें और कैसे काम करें?’
शाम के साढ़े आठ बज रहे थे।टेलीफोन बजा- उन दिनों ऑफिसों में तार वाले फोन हुआ करते थे।मरियम ने फोन उठाकर संदेश सुना और सिर हिलाकर ‘हाँ’ कहा।उसने सात बजे वाली न्यूजरीडर से कहा, ‘वे तुम्हें न्यूजरूम में बुला रहे हैं।जल्दी करो।’
उस समय भी रेडियो और टेलीविजन महत्वपूर्ण संस्थान थे।न्यूजरूम में नेताओं, कैबिनेट मंत्रियों और उनके कार्यों के बारे में समाचार तैयार किए जाते थे, साथ ही विरोधियों से लड़ रही सेना की जीत की भी रिपोर्टिंग की जाती थी।प्रसारण के अंत में कुछ अंतरराष्ट्रीय समाचार दिए जाते थे।उन दिनों देश में केवल एक टीवी चैनल था, जो काबुल शहर से सीधा प्रसारण करता था।
न्यूजरीडर ने तुरंत अपने हैंडबैग से पेन निकाला, एक बार फिर से खुद को आईने में देखा, होठों पर लाल लिप्स्टिक की एक और परत लगाई और जल्दी से मेक-अप रूम से निकल गई।जैसे ही उसने दरवाजा बंद किया एक और रॉकेट से हमला हुआ।मरियम घबरा रही थी।अवश्य ही यह हमला आज लगातार चलेगा, और भी कई रॉकेट गिरेंगे।
सांगा को इस बात की चिंता थी कि मरियम कहीं उसका मेक-अप किए बिना ही न चली जाए।टीवी पर आने से पहले महिला न्यूजरीडर हमेशा मेक-अप करवाती थीं।मरियम ने धातु की कंघी उठाई, सांगा के बालों को कई भागों में बांटा और हर भाग को कर्ल किया।फिर सांगा बाल सुखाने वाले हुड के नीचे बैठ गई, उसके बालों से गर्म हवा बहने लगी।
थोड़ी ही देर में सात बजे वाली न्यूजरीडर ने अपना काम पूरा कर अपना हैंडबैग लेने के लिए मेक-अप रूम का दरवाजा खोला।एक कार उसे घर ले जाने के लिए बाहर इंतजार कर रही थी।मरियम ने झट से कहा, ‘मैं भी तुम्हारे साथ जाना चाहती हूँ।हमारे घर तो एक ही तरफ हैं।’
सांगा कमरे में अकेली थी।खिड़की से बाहर उसने देखा कि अंधेरा पसर चुका था।अकेले रहना उसे पसंद नहीं था और वह न्यूजरूम चली गई।सबसे ऊपर की ओर संपादक की डेस्क थी।वह सामान्यत: अपने आठ घंटे की शिफ्ट के बाद भी वहां रुकता था।यह एक महत्वपूर्ण ऑफिस था और संपादक से लेकर रिपोर्टरों, प्रोड्यूसरों और सहायक स्टॉफ तक सभी को ओवरटाइम का भुगतान किया जाता था।
न्यूजरूम में प्रवेश करते ही सांगा ने अपने सहयोगियों का अभिवादन किया और सीधे ही न्यूजरूम के बीच में रखी लंबी डेस्क पर चली गई।उसके एक सहकर्मी ने बताया कि उसके लिए सभी नोट्स अभी तैयार नहीं हैं, पर जो तैयार हो चुके हैं उन्हें वह ले जा सकती है।सांगा स्क्रिप्ट की जांच करने और इन्हें जोर-जोर से पढ़ने में व्यस्त हो गई, तभी एक और सीटी की आवाज के साथ बड़ा धमाका हुआ।इस बार रॉकेट नेशनल रेडियो और टीवी मुख्यालय के पीछे नवनिर्मित प्रौद्योगिकी भवन से टकराया।धमाका इतना जोरदार था कि न्यूजरूम की खिड़कियां क्षत-विक्षत हो गईं।एक तेज हवा भीतर तक चली आई, शरद ऋतु चल रही थी पर मौसम ठंडा था।किसी ने दरवाजा खोला और कहा, ‘सब के सब निचली मंजिल पर चले जाएं! संभव है कि और भी रॉकेट टकराएं।’
सभी घबराकर अपनी-अपनी सीट छोड़कर चले गए।अधिकांश कर्मी अपने साथ अपने पेन और कागजात ले गए, लेकिन सांगा के नोट्स टेबल पर छूट गए।किसी ने पास आकर उसके कान में कहा, ‘डरो मत, सब ठीक हो जाएगा।’
सांगा ने कहा, ‘मैंने कई रॉकेट देखे हैं।वे रोज ही गिरते हैं।मैं रॉकेट से नहीं डरती, मैं खुदा से डरती हूँ।’
जैसे ही उसने अपना वाक्य पूरा किया, एक और रॉकेट पास के प्रशासनिक भवन से टकराते हुए गिरा।न्यूजरूम की खिडकी से नीचे देखने पर उस भवन की छत दिखाई देती है।सांगा जैसे ही न्यूजरूम के दरवाजे तक पहुंची, एक बम का टुकड़ा उस कुर्सी से टकराया जहां वह कुछ सेकंड पहले ही बैठी थी।
