असमिया से बांग्ला अनुवाद :
वासुदेव दास
बांग्ला से हिंदी अनुवाद : संजय राय
युवा कवि।एक पुस्तक कुंवर नारायण का कविता लोक

रात में अनादि के शरीर के ऊपर से एक चूहा दौड़कर भागा।घबराकर उसने बत्ती जलाई और उठ बैठा।रात में अकसर रसोई और बरामदे से उसे उन छोटे-छोटे चूहों की धमाचौकड़ी सुनाई पड़ती है, लेकिन अब तक वह उन भूखे प्राणियों को क्षमा करता आया है।पर उस रात उन भूखे प्राणियों ने सभी सीमाएं लांघ डालीं।स्टोर रूम में एक तरफ आधा बस्ता चावल, दो बोतल सैनिटाइज़र, फ़िनाइल, टीन के कुछ छोटे-बड़े कनस्तर, अख़बार और मैग्ज़ीन रखे हुए हैं।इस रम्यभूमि में चूहों का अतिरिक्त साहसी हो जाना लाज़मी है।अनादि यह देखकर चकित रह गया कि चावल के बस्ते के एक कोने से एक छोटा-सा चूहा सिर उठाकर उसे ललकारने की मुद्रा में उसकी तरफ देखे जा रहा है।अनादि ने चूहे को मारने के लिए ज़मीन से सैंडल उठाया पर यह सोचकर रुक गया कि पास के कमरे में ही माँ सोई हुई है; और माँ की नींद बहुत पतली है।

शरीर के ऊपर चूहों की आवाजाही क्या किसी शुभ लक्षण की निशानी है? क्या किसी तरह का कोई गुड साइन है? या किसी दुर्भिक्ष का अग्रिम संकेत? जाओ, आज तुमको माफ किया।बिछावन से उठकर अनादि ने दरवाजा खोला और सीढ़ियों से होता हुआ छत पर चला गया।

अनादि ने सिगरेट का पैकेट खोला तो यह देखकर दुखी हो गया कि उसमें केवल एक ही सिगरेट बचा है।दियासलाई में भी कुछ ही तीलियां बची थीं।क्या देश में कोई अकाल पड़ा है? आसपास के पान की गुमटी और दूसरी दुकानें काफी दिनों से बंद पड़ी हैं।लॉकडाउन चल रहा है।उसके फ्लैट की छत पर काफी कूड़ा बिखरा पड़ा है।टीन का एक ड्रम है।गाड़ी के पहिए के दो घिसे हुए टायर हैं।अरगनी पर पसारी गई साड़ियाँ, अंडरवियर और पैंट-पायजामे विभिन्न भंगिमाओं में झूल रहे हैं।इसके साथ ही सिगरेट के खत्म हो जाने की असह्य पीड़ा है।जबकि आज उसे एक महत्वपूर्ण फैसला लेना है।दीवार पर केहुनी की टेक लेकर नीचे की तरफ झुकने का गंभीर जोखिम लेते हुए उसने देखा, रात अभी बहुत गहराई नहीं है।लेकिन दूर तक जनजीवन की चहल-पहल का कोई निशान नहीं है।किसी मरे हुए सांप की तरह पूरा राजपथ पड़ा हुआ है।शिराओं-उपशिराओं की तरह खुलनेवाली गलियां एकदम सूनी पड़ी हैं, जैसे परित्यक्त कर दी गई हों।कहीं से सायरन की आवाज गूंजी।अनादि ने बचा हुआ आखिरी सिगरेट सुलगाया।हवा का एक ठंडा झोंका आग की लपट को झकझोर कर चला गया।थोड़ी देर पहले बारिश हुई है।गलियों में पानी जमा हुआ है।मेन रोड पर स्ट्रीट लाइट की बिखरी रोशनी का खेल दूर-दूर तक फैल गया है।दीर्घ लॉकडाउन चल रहा है।

हाथ में जो पैसे थे, खत्म होने को हैं।काफी दिनों से रसोई निरामिष हुआ पड़ा है।लंबे समय से घर में बंद पड़े लोग सुस्त पड़ते जा रहे हैं।जीवन के सब राग-रंग मद्धिम पड़ गए हैं।अभी जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह कि सिगरेट खत्म हो गया है।अनादि ने जेब से मोबाइल निकाला।फेसबुक पर अपना प्रोफाइल पिक्चर चेक किया।वह सोच में पड़ गया कि क्या उसका मुख हताश, उदास और कारुणिक है या किसी तरह का डेस्परेट भाव है उसके चेहरे पर? चार दिन पहले की बात है, अनादि के फेसबुक मैसेंजर पर पहले दिन आए संदेश के शब्द कुछ इस प्रकार हैं :

कुछ करना चाहते हो? तुम्हें पैसों की जरूरत है? ‘वायरस’ नाम के एक एकाउंट से ये प्रश्न आए थे।उसके डी.पी. में कोई तस्वीर नहीं है।

मतलब?

