यह दावत अनूठी थी। सभी खुश थे।

सालभर पहले जब मेरे पचीस वर्षीय भाई की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हुई तो मैं कई दिन तक शोक में डूबी रही। तब ऐसी किसी दावत के बारे में सोचना नामुमिकन था। आज मेरे सद्यःजात भाई का जन्मोत्सव है। मेरे माता-पिता खुश हैं और उन्हें खुश देखकर मैं गदगद हूँ।

मैंने अपने पति का उतरा चेहरा देखकर कहा- तुम खुश नहीं लग रहे हो?

उसका चेहरा तमतमाने लगा, पर उसने कहा कुछ नहीं।

मैंने फिर पूछा, ‘क्यों? क्या हुआ?’

वह उबल पड़ा, ‘यह भी कोई उम्र है बच्चा पैदा करने की! मैं तो शर्म से गड़ा जा रहा हूँ!’

‘क्या मतलब तुम्हारा!’

‘तुम अपने परिवार के दिकयानूसी विचारों में मुझे मत घसीटो… मुझे शर्म आ रही है, मेरे शिशु साले साहब!’

‘तुम्हें मेरे माता-पिता का परस्पर प्रेम अच्छा नहीं लगा?’

‘प्रेम, माई फुट… मैं दफ्तर में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा…’

नया भाई पाने की मेरी प्रसन्नता हवा हो चुकी थी।

पीछे नवजात शिशु को गोद में लिए मेरे पिता की आंखों में सवाल था, ‘क्या इस उम्र में पिता बनना कोई अपराध है?’

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