अब तक सब जा चुके थे।सांगा जल्दी से गलियारे में आ गई, एक गहरी सांस ली और सीढ़ियों से नीचे की ओर भागी और गिरते-गिरते बची।आठ बजने में पांच मिनट बाकी थे और उसे लाइव स्टूडियो में जाना था।
स्टूडियो में प्रवेश करने के पहले उसने अपने जूते उतार दिए और स्टील की अलमारी में रखे सैंडल पहन लिए।स्टूडियो प्रभारीगण नहीं चाहते थे कि बाहर की धूल भीतर आए और उपकरणों को नुकसान पहुंचे।सांगा अपने नोट्स न्यूजरूम में छोड़ आई थी और खाली हाथ थी।वह स्टूडियो के भीतर गई और लाइटों की गर्माहट महसूस करते हुए बैठ गई।संपादक स्क्रिप्ट लेकर आ गया था और इसे सांगा को दे दिया।जैसे ही सांगा ने स्क्रिप्ट उठाई, उसने अपने सामने मॉनिटर पर अपना चेहरा देखा।उसे न्यूज लाइव होने वाली सिग्नेचर-ट्यून सुनाई दी।उसने न्यूज बुलेटिन पढ़ा और समय पर समाप्त किया।स्टूडियो साउंडप्रूफ था, वहां बाहर के धमाके की कोई भी आवाज नहीं पहुंच सकती थी।
सांगा अपने मेक-अप और संवरे हुए बालों में रेडियो और टीवी बिल्डिंग के सामने इंतजार कर रही थी।अन्य कर्मचारी भी समूहों में बिल्डिंग से बाहर निकल रहे थे, जहां बड़ी और छोटी कारें उन्हें घर ले जाने के लिए प्रतीक्षा कर रही थीं।सभी चिंतित दिखाई दे रहे थे।कार की तरफ बढ़ते हुए कई कर्मचारी अपना सिर नीचा कर चल रहे थे, मानो उस तरह चलने से वे रॉकेट से बच जाएंगे।
एक ड्राइवर ने सांगा से जल्दी से कार में बैठने के लिए कहा।जैसे ही वह अंदर बैठी, ड्राइवर थर्ड मैक्रोयान की ओर बढ़ा, जहां १९५० और ६० के दशक में रूसियों द्वारा बनाए गए आवासीय ब्लॉक थे।पहले चौराहे पर पहुंचने से पहले एक रॉकेट उनके सामने गिरा।सांगा का दिल तेजी से धड़कने लगा।उसे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की चीखें सुनाई दे रही थीं।चारों ओर दहशत और अफरातफरी का महौल था।उसने खुद से वादा किया कि इस बार यदि वह घर सुरक्षित पहुंच गई तो वह यह जॉब छोड़ देगी।
उसने पहले भी कई बार नौकरी छोड़ने का मन बना लिया था, लेकिन हर बार उसने सोचा कि काम के बिना जीवन कठिन हो जाएगा।यह उसे मृत्यु के समान लगता था।
जैसे ही वे दूसरे चौराहे के पास पहुंचे, एक और रॉकेट उनके पास गिरा।यह कार के बाजू से गुजरा और चौराहे के किनारे पर जा गिरा।ड्राइवर और सांगा दोनों ने अपने सिरों को झुका लिया।डरे–घबराए ड्राइवर से कार का नियंत्रण छूट–सा गया।उसने कार थोड़ी देर रोकी और फिर चल पड़ा।
अब कार मैक्रोयान इलाके के एक भाग में पहुंच चुकी थी।रास्ते में उन्होंने घायल लोगों को चीखते और मदद के लिए पुकारते सुना, पर कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं बढ़ा।
अंतत: सांगा अपने घर पहुंच गई।रात के नौ बज चुके थे।वह जल्दी से अपने अपार्टमेंट में गई और जोर से दरवाजा खटखटाया, लेकिन दरवाजा बंद नहीं था।उसकी मां काफी देर से दरवाजे के पीछे खड़ी उसके लौटने का इंतजार कर रही थी।जैसे ही उसने सांगा के लिए दरवाजा खोला, उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े, जिन्हें वह रोके रखी थी।
सांगा सीधे अपने कमरे में गई, उसके पीछे-पीछे उसकी मां थी।वह घमाई के बिस्तर के पास गई, वह गहरी नींद में था।उसने उसे धीरे से चूमा, उसके बालों को छुआ और एक गहरी सांस लेते हुए बिस्तर पर बैठ गई।उसकी मां के चेहरे में अब मुस्कान थी।सांगा ने उससे पूछा, ‘मां, क्या घमाई रॉकेट से डर गया था?’
