वरिष्ठ कवि। हिंदी कविताओं के अलावा अंग्रेजी में एक किताब ‘पेपर बोट राइड’ प्रकाशित।
सांझा चूल्हा
पंखे से टकराकर गिरी एक चिड़िया
और बहुत बेचैन हुआ मेरा नन्हा बेटा
जैसे पेड़ होता है तेज हवा में
जैसे हो जाता है मेडिकल का नया छात्र
अपने पहले मरीज के गुजर जाने पर
दुख अपना हो या पराया
हम सबको एक साथ झिंझोड़ता है
बेतार के तार सा जुड़ा होता है
कोई चाहे, न चाहे
दुनिया में दुख
सांझा चूल्हा है हम सब का
जीवन पकता है इसमें।
हताशा की जरूरत
मैं देखता हूँ एक कबूतर को कड़ी धूप में
तिनके लेकर बार बार फेरे लगाते
एक अनगढ़ सा घोंसला बनाते
कुछ गिलहरियों को निश्चिंत होकर
सुबह की धूप में खेलते
एक बड़े से ठूंठ के बीचोंबीच
हरी फुनगियों को सिर उठाते
मैं देखता हूँ
पार्क में एक छोटी-सी लड़की को
जिसे अभी बोलना भी नहीं आता
अपनी काजल से भरी गोल गोल आंखों से
मुझे और पूरी अजनबी दुनिया को
अपने नन्हे हाथ हिला हिला कर
बेहिचक दोस्त बनाते
तो मुझे लगता है
कि दुनिया में अभी हताश होने की
ज़रूरत क्या है!
तरलता
इतनी सारी तरलता पड़ी है सूखे बियाबान में
नदी फैली हुई है सूखी कड़ी जमीन में
कांटों वाले पेड़ों और
गर्मी से काली पड़ी चट्टानों के बीच
बिना कुछ बोले या मांगे
बह रही है
चिलचिलाती धूप में
लू से झुलसते हुए
बेआवाज ऐसी
कि आधा किलोमीटर से भी पता नहीं चलता
यहां कांटों वाले जंगल में
इतना सारा पानी लेकर
बह रही है कोई नदी
ऐसे ही पता नहीं चलता
सूखी आंखों और कठोर चेहरों से
खाचखच भरी इस दुनिया में
किसी के बहुत पास न आने तक
कि यहां भी बहती है
तरलता और ठंडक लिए
एक नदी
मेरे और तेरे सीने में।
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