‘तुमको गोल्फ खेलते हुए छह माह होने को आए जय, पर अभी तक वहीं हो जहां से शुरू किया था’ – कंधे से गोल्फ-क्लब्स का बैग उतारते हुए चंदन सक्सेना ने कहा।

‘सही कह रहा है चंदू’ – जॉन डि’कोस्टा ने कुर्सी पर पसरते हुए चंदन की बात का अनुमोदन किया – ‘हर होल पर तुम पांच-छह बोगी करोगे तो खेल लिया गोल्फ।’

‘जय, तुम तो वॉलीबॉल ही खेलो, तुम उसी के लिए बने हो’ – असलम अली ने भी बैठने के लिए कुर्सी खींचते हुए कहा – ‘पर समस्या है कि तुम यहां अकेले वॉलीबॉल कैसे खेलोगे… अतएव मेरी सलाह है थोड़ा सीरियस होकर गोल्फ खेलो।

जयदीप सिंह बत्रा जो अब तक अपने मित्रों की बातें सुन रहा था, बोला – ‘यार चैलेंज मत करो, कल देख लेना, पहले ही होल पर यदि ईगल न बनाया।’

तीनों उसकी बात सुनकर खिलखिला कर हँस पड़े।जयदीप ने उन्हें घूर कर देखा- ‘विश्वास नहीं है मेरे केलीबर पर, तो मत करो… कल सब मेरा खेल देखकर पछताओगे कि व्यर्थ ही चैलेंज कर दिया बंदे को।’ कहते हुए वह भी कुर्सी पर फैल गया।

असलम अली, जयदीप सिंह बत्रा, चंदन सक्सेना और जॉन डि’कोस्टा, दोस्तों की ये चौकड़ी, नाम की चौकड़ी नहीं थी, दोस्ती की मिसाल थी।पैंतालीस साल पहले इंजीनियरिंग कॉलेज के फीस काउंटर पर चारों की मुलाकात हुई थी।नजरें मिलीं।होंठों पर मुस्कराहट थिरकी।हाथ मिलाए।औपचारिक परिचय हुआ।फिर दोस्ती के धागे में ऐसे बंधे कि समय और दुनियादारी की कोई भी चुनौती उनके बंधन को कमजोर नहीं कर सकी।आज सभी की उम्र पैंसठ के आसपास है, लेकिन जिंदगी जीने का वही पुराना जज्बा, वही खिलंदड़पन और बातचीत में वही ठसक, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते समय थी।

कॉलेज कैंपस में दोस्तों की ये चौकड़ी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई वाली सच्चे हिंदुस्तान की तस्वीर थी।सभी इन्हें एबीसीडी नाम से पुकारते।दोस्ताना इतना गहरा कि लोग आश्चर्य करते।कहते, जरूर पिछले जन्म में भाई रहे होंगे, मोहब्बत में कुछ कमी रह गई होगी सो इस जन्म में आ मिले।कमाल की बात यह कि चारों ने अलग-अलग ब्रांच लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की और जब रास्ते अलग होने का समय आया तो चारों ने वादा किया कि जहाँ कहीं भी रहेंगे साल में एक बार अवश्य किसी स्थान पर मिलते रहेंगे और जीवन के अंतिम पड़ाव पर सभी एक साथ रहेंगे।सभी वादे के पक्के निकले .. शायद ही कभी किसी ने व्यस्तता या कोई अन्य बहाना बनाकर, मिलने के पहले से निर्धारित कार्यक्रम से दूरी बनाने की सोची हो।उसी वादे के अनुसार अब चारों दोस्त अपनी-अपनी पत्नियों के साथ एक ही छत के नीचे एबीसीडी विला में रह रहे हैं।

चारों की ब्रांच अलग-अलग होने के साथ ही रुचियाँ भी अलग-अलग थीं।असलम अली संगीत का शौकीन, तबला-मास्टर, एक बार अपने शहर में गायिका सुधा मल्होत्रा के साथ संगत कर चुका था।जयदीप बत्रा वॉलीबॉल का अच्छा खिलाड़ी, राष्ट्रीय स्कूली स्पर्द्धा में पंजाब का प्रतिनिधित्व करने वाला।चंदन सक्सेना पेंटिंग्स में रुचि रखने वाला, कमाल के लैंडस्केप्स और पोर्ट्रेट बनाता।उसके द्वारा भारतरत्न विश्वेसरैया का बनाया हुआ पोर्ट्रेट आज भी इंजीनियरिंग कॉलेज के कल्चरल हाल की शोभा है।जॉन डि’कोस्टा गजब का दौड़ाक, दिखने में ही एथलीट लगता, इंजीनियरिंग में एडमिशन न लेता तो एथलेटिक्स में देश का नाम रोशन करता।८०० मीटर और १५०० मीटर दौड़ में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियन रहा।

