दुकानदार अड़ा हुआ था, ‘नहीं, इसे हम नहीं बदल सकते, कल हमने चेक करके दिया था।’
‘चेक करके आपने खराब वाला दे दिया।मुझसे इतनी गलती जरूर हुई कि मैंने देख कर नहीं लिया’, मायूसी से सीमा ने कहा।
दुकानदार कहने लगा, ‘हम कांच की चीजें नहीं बदलते।’
सीमा का मूड उखड़ गया, ‘कल मेरे सामने दो ग्लास फंसे हुए थे, जिनमें एक मेरे सामने ही टूट गया था और उसे आपने सामान के साथ पैक करके दे दिया।’
इस बार सेल्समैन ने जवाब दिया, ‘नहीं, मैंने देखकर दिया था।’
‘मतलब, मैं झूठ कह रही हूँ, आप नहीं बदलेंगे?’
‘नहीं’, अकड़ते हुए दुकानदार ने कहा।
सीमा को समझ आ गया कि आजकल सही तरीके से कही बात का असर नहीं होता।
‘कोई बात नहीं, हम तो यहां के लिए नए हैं।सप्ताह भर ही हुआ, पति ने बगल के आफिस में ज्वाइन किया है!’ और धीरे से पति का पोस्ट बता कर सीमा गुस्से में आगे बढ़ गई।
दुकानदार चिल्लाया, ‘सुनिए मैडम, आइए, आइए बदल लीजिए।’
सीमा समझ गई, उसकी सचाई नहीं, पति का पद उसका अंतिम अस्त्र बना।
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