युवा कवि।अद्यतन काव्य संकलन दुनिया लौट आएगी

समय जब पंख लगाकर उड़ रहा हो
कुछ रिक्तता साल रही हो अंदर ही अंदर
जब सब कुछ लग रहा हो फिसलन भरा
तब कुछ चुक जाने का एहसास
सबसे ख़तरनाक दौर की ओर
चुपचाप करता है इशारा

जैसे बुझता हुआ दीपक
अपनी लौ को फड़फड़ाने से
भांप लेता है अपने अंदर खत्म होती हुई ऊर्जा
उसी तरह इतिहास में दर्ज होती हैं कुछ घटनाएं
जिनके दम तोड़ते हुए ऐतिहासिक पृष्ठ
अपने जीर्ण-शीर्ण होने की देते हैं गवाही

देश का इतिहास होता जाता है संक्रमित
दिशाओं में खर-पतवार उग आने की संभावना से
विचारों का उत्सर्जन
तब्दील हो जाता है परावर्तन में
लौह श्रृंखला से बांधकर भावावेग
नहीं रखा जा सकता गिरवी
निःसृत होते शब्द बह जाते हैं
भाव की महानदी की धार में

डूबने की प्रक्रिया में सिद्धांत
अतिक्रमित कर अपनी सीमाएं
तोड़ देते हैं सब्र के सभी बांध
कि अब शिल्प का बदलाव
पहचान के रूप में स्थापित हो रहा है
कविता की इस मुक्ति की तरह
मुक्त होना जरूरी है हमारे समय को।

संपर्क :द्वारा : श्रीमती राममूर्ति कुशवाहा, शिव कॉलोनी, टापा कला, जलेसर रोड, फिरोजाबाद२८३२०३  (.प्र.) मो.७५००२१९४०५