वर्द्धमान विश्वविद्यालय में शोधार्थी।अपने हिस्से का सूरज (काव्य संग्रह)

दिन

वो जो तप रहा है
आंच पर
निखरेगा एक दिन
संभालेगा समय की कमान
अपने हाथों में

वो जो चल रहा है
स्कूल का बस्ता लिए
अपनी पीठ पर नंगे पांव
बदलेगा ओ एक दिन
समय का इतिहास

वो जो ठिठुरती रातों में
देखता अट्टालिकाओं को
काट रहा है
अपनी सर्द रातें
उसके हिस्से का भी सूरज
निकलेगा एक दिन

वो जो सीमाओं पर
झेल रहे हैं आज गोलाबारी
उनके हिस्से भी
फैलेगी चांदनी एक दिन

वो जो
पीठ पर सह रहा है लाठियां
कर रहा है भूख-हड़ताल, अनशन
कुचला जा रहा है
सरकारी फरमानों से

उठेगा एक दिन
और उधेर डालेगा बखिया
सरकारी फरमानों की।

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