श्रुति जैन
लेखिका और अनुवादक। जर्मन भाषा की शिक्षक के रूप में कार्य। सेंटर फॉर फॉरेन लैंग्वेजेज, ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, सोनीपत, हरियाणा में एसोसिएट प्रोफेसर।
जैसे ही मेट्रो रुकती है और उसका दरवाजा खुलता है वह अपना छोटा-सा हाथ मेरे हाथ से छुड़ाती है और अंदर छलांग लगाती है। मुझे पता है कि अब वह खिड़की के पास वाली कोई जगह ढूंढ़ेगी और जगह न मिलने पर तनिक नाराज़ हो जाएगी। उसे जगह मिल जाती है और वह मुझे ख़ुशी से झिलमिलाते हुए अपने पास बुला लेती है। आज उसका जन्मदिन है। हम उसके लिए जन्मदिन का केक और मोमबत्तियां ख़रीदने निकले हैं। ‘पापा, मैं अब कितने साल की हो गई हूँ?’ मैं उसे बताना चाहता हूँ कि वह यह प्रश्न मुझसे पहले भी कई बार पूछ चुकी है। परंतु मैं अपने आपको रोक लेता हूँ और उससे कहता हूँ ‘सात साल’। मुझे लगता है कि इस संख्या ने उसपर कोई जादूई प्रभाव डाला है जिसके कारण वह इसे बार-बार सुनना चाहती है। तभी उसके काले-काले नयन एक महिला को देखते हैं जो कुछ अकड़ी-सी उसके सामने बैठी हुई है और वह उसे देखकर मुस्कराती है। वह सोचती है कि शायद यह महिला और अन्य सभी लोग हमारी भाषा समझते हैं और सभी को पता है कि आज उसका जन्मदिन है और वह सात वर्ष की हो गई है।
महिला उसपर एक सरसरी नज़र डालती है और फिर तुरंत ही अपनी नज़रें सामने की ओर फेर लेती है। वह अपनी टांगों को अपनी ओर समेट लेती है। वह लगभग पचास वर्ष की तो होगी। उसकी स़फेद शर्ट इतनी उजली है मानो उसपर कभी भी धूल का एक कण भी न गिरा हो। बड़ी सटीकता से उसने अपने केशों को पीछे बांधा हुआ है। मेरी बेटी अपना सर झटकाते हुए अपने बालों को अपने माथे से पीछे करती है और अपने पैरों को ऊंचा करके अपने नए जूते उस महिला को दिखाती है। जब उसके ऐसा करने पर महिला ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की तो वह उससे फारसी में कहती है कि उसने नए जूते खरीदे हैं। इसके पश्चात वही पंक्ति जर्मन भाषा में भी दोहराती है।
महिला अपना सर हल्का-सा उसकी ओर घुमाती है और अपने होंठ मुस्कराने के लिए खोलने लगती है- परंतु वह मुस्कान केवल एक सरसरी ऐंठन तक ही सीमित रह जाती है। मेरी नजरों के भार तले वह धीरे से अपना सर मेरी ओर घुमाती है, परंतु अगले ही क्षण दूसरी ओर देखने लगती है -सीधे होकर बैठ जाती है और फिर सामने की ओर देखने लगती है। मेट्रो अब पहले से धीरे चलने लगी है। अगले स्टेशन पहुंचकर वहां ठहर जाती है।
एक युवा महिला, एक कुत्ते को पट्टे से बांधे हुए सभी को स्पष्ट रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हुई प्रवेश करती है। वह अपनी नज़रों से मेट्रो का निरीक्षण कर मेरे सामने की खाली जगह पर आकर बैठ जाती है। कुत्ता अपनी मालकिन के चरण समझकर मेरे जूतों पर आराम से लेट जाता है। मेट्रो चल पड़ती है। मेरी बेटी के सामने बैठी हुई महिला कुत्ते की ओर देखकर मुस्कराते हुए उसकी पीठ सहलाने लगती है। वह कुत्ते की मालकिन से उसका नाम और उसकी आयु पूछती है। उसके कोमल हाथ कुत्ते की पीठ और सर पर हल्के से फिसलने लगते हैं। मेरी बेटी उन हाथों को देखती है जो अब कुत्ते के बालों पर लहर रूपी आकार बना रहे हैं। मेट्रो की गति फिर से धीमी हो जाती है। हमें अब उतरना होगा। मैं अपनी बेटी का हाथ थामता हूँ। हम चल पड़ते हैं। कुछ कदम चलने के पश्चात मेरी बेटी मुड़कर पीछे देखती है। वह उस महिला के हाथों को देखती है जो अभी भी उस कुत्ते के बालों पर लहर रूपी आकार बना रहे हैं।