मतलब एक टास्क है।तुम अगर कर पाओ तो कुछ पैसे कमा सकते हो।

मुझे ही क्यों? संसार में इतने सारे लोग हैं? यह अनादि की एक सहज जिज्ञासा है।

क्योंकि मुझे पता है कि तुम्हें इस वक्त काम और पैसों की सख्त जरूरत है।मैंने तुम्हें फेसबुक पर फॉलो किया है।तुम्हारे पोस्ट पढ़े हैं।तुम्हारी कविताएं पढ़ी हैं।तुम्हारा फ्रस्ट्रेशन जाना है।तुम्हें समझने की कोशिश की है।लेकिन सिर्फ आक्रोश और विद्रोह से कुछ हासिल नहीं हो सकता।आई वांट टू हेल्प यू आउट।

जरूरत नहीं है।गुडनाइट!

अनादि ने मैसेंजर पर उस आखिरी शब्द के साथ ही संवाद खत्म कर देना चाहा था।दुनिया ठगों और प्रपंचकों से भर गई है।इस फेसबुक एकाउंट का न कोई परिचय है, न ही कोई चेहरा। ‘वायरस’ शायद हड़बड़ी में बनाया गया कोई एकाउंट है।इसके फ्रेंड्स भी नहीं हैं।कोई पोस्ट नहीं है।लेकिन अनादि यह समझ गया कि वह अनजान शख्स कुछ दिनों से उसको फॉलो कर रहा है।अनादि कभी-कभी बहुत हताशा और क्रोध में कुछ लिख बैठता है।छिटपुट टिप्पणियां करता है।लगभग तीन महीने पहले उसने कविता जैसा कुछ लिखा था, उस शख्स ने उसे भी पढ़ा है।अनादि को खुद भी ठीक-ठीक याद नहीं, उसने क्या लिखा था।

शंख की तरह निस्तेज चेहरा, बर्फ की तरह शीतल हाथ।आंखों में जलती चंदन की लकड़ी की उष्ण, सजल और रक्तिम चिता।…

ऐसा ही कुछ जिसे वह खुद भी भूल गया है।धत् तेरे की कहकर उसने मैसेंजर बंद कर दिया।

कबूतर के खांचे जैसा यह फ्लैट, जिसमें अनादि रहता है, उसके भैया का है।टू बीएचके के नाम पर साढ़े सात सौ स्क्वायर फीट के इस फ्लैट में भैया-भाभी, सात साल की एक भांजी और मां के साथ अनादि भी पड़ा हुआ है।एक तरफ पूरे दिन चलता भैया और भाभी के प्रेम और झगड़े का दृश्य, अस्वस्थ मां का अरण्य रुदन, पिकलू का मोबाइल गेम और उसकी मांगें, टेलीविजन से आते न्यूज और सीरियल्स के कोलाहल से गूंजता बैठक और इन सबके बीच है अनादि का विचित्र-सा सह अस्तित्व।टेलीविजन पर देश-विदेश से आती वायरस के संक्रमण की खबर है।न्यूयॉर्क में संक्रमित मरीजों की लाश को सामूहिक रूप से दफनाने की खबर आ रही है।तेल की कीमत में ऐतिहासिक पतन देखने को मिल रहा है।वैश्विक अर्थव्यवस्था तास के पत्तों से बने महल की तरह भरभरा कार गिर रही है।इन सबके बीच अनादि के मन में एक सवाल उठा कि भारत में क्या फिर से लॉकडाउन बढ़ेगा? काफी रात तक उसे नींद नहीं आई।उसने निश्चय किया कि कल किसी भी तरह एक पैकेट सिगरेट का जुगाड़ करना ही होगा।

अगले दिन नींद से उठकर उसने देखा, उस अनजान शख़्स का फिर कोई संदेश आया है- क्या तुम तैयार हो?