जॉन डि’कोस्टा सबसे पहले रिटायर हुआ।इंजीनियरिंग करते ही उसका सेलेक्शन सेकेंड लेफ्टीनेंट पद पर हो गया था।रिटायरमेंट के समय वह आर्मी में ब्रिगेडियर था।सेवा काल में वह अनेक महत्वपूर्ण मिशन में शामिल रहा, युगोस्लाविया में अशांति के समय यू.एन. की शांति-सेना में और कारगिल युद्ध के समय द्रास सेक्टर में पदस्थ था।उनकी पत्नी मारिया आर्मी स्कूल में टीचर थी।दो बच्चे – दोनों डॉक्टर, एक उनकी ही तरह आर्मी में और दूसरा एम्स के नेफ्रोलोजी डिपार्टमेंट में।

रिटायर होने से पहले डि’कोस्टा ने तीनों दोस्तों से संपर्क किया।कॉन्फ्रेंसिंग कॉल पर सलाह-मशविरा हुआ।गोवा और ऊंटी में साथ रहने के प्रस्ताव पर विचार किया गया, लेकिन टूरिस्ट प्लेस होने के कारण सहमति नहीं बन सकी।तय हुआ बैंगलोर के आउटर सर्किल में जमीन तलाश कर विला बनाई जाए, जिसमें सब साथ रह सकें।नौकरों के निवास का इंतजाम हो, गार्डन हो, जिम हो, स्नूकर सहित कुछ इंडोर गेम्स की व्यवस्था हो, एक बैडमिंटन कोर्ट हो और १०-१२ कि.मी. की रेंज में गोल्फ कोर्स भी।

डि’कोस्टा और असलम अली अलग-अलग समय बैंगलोर में रह चुके थे।असलम ने इलेक्ट्रोनिक्स में इंजीनियरिंग करने के पश्चात बैंगलोर से सैटेलाइट कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री ली थी।कुछ समय इसरो में काम किया और फिर बीस साल नासा में काम करने के बाद दो साल पहले ही भारत लौटा था।एक लड़की है जिसकी शादी हो चुकी है।उसने बहुत रोका, अमेरिका में ही रहने के लिए, मनाने की कोशिश की, लेकिन असलम का दिल दोस्तों में रमा था।बेटी से वादा किया, जब कहेगी, मिलने आ जाऊंगा, पर जिंदगी के शेष दिन अपनी मर्जी से गुजारने दे।डि’कोस्टा ने कर्नाटक गोल्फ एसोसिएशन के आसपास भूमि तलाशने की जिम्मेदारी ली।असलम भी बाद में सहयोग करने आ गया।शेष दोनों दोस्तों ने जमीन का सौदा करने से लेकर सर्व सुविधा संपन्न विला बनाने की जिम्मेदारी डि’कोस्टा और असलम को सौंप दी।गोल्फ कोर्स से पंद्रह-सत्रह कि.मी. के भीतर ही होसकोटे में उन्हें उनकी जरूरत के हिसाब से जमीन भी मिल गई।डि’कोस्टा की देखरेख में निर्माण कार्य शुरू हो गया।बाकी दोस्त भी बारी-बारी से कार्य देखने आते रहते।दो साल की अवधि में चारों दोस्तों की सपनों की दुनिया ने आकार ले लिया।तब तक जयदीप सिंह बत्रा भी सबमर्सीबल पंप बनाने की अपनी फैक्टरी का सारा दारोमदार अपने बेटे मधुदीप को सौंप कर जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया था।महाराष्ट्र विद्युत मंडल में चीफ इंजीनियर के पद पर कार्यरत चंदन सक्सेना तीन माह पश्चात रिटायर होने वाला था।नि:संतान होकर भी नि:संतान नहीं था।बालग्राम की एक लड़की की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी वहन की थी चंदन और रीतू ने।उसका विवाह किया।दामाद बैंक में पी.ओ. है।लड़की स्वयं डेंटल सर्जन है।

