युवा कवि।संप्रति शिक्षक।
मेरे लिए हिंदी
मेरे लिए हिंदी
मेरा पुश्तैनी घर है
मैं चाहे चला जाऊं
सात समुंदर पार
पर रहता हूँ हर क्षण
उसी घर के आंगन में
जहां मेरी मां
तुलसी के बिरवे के साथ रहती है।
हे शिल्पकारो!
हे शिल्पकारो!
एक देश
उन लोगों के लिए भी बनाना
जिनके लिए यह दुनिया
आज भी
एक सूखी, बासी
और जली रोटी जितनी ही गोल है
उससे ज्यादा कुछ नहीं।
पतझड़
रोज
कुछ पत्ते झड़े हैं
रोज
थोड़ा पतझड़ छाया है
ऐसा नहीं कि
पतझड़ अचानक आया है।
संपर्क : 502- ब्लॉक बी, 317 जी टी रोड, अशोका विहार, बेलूर मठ, हावड़ा- 711202 मो.7704813001
श्वेतांक कविता के उज्ज्वल भविष्य हैं
इन्हें पढ़ने का सुख प्राप्त करता रहता हूँ । आशीर्वाद सहित शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ इस अद्भुत रचनाकार को ।