आपको क्या चाहिए?

लॉकडाउन चल रहा है।कहीं काम नहीं है।पैसा नहीं है।तुम्हें काम मिलेगा और उसका उचित पारिश्रमिक भी।

कितना?

पांच लाख।

ह्वाट? अनादि चौंक गया।उसको लगा कि यह किसी फ्रॉड का काम है।लेकिन उसके साथ कोई क्या फ्रॉड करेगा? हाथ खाली है, बैंक एकाउंट खाली है।इसलिए अनादि उस प्रस्ताव की तरफ बढ़ा करना क्या है?

पहले यह बताओ कि तुम तैयार हो कि नहीं?

पांच लाख रुपये के लिए मैं तो अपना खून करने से भी न हिचकूं।

अनादि के मजाक की उपेक्षा कर हिंदी सिनेमा के विख्यात डायलॉग के स्टाइल में वायरस का संदेश आया- काम शुरू करने से पहले 50 प्रतिशत, काम खत्म करने पर बाकी के 50 प्रतिशत।रेडी?

करना क्या है? कहीं मर्डर का प्लान तो नहीं? हा…हा…हा…

बिलकुल सही! एक कत्ल करना है।बहुत इजी टार्गेट है।

अनादि ने थोड़ी देर तक कोई जवाब नहीं दिया।उसे लगा कोई पागल है शायद।

हैलो? दूसरी तरफ के उस अनजान शख़्स का इंतजार चलता रहा।

28 साल के जीवन में अनादि ने बहुत तूफान झेले हैं।उसके असंख्य सपने टूटे हैं।अवहेलना, व्यर्थता, निराशा और प्रेमहीनता की स्थिति में कभी-कभी उसने आत्महत्या के बारे में भी सोचा है।इस तरह के व्यक्ति के साथ कोई क्या छल या चालाकी करेगा!

हैलो! आर यू देयर?

बोलिए!

तुम राज़ी हो?

बोलते रहिए।

तुम्हारे प्रोफाइल से पता चला, तुम इसी महानगर में रहते हो।तुम्हें एक अपार्टमेंट का पता भेजा जाएगा।उसके भीतर घुसने में तुम्हें दिक्कत नहीं होगी।उसी फ्लैट में वह महिला रहती है जो तुम्हारा टार्गेट है।

मतलब? मैं महिला का…

यस, इजी टार्गेट।इसके लिए तुम्हें पांच लाख रुपये मिलेंगे।आधी रकम काम से पहले।यस ऑर नो? हाँ या ना?

अनादि फोन संभाल कर रख देता है।जीवन में उसने न जाने कितनी चीजें करने की कोशिश की।पचास से भी अधिक इंटरव्यू दिए।छोटामोटा व्यवसाय भी शुरू किया।कभी आगे भाग गया, तो कभी छोड़कर वापस चला आया।संसार में क्या उसके लिए कोई जगह नहीं रही।दुनिया को क्या एक ग्रेजुएट सख़्त, समर्थ लौंडे की कोई जरूरत नहीं? उसका क्या कोई भविष्य, कोई आश्रय नहीं?

अकसर ही भैया-भाभी के कमरे से यह कटुक्ति उछलती है कि अब और कितने दिन ऐसे बैठे बैठे…।देश के हालात ठीक नहीं हैं।बहुत सारी मल्टीनेशनल कंपनियां भाग गई हैं।बहुत सारी कंपनियों ने कर्मचारियों की छंटनी आरंभ कर दी है।भैया दिल्ली की जिस कंपनी में काम करते हैं, उसका रिजनल ऑफिस बंद होनेवाला है।

उसका मोबाइल रह-रह कर कांप उठता है, जैसे वाइब्रेट होकर बार-बार वह अपने अस्तित्व से अवगत कराना चाहता हो।

उस वर्चुअल ‘वायरस’ का सवाल स्क्रीन पर बार-बार उभरता है यस ऑर नो?

 

सिगरेट का लंबा कश लेकर अनादि ने उसका धुआँ लॉकडाउन की स्वच्छ हवा में बेफिक्री से उड़ा दिया।कहीं से रात का एक पंछी बोल उठा।अनादि के साथ कोई अगर इस तरह का छल कर सकता है तो वह भी तो उसके साथ थोड़ा-सा खिलवाड़ कर ही सकता है।मोबाइल खोलकर उसने उत्तर दिया,

यस!