धूमधाम से गृह प्रवेश हुआ।सभी दोस्तों के बच्चे भी इकट्ठे हुए।उनके लिए यह किसी अजूबे से कम नहीं था।दोस्ती ऐसी भी हो सकती है।ऐसी दोस्ती तो कहानियों में भी किसी ने नहीं पढ़ी थी।सब खुश थे।बच्चे वापस लौटे तो निश्चिंत थे अपने पैरेंट्स की खुशी और जीने के जज्बे को लेकर।अब एबीसीडी विला में नौ लोग रह रहे थे – चारों दोस्त और उनकी पत्नियां व चंदन सक्सेना की मां, सावित्री सक्सेना।सब उन्हें अम्मा जी कहते और वह भी सब पर अपना स्नेह लुटातीं, आशीष वर्षा करतीं।वह सुबह पांच बजे उठ जातीं, दो घंटे पूजा करतीं।संध्या आरती में सब इकट्ठे होते।तीज त्योहारों पर भजन का गायन होता।अम्मा जी ढोलक पर गाती, रीतू सक्सेना हारमोनियम और असलम तबले पर संगत देते।रविवार को सभी चर्च जाते।गुरुवार को गुरुद्वारे में जाकर कार सेवा करते और शुक्रवार को फज्र की नमाज पढ़कर ही सब गोल्फ खेलने जाते।

जिंदगी चल पड़ी थी अपनी पूरी ठसक, मस्ती और उल्लास के साथ।सुबह चारों जोगिंग करते, फिर गोल्फ खेलते, गोल्फ-क्लब में बैठ कर बीयर पीते और लंच के समय तक वापस लौट आते।साथ में लंच लेते।शाम को पत्नियों के साथ लॉन में बैठकर गप्पबाजी का दौर चलता, कॉलेज के दिनों की यादें ताजा करते, सर्विस के अनुभवों को शेयर करते, कभी-कभी बढ़-चढ़ कर डींगें हांकते, पकड़ाते तो ठहाके लगाने लगते।कभी कैरम, कभी ताश तो कभी अंताक्षरी भी होती।आठ बजे तक डिनर और फिर उसके बाद थोड़ा टहलना।रोज की यही दिनचर्या थी चारों की।जब कभी गोल्फ खेलने नहीं जाते तो स्वीमिंग करते और टेबल टेनिस या स्नूकर खेलते।किसी का बर्थडे होता तो विला में उत्सवी माहौल होता, बच्चे आ जाते तो रौनक बढ़ जाती।तेज संगीत की धुनों पर घंटों थिरकते और उमर को ठेंगा दिखाते हुए जिंदगी के उन पलों को जीने की कोशिश करते जो विभिन्न जिम्मेदारियों के चलते ठीक से जी नहीं सके थे।लोहरी, होली, ईद, दिवाली, क्रिसमस जैसे सभी त्योहार जोश खरोश से मनाते।जी भर कर खाते, मस्ती करते।न मीठे का परहेज और न बीमारी का भय।कमाल यह कि डि’कोस्टा की ब्लड-शुगर जो रेंडम टेस्ट में दो सौ निकलती थी, खाने के बाद कभी एक सौ तीस से ऊपर नहीं गई।चंदन सक्सेना का बी.पी. नार्मल रहने लगा और असलम अली को दो साल में एक बार भी अस्थमा का अटैक नहीं हुआ।जयदीप, जो स्लिप डिस्क के कारण कमर में हमेशा बेल्ट लगाकर रखता था, अब ढोल की धुन पर बेखौफ भांगड़ा करता था।

कुछ मामलों में उनकी पसंद और रुचियां अलग थीं।फिल्म देखने जाना हो तो चारों कभी एक मत नहीं होते, लेकिन इसका रास्ता भी उन्होंने खोज लिया था।चारों की पसंद की चिटें बनाई जातीं और अम्मा जी से एक उठवाई जाती।जो चिट निकलती सभी वही फिल्म देखने जाते।बाहर खाने का प्रोग्राम बनता, तब भी यही समस्या आती।असलम अली को नानवेज छोड़े बीस साल से ऊपर हो गए थे और अम्मा जी तो प्याज भी नहीं खाती थीं।सब अम्मा जी पर निर्णय छोड़ देते और हर बार जैन भोजनालय या फिर राजस्थानी रेस्ट्रां में खुशी-खुशी खाकर वापस लौट आते।दुनिया के हर विषय पर बातें करते, बहस करते, लेकिन राजनीतिक बातों से परहेज करते।

