शिक्षण एवं स्वतंत्र लेखन। ‘अर्द्धरात्रि का निःशब्द राग’ (काव्य संग्रह), ‘वटवृक्ष की जटाएं और अन्य कहानियां’।
मां
घर के पिछवाड़े की
टूटी खाट है मां
बथान में बेटों की
अगोरती बाट है मां
झुर्रियों और दरारों में
कराहती आवाज है मां
लुढ़कती टूटी-फूटी
बेरंग साज है मां
पथराई आंखों में घुट-घुट
मरती आस है मां
निरीह बेजान उँगलियों से
पकड़ती छूटती डोर है मां
ताने सुन-सुन कर छुपाती
अनमिट दर्द है मां
कुहासे-कोहरे में लिपटी
सर्द रात है मां
तार-तार हुई साड़ियों की
पैबंद है मां
तपती चुभती जलती
फिसलती रेत है मां
मां है तो भारी है बीमारी है
मां तो अपने ही बच्चों से हारी है।
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