गुड।मैंने उस महिला के अपार्टमेंट के संबंध में विस्तृत जानकारी भेजी है।तस्वीर भी भेजी है।योर टाइम स्टार्ट्स नाउ।किसी भी समय लॉकडाउन समाप्त हो सकता है, उससे पहले ही तुम्हें उस महिला की हत्या करनी है।

क्यों? लॉकडाउन में ही क्यों?

क्योंकि लॉकडाउन खुलते ही घर में काफी लोग आ जाएंगे।कैंपस सिक्योरिटी वालों की संख्या भी बढ़ जाएगी।शुभस्य शीघ्रम्।देरी मत करो।

मेरा ऐडवांस? सिगरेट भी ख़त्म चुका है।ज्यादा पैसे देकर ब्लैक में सिगरेट खरीदने के पैसे मेरे पास नहीं हैं।अनादि ने वायरस के सामने अपने सेंस ऑफ ह्यूमर का प्रदर्शन किया।

डन।मिल जाएगा।

छत अस्त-व्यस्त थी।चारों तरफ पेशाब, साबुन और कूड़े की गंध फैली हुई थी।छत की अराजक स्थिति और दुर्गंधमय वातावरण के बावजूद अनादि वहीं रुका इंतज़ार करता रहा।गंदी बस्तियों की तरह चार-पाँच गंदे फ्लैट अराजक रूप से आस-पास खड़े हैं।वहाँ सैकड़ों निम्न और मध्य वर्ग के लोगों का निवास है।सुबह चींटियों की तरह लोग कतार में जीविकोपार्जन की लड़ाई के लिए निकल पड़ते हैं।रात को थके-हारे घर लौटते हैं।लेकिन यह एक अजीब स्थिति है कि वायरस के डर और आतंक से लोग दिनोंदिन घर में दुबके हुए हैं।लोग बेवजह मौत से डरे हुए हैं।भोजन के लाले पड़ने वाले हैं।बाहर जो छिटपुट स्टोर खुले हैं, उनमें दूध और बिस्कुट के लिए हाहाकार मचा है।लोग अधिक कीमत देकर भी राशन खरीद रहे हैं।फिर भी सबको नहीं मिल पा रहा है।खेतों में लगी फसलें नष्ट हो रही हैं।फल-मूल, साग-सब्जी नष्ट हो रहे हैं।किसान हताश हो गए हैं।मिट्टी के तेल के अभाव में बस्तियाँ अंधकार में डूब गई हैं।अनादि का सिगरेट ख़त्म हो गया है।देश क्या सचमुच किसी अकाल की चपेट में है?

गैस ख़त्म होनेवाली है।पहले से बता रही हूँ।कोई व्यवस्था नहीं हो पाई तो भोजन पानी बंद।रसोई से भाभी की भन्नाई हुई आवाज आ रही है।घर में दो-दो मर्द बैठे हैं।फिर भी मुझे ही इस बारे में माथापच्ची करनी पड़ती है।भाभी का इशारा अनादि की ओर भी है।टी.वी. के सामने बैठे भैया भी एकाध प्रत्युत्तर दिए जा रहे हैं।अनादि जानता है कि इसके बाद एक गरमागर्म वाक्-युद्ध छिड़ सकता है।वह असहज हो उठता है।पास के कमरे से बूढ़ी माँ की चिरपरिचित आवाज़ सुनाई पड़ती है, मुझे उठा लो प्रभु अब और कितना कष्ट दोगे? यह जो कोरोना आया है न उसे ही कहो प्रभु मुझे उठा ले!!

इस विषम परिस्थिति में पांच लाख रुपये की कल्पना से ही मन खुश हो जाता है।लेकिन अनादि जानता है कि वायरस का सारा धमाल अब ख़त्म हो जाएगा।उसने जानबूझकर ही ‘वायरस’ से एडवांस की बात कही थी।एडवांस की बात करते ही उसके गप्प का दिया बुझ जाएगा।

उदासीन रूप से वह टी.वी. के पर्दे की तरफ देख रहा है।लॉकडाउन फिर बढ़ेगा क्या?