सभी मित्र एक-दूसरे की खुशी के लिए अवसर तलाशते रहते।डि’कोस्टा ने जब नेशनल गैलरी में चंदन सक्सेना के लैंडस्केप्स की प्रदर्शनी लगाने की व्यवस्था की तो चंदन और रीतू की खुशी देखते ही बनती थी।आर्ट-एग्जिबिशन चंदन का सपना था।इससे पूर्व अनेक बार उसने प्रदर्शनी लगाने की सोची थी पर कोई न कोई व्यवधान आ जाता।इसी तरह जब मित्रों को पता चला कि जयदीप की पत्नी नवजोत कौर युवावस्था में ब्यूटी-कांटेस्ट में भाग लेना चाहती थीं पर परिवार के सदस्यों को यह पसंद नहीं था सो उसके सपने ने दिल में दबे-दबे ही दम तोड़ दिया।अब तो उम्र भी नहीं थी पर जब एक माह बाद चेन्नई में पहली मिसेज इंडिया प्रतियोगिता के आयोजित होने की खबर मिली तो मारिया को लगा कि समय का चक्र पीछे घूम गया है ताकि नवजोत के सपनों में रंग भरा जा सके।मारिया ने उसे मनाया, सवाल-जवाब के लिए प्रशिक्षित किया, जरीन ने रेम्प पर चलने की ट्रेनिंग दी।जयदीप ने हर कदम पर उत्साहवर्द्धन किया।चौंसठ प्रतिस्पर्द्धियों में नवजोत सबसे उम्रदराज प्रतियोगी थी पर कुछ कर गुजरने की ललक ने उसकी राह आसान बना दी।वह सेकेंड रनर्स-अप रही।

दो साल से ऊपर हो गए थे विला में रहते हुए।होली के त्योहार के अगले दिन अम्मा जी अचानक बीमार पड़ गईं।पिछले कई दिनों से उनका जी मिचली कर रहा था, थकान महसूस हो रही थी, पैरों में सूजन थी, लेकिन उन्होंने कभी इसके बारे में किसी को नहीं बताया था, गुपचुप अपना देशी इलाज करती रहती थीं।

डॉक्टर ने उनको तुरंत अस्पताल में भर्ती कर लिया और बहुत सारे टेस्ट्स लिख दिए।रिपोर्ट आई तो सब दंग रह गए।उनकी दोनों किडनियां काम नहीं कर रही थीं।उनका बदलना जरूरी था।डि’कोस्टा ने अपने नेफ्रोलॉजिस्ट बेटे से भी सलाह ली।उसकी भी राय यही थी।किडनी की व्यवस्था होने तक दिन में दो से तीन बार डायलिसिस होने लगा।चंदन की भी एक किडनी पूरी तरह काम नहीं कर रही थी अतएव डॉक्टर ने उसकी किडनी लेने से मना कर दिया।यही स्थिति जयदीप के साथ थी।असलम और डि’कोस्टा डर रहे थे कि कहीं अम्मा जी उनकी किडनी लेने से मना न कर दें।चारों ने उन्हें मनाया .. उनके एक नहीं चार बेटे होने का हवाला दिया।उनके हां कहते ही डॉक्टर ने दोनों का परीक्षण किया और असलम की किडनी सबसे उपयुक्त पाई।

कुछ महीनों में असलम की किडनी पाकर अम्मा जी स्वस्थ हो गईं।असलम के त्याग ने उनके मन में उसके प्रति अतिरिक्त अनुराग जगा दिया।वह उसका विशेष ध्यान रखने लगीं, कहतीं – ‘मेरी तो चलाचली की बेला है पर असलम को किसी तरह का इंफेक्शन नहीं होना चाहिए।तुम सब उसका ध्यान रखा करो।’ उसे छींक भी आती तो वह चिंतातुर दिखने लगतीं।डॉक्टर की सलाह पर दोनों को ही अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करना पड़ा।असलम का खेलना कम हो गया, बीयर पीना एकदम छोड़ दिया।दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाना सीमित कर दिया।

मई का पहला रविवार था।उस दिन कुछ ज्यादा ही गर्मी थी।सभी हर दिन की तरह शाम को लॉन में बैठे ओसामा बिन लादेन की मौत की चर्चा कर रहे थे जिसे कुछ दिन पूर्व ही अमेरिकी फौज ने रात के अंधेरे में उसके घर में घुस कर मारा था।डि’कोस्टा अमेरिकी ऑपरेशन के बारे में बता रहा था कि किस तरह अमेरिकी कमांडोज ने ऑपरेशन को अंजाम दिया और ओसामा के शव को समुद्र में बहा दिया।

‘उस बास्टर्ड के साथ यही होना चाहिए था’ – जयदीप आकस्मिक रोष में आते हुए बोला।

‘सही कहा तुमने, पूरी दुनिया में आतंक फैला रखा था स्स्साले ने’ – चंदन सक्सेना ने हां में हां मिलाई।

