कविता संग्रह ‘तो सुनो’ प्रकाशित। संप्रति अध्यापन।

1-दुनिया लौट आएगी

निःशब्दता के क्षणों ने
डुबा दिया है महादेश को
एक गहरी आशंका में
जहां वीरान हो चुकी सड़कों पर
सन्नाटा बुन रहा है
एक भयावह परिवेश
एक अदृश्य शत्रु ने
पसार दिए हैं
अपने खूनी पंजे
सिहर उठी है संवेदना
ठिठक गई हैं अभिव्यक्तियां
शब्दों ने जैसे अपना लिया है मौन
भावनाएं जैसे जम गई हैं
हृदय के किसी कोने में बर्फ के मानिंद
संक्रमण के खतरनाक दौर में
सुरक्षित नहीं हैं हम
लेकिन भविष्य की पीढ़ी को
सुरक्षित देखना चाहती हैं
हमारी आशान्वित आंखें
हमारे भविष्य की आंखें
टकटकी लगाए देख रही हैं
आशाओं के अथाह समुद्र में
उनकी स्पंदित सांसों के साथ
अब समय ठहर गया है
और ठहर गई है
मनुष्यों की रफ्तार
दुनिया धीरे- धीरे
तब्दील हो रही है
एक अव्यक्त भय में
कि दुनिया लौट आएगी
जल्द अपने रास्ते पर
अभी हवाओं में
कुछ जहर ज्यादा है..

(कोरोना संक्रमण के दौर की एक कविता)

2-सत्ताएं संवाद नहीं करतीं

सत्ताएं अब नहीं उतरतीं सिंहासन से
गले लगाने बिलखती जनता को
उनके मन संचालित हैं दुरभि संधियां से
कि उनकी थोपी गई नीतियां
उनके लिए शिलांकित वचन हैं
वे चाहते हैं कि उनके वचन
मान लिए जाएं तस के तस
जैसे वे सोचते हैं
उसी तरह लोग सोचते रहें ताउम्र
उनके द्वारा दिखाए गए सब्जबाग में
विचरण करे अवाम
वे चाहते हैं कि उनकी विचारधारा के बरक्स
दूसरी विचारधाराएं खत्म हो जाएं
वैचारिक उर्वरता के अभाव में
सिसककर दम तोड़ दें
या हो जाएं सभी दिवालिया
सत्ताओं के लिए
नाजायज है सहिष्णु होना
असहमतियों के लिए रिक्त है उनका शब्दकोश
राजनीति के स्याह पक्ष में
अब असहमत होने का अर्थ देशद्रोही होना है
छद्म भाषा के सिद्धहस्त
घुस गए हैं भेड़ियों की मानिंद
अब सुरक्षित नहीं हैं घर-द्वार
बारूद के ढेर पर
सत्ताएं बिछाती हैं शतरंज
शह और मात का खेल जारी है
संवेदना विलुप्ति के कगार पर है
सत्ताएं अब संवाद नहीं करतीं
बल्कि अस्तित्व के लिए विस्फोटक बन
कुचल देती हैं आंदोलन
छल-छद्म की कुचक्री दोमुंही चाल से
दरअसल तानाशाह भयभीत है
अपने तटस्थ होते समय से
वह भांप रहा है अपने समय का ताप
और कलम से निकले शब्द
अब ठीक उसके निशाने पर हैं।

संपर्क: द्वारा श्रीमती राममूर्ति कुशवाहा, शिव कालोनी, टापा कला, जलेसर रोड, फिरोजाबाद, (उ प्र) मो. 7500219405/ ईमेल : shivkushwaha.16@gmail.com