सामाजिक कार्यों से जुड़ी कवयित्री। एक कविता संग्रह प्रकाशित।

छली गई स्त्रियां

प्रेम में छली गई स्त्रियां
देखती हैं अपने भीतर
प्रेम कहीं ऐसे ही दबा कसमसाता है
जैसे तलघर के अंधरे में
कहीं-कहीं होती है थोड़ी-सी रौशनी
सीली लकड़ी की तरह सुलगती बुझती
अवसाद में डूबी उनकी दुनिया में
कभी-कभी धधकती है आग भी
देखती हैं वे उसके उजाले में
अपनी उजड़ी हुई सृष्टि
ठगी हुई स्त्रियां
कभी खत्म होती हैं विकराल हो कर
और कभी चुपचाप
ऐसे मिट जाती हैं जैसे थीं ही नहीं
कभी जब
बेहिसाब जिजीविषा के साथ ठठाकर हँसती हैं
कांपती है धरती
बरसते हैं मेघ।

तुमसे बात करते हुए

मैंने देखा
झर रहे पीले पत्ते हरे हो रहे हैं
सजग हो रही है नस नाड़ी
मस्तिष्क सचेत ले रहा है करवटें
खून का रंग कुछ ज्यादा सुर्ख़ हो
दौड़ पड़ा है
खरगोश की तरह धमनियों में
तुम्हारी आवाज का पैराशूट पहन कर
शब्द धीरे-धीरे हिचकोले खाते
उतर रहे हैं नख-शिख में
देखती हूँ
थम गया है खून-खराबा
किसी मृत देह में हलचल हुई है
कोई आंख रोते-रोते चुप हुई है
अभी-अभी
सुबह की अजान-सी
आवाज आई है भीतर से
कि ये बातें जारी रहनी चाहिए।

हम लिखेंगे

हम सिर्फ लिखेंगे
हम लिखेंगे स्त्री की पीड़ा
लेकिन
नहीं महसूस करेंगे आंसुओं की नमी
हम संवारना चाहेंगे उसके केश
लेकिन
नहीं सुलझाएंगे उसकी उलझनें
हम लिखेंगे उसके सौंदर्य को
अपनी अलंकृत भाषा में
जिससे दर्ज हो सके
हमारे नाम सुनहरे अक्षरों में
हम अनदेखा करेंगे
उसकी छुई-मुई सहजता
और
तहस नहस कर चुपचाप निकल आएंगे
हर थोपी जिम्मेदारी से बाहर
हम लिखेंगे हम सिर्फ लिखेंगे।

संपर्क : साई निलयम, प्लॉट 52, शक्ति भवन रोड रामपुर, नेशनल कॉलोनी, जबलपुर-482008 मध्य प्रदेश मो.7000053236