‘मैं तुम लोगों की बातों से इत्तफाक नहीं रखता यार, जो आदमी मर गया, उसकी डेड बॉडी के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था अमेरिका को’ – असलम ने कहा तो सभी उसकी ओर देखने लगे।

‘असलम भाई, ऐसे व्यक्ति से क्या हमदर्दी रखना, कुत्तों की मौत पर किसी को अफसोस करते देखा है कभी… कुत्ता था वह’ – चंदन सक्सेना ने अपने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा।

‘वह आतंकवादी था, उसके मरने की खबर से मुझे भी खुशी हुई है… लेकिन उसके शव के साथ अमेरिका का बर्ताव नहीं जमा मुझे, हमारे यहां तो मृत व्यक्ति को नमन करने की परंपरा है’ – असलम ने कहा।

‘अरे छोड़ो, ये बात यहीं पर, हम स्वीप खेलते हैं, बहुत दिनों से नहीं खेला’ – डि’कोस्टा ने बात बदलने की कोशिश में जोर से आवाज लगाते हुए कहा – ‘मारिया, ताश और फ्रिज से कोल्डड्रिंक भिजवा दो।’

असलम बहुत देर से बैठा हुआ था।कमर में दर्द सा महसूस हुआ।डॉक्टर ने बहुत देर तक एक ही पोजीशन में बैठने से मना किया था अतएव सॉरी बोलकर वहां से उठ गया।

बात कुछ भी नहीं थी, लेकिन धार्मिक संवेदनाओं की गीली जमीन पर संदेह के केक्टस उग आए थे।पहली बार असहमति के स्वर ने दिलों में हलचल पैदा कर दी थी।डि’कोस्टा ने असलम की तरफ से सफाई देने की कोशिश भी की, किंतु चंदन और जयदीप के मन में असलम के उठकर चले जाने से आक्रोश का गुबार उठने लगा था।दोनों गलती से भी यह सोचना नहीं चाहते थे कि असलम को लगातार बैठने से परेशानी हो सकती है।

अगले दिन अम्मा जी ने पूजा के समय पूछा, ‘असलम नहीं दिख रहा, तबीयत तो ठीक है न!’ जवाब जरीन ने दिया – ‘रात में ठीक से सो नहीं सके, एक बार उल्टी भी हुई थी… अभी सो गए हैं, आप कहें तो जगा देती हूँ।’

‘नहीं, रहने दो बहू, अभी आराम कर लेगा तो शाम को भजन के समय तक ठीक हो जाएगा।’

उस दिन तीनों गोल्फ खेलने भी नहीं गए।घर पर ही रहे।विला में दिन भर अजीब-सा सन्नाटा पसरा रहा, सभी एक दूसरे से आंखें चुराते रहे।

दो दिन बीत गए।पिछला दिन इस मौसम का सबसे गरम दिन था।उस दिन भी सूरज सुबह से ही अंगारे बरसाने लगा था।असलम अब पहले से बेहतर था।सभी सामान्य दिखने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन बेतकल्लुफ हँसी और ठहाके होंठों तक आने से कतराने लगे थे।चाय का प्याला टेबल पर रखते हुए डि’कोस्टा ने अखबार उठा लिया।पहली हेडलाइन पढ़ते ही उसका दिमाग झनझना गया।

‘क्या हुआ?’ जयदीप ने पूछा।

‘ढाई साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म, जला कर मारा’ – डि’कोस्टा ने हेडलाइन दोहराई।

‘उफ्फ, कहां की घटना है… किसने किया यह घिनौना काम?’ – जयदीप ने पुन: प्रश्न किया।

‘अलवर की है… कोई फिरोज संदेह में पकड़ा गया है।’

‘कैसी कौम है ये, या तो आतंकवादी बनेंगे या बलात्कारी।’ – चंदन सक्सेना उत्तेजना में बोल गया।वह यहीं नहीं रुका, कुर्सी के हत्थे पर हाथ पटकते हुए बोला – ‘सालों को भगा देना चाहिए मुल्क से।’

‘अरे चंदू… ये कैसी बात कर रहे हो… किसी एक के कुकर्म के लिए पूरी कौम कैसे जिम्मेदार हो सकती है’ – डि’कोस्टा ने चंदन की ओर देखते हुए कहा – ‘यदि लड़की मुस्लिम होती और बलात्कारी हिंदू होता, तब भी तुम यह कहते क्या?’

