डिजाइनर सजल वर्मा की एक दिन के लिए छूट की खबर आग की तरह दिल्ली में फैल चुकी थी। छूट पचास प्रतिशत थी, मतलब 5 लाख के डिजाइनर कपड़े ढाई लाख में, कमाल है!

शोरूम की पार्किंग में महंगी गाड़ियों की कतार थी, तो अंदर उससे अधिक भीड़ थी।

मुझे लगा कि नई सड़क के पटरी बाजार में खड़ी हूँ, जहां सस्ता सामान खरीदने की होड़ मची होती है। शोरूम में बिकने के लिए कपड़े बचे ही नहीं, वे सब अमीर खरीददारों के हाथ में थे। लहंगे, गाउन, गरारे, छोटे बड़े कुर्ते सब। कइयों ने अपने वजन से अधिक कपड़ों का ढेर उठा रखा था।

इस बीच एक ओर स्टैंड पर ड्रेस के कोई तीस-चालीस हैंगर लगने शुरू हुए। भीड़ उस ओर दौड़ी। किसी ने चार, किसी ने छह, तो किसी ने आठ अपने हाथों में उठा लिए। फिर सारे शेल्फ खाली! मालूम किया तो पता चला कि वे साधारण से दिखने वाले कुर्ते पचीस हजार के थे, तो गाउन और लहंगे लाखों के थे।

एक महिला किसी तरह दो बड़े-बड़े बैग उठाए बाहर निकल रही थी। तभी एक छोटी लड़की वहां आई। वह महिला से खाने के लिए पैसे मांगने लगी। उसने क्रोध में भरकर जोर से कहा- दिखाई नहीं देता, अंधी! दूर हटो, सब खराब हो जाएगा!

उसने फिर कहा- अंटी दो दिन से भूखी हूँ, कुछ दे दो!

वह औरत किसी तरह अपने बैग संभालते हुए सामने खड़ी मर्सिडीज की ओर तेजी से बढ़ गई।

दो तरह की भूख आमने-सामने थी!

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