युवा कवयित्री। एक संस्थान में लेखक और अनुवादक के तौर पर काम।

मैं सीता नहीं हूँ

तुम मुझे चाहे जो समझो
सीता न समझना
मैं लांछन सह जाऊंगी
मगर अग्नि से अपनी पवित्रता कभी न बताऊंगी

तुम मुझे चाहे जो समझो
द्रौपदी न समझना
मैं अर्जुन के निर्णय को सदैव अशुभ बताऊंगी

तुम मुझे चाहे जो समझो
अहल्या न समझना
मैं पत्थर ही रह सकती हूँ
लेकिन अपनी मुक्ति के लिए
राम को कभी नहीं बुलाऊंगी

तुम मुझे चाहे जो समझो
मैं बीज हूँ सृष्टि के सृजन का
तुम जहां फेंक दोगे उग आऊंगी
बार-बार!

जामुनी फूल

तुम कहीं ठहर गए तो
मैं पलटकर नहीं पुकारूंगी तुम्हें
नहीं गिनूंगी
कितनी पगडंडियों के आगे निकल गई हूँ मैं
और तुम पीछे रह गए हो
मैं धूप से नहीं करूंगी तुम्हारी कोई शिकायत
बल्कि कहीं छांव में बैठ कर करूंगी
तुम्हारा इंतजार

दिन ढलने तक तुम न भी आए
तो भी नहीं गिनूंगी
फलक पर टंके इंतजार के टांके

जब गहरी हो चुकी होगी रात
झींगुरों को नहीं गाने दूंगी कोई विरह गीत
मैं सलवटों को धत्ता बताकर सो जाऊंगी
ख़्वाब में चौंककर उठ नहीं पड़ूंगी
तुम्हारी दस्तक मेरी नींदों को तोड़ दे
यह भला मैं क्यों सहूँ?

मैं करूंगी सुबह का इंतज़ार
जहां उगते सूरज के साथ खड़े होगे तुम
और मेरे कुछ कहने से पहले
रख दोगे मेरी हथेली पर कुछ जामुनी फूल
जिन्हें मैंने तुम्हारे इंतजार में लगाया था।

संपर्क : सृष्टि तिवारी, पुराना बस स्टैंड, गांधी चौक गैरतगंज, जिला रायसेन, मध्यप्रदेश (464884)मो.8839654352