‘काल्पनिक बातों के उत्तर नहीं दिए जाते जॉन’ – चंदन के स्वर में यथावत तल्खी थी।

‘जॉन, याद करो, क्या इंदिरा गांधी की हत्या के लिए पूरा सिक्ख समुदाय दोषी था पर सजा तो सबको मिली थी… हफ्तों घर में दुबक कर रहना पड़ा था उन्हें।’ – जयदीप ने भी डि’कोस्टा की बात का प्रतिकार किया।

असलम ने कुछ नहीं कहा, चुपचाप उठकर अंदर चला गया।कुछ देर बाद तीनों भी उठ कर अपने-अपने कमरों में चले गए।

संध्या आरती के बाद असलम और जरीन ने अम्मा जी के पैर छूकर बताया – ‘हमें आज ही रात को अमेरिका निकलना है, सारा अकेली है वहां, दामाद जी को क्लब में किसी ने गोली मार दी है – दाहिने हाथ पर लगी है।’

‘हे भगवान, ईश्वर रक्षा करें, वहां पहुंचते ही खबर करना… हो सके तो दोनों को कुछ दिनों के लिए यहां ले आना, अपनों के बीच रहेंगे तो गम जाता रहेगा।’

रात में तीन बजे फ्लाइट थी अतएव असलम और जरीन दस बजे घर से एयरपोर्ट के लिए निकल गए।किसी ने उन्हें एयरपोर्ट तक छोड़ देने के लिए नहीं कहा।जब दोनों टैक्सी में बैठ रहे थे तभी उनके कानों में आवाज पड़ी, किसकी आवाज है ठीक से समझ नहीं आया – ‘अच्छा बहाना मारा है, भागना था यहाँ से तो डंके की चोट पर चला जाता।’

तीन दिन बाद डि’कोस्टा को असलम का मेल मिला।सब कुछ विस्तार से लिखा था… ‘सारा ने झूठ बोला था उनसे कि हाथ में गोली लगी है, गोली पेट में लगी है, हालत बहुत अच्छी नहीं है अभी… किसी सिरफिरे ने क्लब के अंदर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी।अदनान सेफ जोन में थे, लेकिन एक बच्चे को बचाने के चक्कर में वह गोलियों की चपेट में आ गए थे… सारा बहुत टेंसन में थी… हमारे पहुंच जाने से रिलीफ महसूस कर रही है… अम्मा जी को बता देना।’

डि’कोस्टा ने सबको बताया पर चंदन और जयदीप ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।शायद वह इसे भी मनगढ़ंत कहानी ही समझ रहे थे।पांच बजे मधुदीप का फोन आया – ‘पापा, एक सप्ताह पहले तारसेम चाचा को गोली मार दी है किसी ने, थोड़ी देर पहले चाची ने खबर दी है, बुलाया है हमें…’ तारसेम जयदीप का चचेरा भाई है।उसकी पत्नी नवजोत की सगी बहिन है।चालीस साल पहले तारसेम अपने एक दोस्त के साथ होटल में काम करने के लिए अमेरिका चला गया था।वहां खूब पैसा कमाया।कालांतर में स्वयं होटल का व्यवसाय शुरू कर दिया।शिकागो में पंजाबी तड़का नाम से तीन रेस्टारेंट हैं, जिनका काम उसके दोनों बेटे देखते हैं।

खबर सुन कर जयदीप को धक्का लगा।उसके पास तो पासपोर्ट भी नहीं है फिर कैसे तारसेम को देखने अमेरिका जा पाएगा।तारसेम ने कितनी बार उसे बुलाया था लेकिन काम की अधिकता के कारण वह हमेशा टालता रहा था।उससे चार साल बड़ा है तारसेम।पढ़ाई में मन लगता नहीं था सो ज्यादा पढ़ नहीं सका, लेकिन खाना बहुत अच्छा बनाता था।छुटपन से ही जालंधर के ढाबों पर काम करने लगा था।बहुत तरक्की की उसने… अमेरिका में उसके रेस्ट्रां की बहुत धाक है।वह अक्सर बताता रहता था।इधर बहुत दिनों से बात नहीं हुई थी।उसे शायद पता भी नहीं होगा कि मैं सब कुछ छोड़कर बंगलौर में रहने आ गया हूँ।यहां आकर मैं भी तो ऐसा रम गया कि कभी तारसेम से बात करने का ध्यान ही नहीं आया।प्रभजोत परजाई ने भी एक हफ्ते बाद खबर की… जरूर सीरियस बात होगी।कैसा होगा तारसेम, किसी ने क्यों मारी होगी उसे गोली।मधुदीप ने पहले पासपोर्ट बनवाया था, उसी को बोलता हूँ देख आए चाचा को… दिल को तसल्ली मिल जाएगी… तब तक मैं उसका काम देख लूंगा… अब यहां भी मन कहां लग रहा है ठीक से।कल ही पासपोर्ट के लिए अप्लाई कर दूंगा, फिर मैं भी चला जाऊंगा तारसेस से मिलने।कुछ पलों में कितना कुछ सोच लिया जयदीप ने। सोचते-सोचते अंधेरा घिर आया।चंदन आवाज न लगाता तो उसे पता ही नहीं चलता कि सात बज गए हैं।

