कवि और लेखक। विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। संप्रतिबुंदेलखंड कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर।

पिता

1.
पिता को मैंने सिर्फ दो बार रोते देखा
पहली दफा मेरी बहन को बिदा करते
दूसरी दफ़ा मुझे मारते समय
वे मुझे मारते हुए अचानक
फफक फफक कर रो पड़े थे
पता नहीं मुझे खुद से पिटते देखकर
या खुद की निरीहता पर
पिता जब भी निरीह होते थे
क्रोध से ढक लेते थे खुद को
या फिर चले जाते थे शून्य में।

2.
पिता जब भी होते हैं एकांत में
एक पूरा संसार होता है उनके जेहन में
घर का खर्चा
बिटिया के बियाह की चर्चा
उधारी का हिसाब
बीमारी की चिंता
बेटों की दुनिया उनके साथ होती है हमेशा
बस नहीं होते हैं तो वे खुद
पिता कभी निर्वात में नहीं रहते हैं।

3.
जब भी जिक्र होता है मां का
पिता तब रच रहे होते हैं नेपथ्य में
अपने बच्चों का संसार
दुनिया के तमाम पिता कुशल कारीगर होते हैं।

संपर्क : असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, बुंदेलखंड कॉलेजझाँसी-284001 मो. 8960580855