मैं दफ्तर के काम से बाहर गया हुआ था।सुबह आया तो सीधा दफ्तर ही चला गया।लौटने में देर हो गई।
मीता से बात ही नहीं हो पाई।मैंने सोचा सब ठीक ही होगा, वरना वह ख़ुद ही कॉल कर लेती।
इतनी रात को भी जब बहादुर ने दरवाजा खोला तो मेरा दिमाग ठनका।मैंने पूछा, ‘मैडम नहीं हैं?’
‘नहीं, सुबह से ही निकली हुई हैं।’
मैंने तुरंत कॉल किया तो उधर से स्विच ऑफ आया।
मुझे मीता के लिए चिंता होने लगी।उसके मूड का कुछ पता नहीं।
हमारी शादी को ३ साल हो गए थे।अब बड़ी मुश्किल से वह मानी थी।अभी दौरे पर जाने से पहले हम दोनों डॉक्टर के पास गए थे।वैसे ६-७ सप्ताह हो चुके थे और मीता बिलकुल ठीक थी।
तभी गेट पर कैब आकर रुकी।मैंने जल्दी से दरवाजा खोला, मीता बिलकुल निढाल और बेहाल थी।
मैंने पूछा, ‘क्या हुआ, तुम इतनी पीली पड़ गई हो?’
‘नहीं-नहीं, सब ठीक है।एक-दो दिन में बिलकुल ठीक हो जाऊंगी।’
‘मतलब…’
वह बोली, ‘मुझे दफ्तर से यूएस के प्रोजेक्ट के लिए सिलेक्ट कर लिया गया।तुमसे बात नहीं हो पाई।देर करने पर खतरा हो सकता था।मैंने बेबी अबॉर्ट करवा दिया।ठीक किया ना मैंने मितुल?’
डायमंड २०४, पारस अपार्टमेंट्स, सेक्टर ३०, फरीदाबाद, हरियाणा–१२१००३ मो. ९८१८६०६९५३
मीता का पति सही चिंता कर रहा था, आज जीविका कमाने के आगे जीव हत्या से भी एक माँ का हृदय नहीं कांपता…… भविष्य तो उस नन्ही जान को धरती पर लाकर भी संवारा जा सकता था 👌🏻👌🏻👌🏻बहुत खूब शशि जी, वर्तमान पीढ़ी की विचारधारा को क्या खूब शब्द प्रदान किए हैं।
Nice
यह आज की कामकाजी महिला की अपने काम और अपने अस्तित्व के बीच सामंजस्य स्थापित करने की स्थिति का मार्मिक चित्रण करने वाली संवेदनशील कहानी है।आज के दौर की हर स्त्री इस सच को करीब से जानती है जिसमें सही और गलत की परिभाषा सबके लिए अलग अलग होती है।इस सबके बीच पुरुष मितुल की भांति एक मूक दर्शक मात्र बनकर रह जाता है।लेखिका बधाई की पात्र हैं।
अतिउत्तम सारगर्भित रचना
True & Very practical situation in society
Bahut khoob!
एक लघु कथा लिखने की विधा जितनी कठिन है उतनी ही प्रभावशाली भी। कम शब्दों में एक ऐसी संवेदनशील कहानी रचना जो ना सिर्फ़ समकालीन दौर का दर्पण बनकर सामने आये बल्कि पाठक को विचार करने पर भी विवश करे सबल लेखन के गुण हैं। एक तरफ़ महत्वाकांक्षाओं का पहाड़ और दूसरी ओर गृहस्थी के उत्तरदायित्व। एक मॉडर्न महिला का मार्मिक निरूपण। नारीवाद की झलक। प्रभावी और संक्षिप्त!