डि’कोस्टा और अम्मा जी लॉन में बैठे थे।डि’कोस्टा उन्हें असलम के बारे में दोबारा बता रहा था।अम्मा जी को लग रहा था उन्हें पूरी सच्चाई नहीं बताई जा रही है सो वह कुरेद-कुरेद कर पूछ रही थी।चंदन और जयदीप भी जब आकर बैठ गए तो अम्मा जी उठकर चली गईं।जयदीप ने डि’कोस्टा को सारी बात बताई- ‘मैं कल सुबह जालंधर जाना चाहता हूँ, अमृतसर तक फ्लाइट से चला जाऊंगा फिर टैक्सी कर लूंगा।’

‘जाने से पहले तुम एक बार असलम से बात कर लो, सारा और अदनान भी लांगग्रोव, शिकागो में ही हैं।शायद वह तुम्हारी कुछ मदद कर सकें।’

‘पता नहीं क्यों असलम पर पहले जैसा विश्वास नहीं रहा… वह बहकी-बहकी बातें करने लगा है, आतंकियों तक से हमदर्दी है उसे’ – जयदीप के स्थान पर चंदन ने उत्तर दिया।

‘ऐसी बात नहीं हैं चंदू, असलम जैसा था वैसा ही है, हमारे देखने का नजरिया बदल गया है।’

‘तो क्या हम तुम्हें गलत लगते हैं जॉन, बहुत गलत बात कह दी तुमने, हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते।’

‘मैं तुम्हें सफाई देना नहीं चाहता… अभी तुम गुस्से में हो, कभी ठंडे दिमाग से सोचकर देखना’ -डि’कोस्टा ने बहुत संभल कर हर शब्द को नापतौल कर कहा – ‘जय, तुम परेशान हो, इसलिए सजेशन दिया था, असलम हमारा दोस्त है… मुझे पूरा विश्वास है उस पर, वह जरूर मदद करेगा।’

अगले दिन जयदीप और नवजोत चले गए।विला में अब केवल पांच लोग बचे थे।हमेशा चहकने वाली विला की दीवारें बेजान हो चली थीं।अम्मा जी भी अधिकतर अपने कमरे में रहतीं, कम ही बाहर निकलतीं।रीतू कमरे में उनके लिए चाय, नाश्ता और खाना लेकर जाती।डि’कोस्टा और चंदन ने भी शाम को लॉन में बैठना बंद कर दिया था, गोल्फ खेलना तो बहुत पहले ही छूट चुका था।

एक सप्ताह बाद असलम का चौंकाने वाला मेल डि’कोस्टा को मिला – ‘मधुदीप सुबह ही अमेरिका पहुंचा है।उसके पहुंचने पर पता चला कि जिस बच्चे अर्श को बचाने में अदनान को गोली लगी थी, वह जयदीप के भाई तारसेम का पोता है।मधुदीप तो जयदीप से बात कराना चाह रहा था लेकिन जयदीप ने बात नहीं की… शायद नाराज है अब तक।अदनान पहले से बेहतर है।दो-तीन माह यहां रहना होगा उसके बाद ही यारों के बीच आ सकूंगा।’

लंच-टाइम में डि’कोस्टा ने चंदन को मेल पढ़कर सुनाया।उसे उम्मीद थी कि चंदन का गुस्सा जाता रहेगा पर हुआ उल्टा ही।रोष-मिश्रित स्वर में बोला- ‘अपने को बहुत बड़ा पीर समझता है असलम।जयदीप की नाराजगी जायज है।’

‘चंदू, तुम बात को कहां से कहां ले जाते हो, क्या हुआ है तुमको जो तुम असलम के बारे में इतना निगेटिव सोचने लगे हो।अदनान ने जयदीप के भाई के पोते की जान बचाई है।’

