शिक्षिका एवं स्वतंत्र लेखन। ‘अर्द्धरात्रि का निःशब्द राग’ (काव्य संग्रह), ‘वटवृक्ष की जटाएं और अन्य कहानियां’।
मंडी
तालाब के चारों किनारों पर
रोपते हुए जटामांसी के मखमली पौधे
उम्मीद थी
जब ये पौधे हो जाएंगे बड़े
जेठ की तपन
और आसमान से बरसती धाह में
ठहरेंगी कुछ देर इसकी छांह में
मासूम तितलियां
व्याकुलता से तड़फड़ाती मछलियां
मेंढक, जोंक और पनैले सांप
थोड़ी तो मिलेगी राहत और सुकून
ऐसा कभी हुआ नहीं
पौधे जब बड़े हुए
जेठ की तपिश आने से पहले ही
सारी मछलियांं
मेंढक, सीप, घोंघे
जोंक और विषहीन सर्प
जाल में फंसकर
कहीं और जा चुके थे
मंडियों में
सीमांत के बाहर।
फ्लैट नं. 202,हाउस न. डीए–106, प्राइड को–ऑपरेटिव हाउजिंग सोसायटी, स्ट्रीट नं. 255, एक्शन एरिया–1, न्यू टाउन, कोलकाता–700156 मो.9472509056
बहुत ही गंभीर रचना