‘नहीं, वह सो रहा था और बिस्तर में हिला तक नहीं’, उसने कहा।
‘मैं चिंतित थी कि कहीं कोई रॉकेट हमारे ब्लॉक के पास तो नहीं गिरा।’
मां ध्यान से सुन रही थी, तभी सांगा ने बताया कि आज वह जहां भी गई, रॉकेट उसका पीछा करते रहे।मैंने यह अपनी आंखों से देखा।मैं जब कुर्सी से उठकर न्यूजरूम के दरवाजे तक भी नहीं पहुंची थी, तभी एक रॉकेट गिरा और बम का एक टुकड़ा उसी कुर्सी से टकराया।यह बस कुछ ही क्षणों की बात थी।जब मैंने पीछे मुड़कर देखा तो कुर्सी पूरी तरह से टूटकर नष्ट हो गई थी।
उसकी मां डर से चीख पड़ी।उसका रोना नहीं रुक रहा था।उसकी आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी।वह अपनी बेटी के पास गई, उसे गले लगाया और फिर उसे चूमा।सांगा को उसकी बाहों में सुकून मिला।उसकी मां ने दुपट्टे के किनारे से अपने आंसू पोंछे।वह कमरे से कुछ सेकंड के लिए बाहर गई और एक गिलास नीबू का रस लेकर वापस आई।सांगा ने रस पिया, उसे लगा उसकी ऊर्जा लौट आई है।मां ने उसे आराम करने को कहा और कमरे से निकल गई।
रात के ग्यारह बजे थे।कुत्तों को भौंकते हुए दूर तक सुना जा सकता था।सड़कों पर एंबुलैंस दौड़ रहे थे।अब रॉकेटों की आवाज नहीं आ रही थी।सांगा को लगा कि विरोधी भी उसकी तरह थक गए होंगे।वह सोच रही थी कि वे अभी सो रहे होंगे और कल नए हमले के लिए तैयार रहेंगे, किंतु कोई नहीं जानता कि अगला हमला कहां और कब होगा।
सांगा ने अपना सिर अपने हाथों के बीच कसकर पकड़ रखा था।उसका दिमाग खबरों, जोरदार धमाकों और एंबुलैंस के सायरनों से भरा हुआ था।उसने घमाई को एक नर्म रजाई ओढ़ाई ताकि उसे ठंड न लगे।
उसने बिस्तर के बगल में रखी अलमारी खोली और अपने कपड़ों को देखा – वह पहनने के लिए कपड़े चुन रही थी।उसने कुछ कपड़े निकाले और दरवाजे पर लटका दिए।उसने कमरे के परदे बंद कर दिए ताकि कमरा बाहर से न दिखाई दे।उसने टीवी शुरू किया।महवाश का एक गाना चल रहा था।गाना खत्म होने से पहले ही बिजली चली गई।
सांगा ने उठकर फिर से परदे हटाए।चांदनी ने कमरे को रोशन कर दिया।टीवी स्विच ऑफ कर वह बिस्तर में लेट गई, किंतु उसे नींद नहीं आ रही थी।चांद की रोशनी में घमाई का सुंदर चेहरा चमक रहा था।सोते हुए वह एक फरिश्ते की तरह लग रहा था।
दूसरे दिन सांगा नेशनल रेडियो और टीवी मुख्यालय के सामने स्लेटी कार से बाहर निकली।वह काले स्कर्ट के साथ खाकी जैकेट पहने हुए थी।उसके साथ कुछ किताबें और उसका हैंडबैग था।उसने हैंडबैग को अपने कंधे पर एडजस्ट किया और अपना चश्मा सिर पर चढ़ा लिया।बिल्डिंग में प्रवेश करने के पहले उसने अपनी निगाहें चारों ओर घुमाई और पिछले दिन की तबाही को देखा।बड़े ध्यान और शांति से पूरा दृश्य देखने के बाद वह अंदर चली गई।
11, सूर्या अपार्टमेंट, रिंग रोड, राणाप्रताप नगर, नागपुर (महाराष्ट्र)- 440022 मो.9422811671