‘ठीक है’, कहते हुए चंदन ने मुंह फेर लिया।

‘क्या हम अपने दोस्तों के बीच भी अपने मन की बात नहीं कह सकते, हमारी कई बातें पहले भी सबको पसंद नहीं आती थीं, लेकिन हममें कभी मनमुटाव नहीं हुआ… एक छोटी-सी बात पर हमारी सालों की दोस्ती में खाई पैदा हो गई है।’ – डि’कोस्टा ने चिंतातुर स्वर में कहा।

‘तुम्हें पता नहीं है जॉन, तुम तो फौज में अपनी ड्यूूटी बजाते रहे… असलम शुरू से ही ऐसा था… जब बाबरी मस्जिद गिरी थी, तब भी उसकी प्रतिक्रिया विचित्र ही थी।उस समय मेल-वेल तो था नहीं… अमेरिका से लेटर भेजकर अपनी नाराजगी जताई थी उसने।’

‘सच कहूं तो उसके बाद फैली हिंसा को लेकर मैं भी दुखी था, नहीं होना चाहिए था वह सब।’

‘तुम दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हो… हमारी भावनाओं को नहीं समझ पाओगे’ -चंदन सक्सेना ने रोष से कहा।

‘कौन-सी भावनाओं की बात कर रहे हो तुम… बलात्कार जैसी घटनाओं में भी मजहब को बीच में ले आते हो… बलात्कारी मुस्लिम हुआ तो फांसी मांगते हो और हिंदू होने पर चुप्पी लगा लेते हो।परसों ही एक ईसाई लड़की को उसके साथ पढ़ने वाले दो लड़कों ने बलात्कार कर मार डाला पर कहीं कोई शोर शराबा नहीं… तुम्हारा भी खून नहीं खौला इस दरिंदगी पर’ – डि’कोस्टा भी अपने को संयत नहीं रख सका और तेज आवाज में बोला – ‘ग्राहम स्टेंस को दो बच्चों सहित निर्ममता से जीवित जलाकर मार डाला था, उस समय भी तुम चुप ही थे चंदू… कितने चूजी हो तुम भी।’

‘बहुत हुआ जॉन, अब आगे कुछ मत कहना, तुम्हारी बकवास सुनने के लिए नहीं रुका हूँ… मैं भी जा रहा हूँ यहां से… जयदीप भी शायद ही अब आएगा… बुला लेना अपने हमदर्द दोस्त को और ऐश करना दोनों मिलकर।’

‘रोक कौन रहा है तुमको… कल जानेवाले हो तो आज ही निकल लो मेरी बला से’ – डि’कोस्टा की सहनशक्ति जवाब दे गई और उसने भी चंदन के लहजे में अपना गुबार निकाल दिया।

चंदन चला गया।एक माह भी नहीं बीता था कि उसके निधन का समाचार मिला।सीवियर हार्ट अटैक हुआ था।अस्पताल पहुंचने से पहले ही आत्मा आजाद हो गई।रीतू ने बताया था कि जबसे बंगलौर से यहां आए थे, बहुत चिड़चिड़े हो गए थे।बात-बात पर झल्लाना उनकी आदत बन गई थी।इससे पूर्व जयदीप के गिरने की खबर मिली थी।रीढ़ की हड्डी में फ्रेक्चर होने से बीस दिनों से पलंग पर ही था।हिलना-डुलना भी पूरी तरह से मना था।एक रात जिंदगी से ऊबकर नींद की गोलियों की पूरी शीशी निगल डाली।

डि’कोस्टा अपने बेटे के पास दिल्ली आ गया था।दोस्तों के साथ जो शुगर बिना दवा के भी कंट्रोल में रहती थी, वह एक दिन अचानक पांच सौ से भी ऊपर पहुंच गई और उसको कोमा में ले गई।सोलह दिन लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रहा और फिर बेहोशी की हालत में ही जिंदगी को अलविदा कह गया।असलम अमेरिका से नहीं लौटा।बेमौसम बर्फवारी की चपेट में आकर उसे अस्थमा का इतना जबर्दस्त दौरा पड़ा कि जिंदगी के लिए सांसे कम पड़ गईं।

आज एबीसीडी विला उदास है।जीवन का राग गाने वाली उसकी दीवारें मौन हैं।लॉन से उठ कर हवा को तरंगित करने वाले ठहाके शोर में बदल गए हैं।समय इतना क्रूर हो सकता है, नहीं समझती थी एबीसीडी विला।तीन महीने से कम समय में ही जिंदगी की महक बिखेरने वाली विला को लोग भुतहा हवेली के रूप में जानने लगे।

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