लेकिन अनादि के मोबाइल पर मैसेज टोन के साथ वायरस ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।ही इज सीरियस।अनादि को अपार्टमेंट का पता दिया।रात नौ बजे अनादि वहाँ जा पाएगा।सिक्योरिटी वाला अभी अकेला है जो पूरा काम देख रहा है।वह शाम को सोता है।रात ग्यारह बजे ड्यूटी के लिए उठता है।अपार्टमेंट के टैरेस पर गोदाम जैसा एक कमरा है जो खुला ही रहता है।वहाँ एक पुराना सूटकेस पड़ा होगा।उसमें ढाई लाख रुपये रखे होंगे।अपार्टमेंट के मेन गेट से घुसने की ज़रूरत नहीं है।मूल प्रवेशद्वार पार होकर क्लिनिंग स्टाफ के लिए एक छोटा-सा सर्विस गेट है।उस गेट से घुसकर पार्किंग के बीच से होकर सीधे जाने पर लिफ्ट मिल जाएगा।लिफ्ट का आखिरी पड़ाव पाँचवी मंज़िल है।फिर सीढ़ी से होते हुए टैरेस तक जाया जा सकता है।

अनादि ठिठक जाता है।देखते हैं।आलस्य भरे इस लक्ष्यहीन समय में पता नहीं यह कैसा उत्साह है।कोई नया गप्प लगता है।सिगरेट ख़त्म हो चुका है, इस बात की काफी तक़लीफ़ है उसे।कमरे का माहौल दमघोंटू हो चुका है।अभी तो कमरे से बाहर चलकर एक कप चाय पीने की बात सोची भी नहीं जा सकती है।सिगरेट के बिना उसे काफी बेचैनी हो रही है।कॉलेज के दिनों में उसने थोड़ा-बहुत पीना शुरू किया था।एक बार एक दोस्त के साथ ब्रह्मपुत्र के पार जाकर ड्रग्स टेस्ट करते समय पुलिस के जाल में भी फँसा था।लेकिन वह क्रिमिनल नहीं है।हजारों साधारण वंचित, स्वप्नहीन, प्रेमहीन मध्यवर्गीय युवकों की तरह असंख्य अपराधबोध के बावजूद अनादि अपने मजबूर वर्तमान में खतरे में पड़े अपने अस्तित्व के साथ चिपका हुआ है।

महिला की तस्वीर क्यों नहीं भेजी?

भेजी जा रही है।पहले एडवांस ले लो।वायरस ने उत्तर दिया।

बहुत रिस्क लेना पड़ेगा इस काम में।मुझे थोड़ा सोचने का समय चाहिए।

कोई बार्गेनिंग नहीं चलेगी।समय घटता जा रहा है।

मतलब? कुछ समय तक चुप्पी छाई रही। ‘वायरस’ जैसे ठिठक गया हो।

दस लाख पर बात पक्की करते हैं।आज रात मेरे बताए गए निर्दिष्ट जगह से पाँच लाख ले जाओ।कोई दिक्कत नहीं है।अपार्टमेंट का सी.सी.टी.वी. कैमरा ख़राब है।लॉकडाउन ख़त्म न होने तक कोई टेक्निशियन नहीं मिलनेवाला।वायरस ने प्रस्ताव को अचानक और लोभनीय बना दिया।

आप क्या मुझे कोई क्रिमिनल समझते हैं?

अभी पाँच लाख रुपये तुम्हारी प्रतीक्षा में हैं।आकर उन्हें ले जाओ।

आप करना क्या चाहते हैं? यह क्या खेल है?

काम पूरा होने पर उसी जगह से पांच लाख रुपये और ले जाना।पूरे दस लाख रुपये।यही फाइनल एमाउंट है।इसके अलावा मेरे हाथ में नकद रुपये नहीं हैं।

बेचैन होकर अनादि सीढ़ियों से उतर आया।घर में बंद आदमी टी. वी. के सामने बैठकर वायरस के आक्रमण की ख़बर देख रहा है।प्रायः हर फ्लैट से हज़ारों हज़ार मौत की ख़बरें गूँज रही हैं।अमेरिका बिखर गया है।यूरोप दिशाहारा हो गया है।चीन में संक्रमण फैल गया है।जापान में इमर्जेंसी लगी है।

लेकिन अनादि के लिए? क्या कुछ बहुत भयावह घटने वाला है? क्या सचमुच यह कोई लाइफचेंजिंग गेम है? अनादि फिर छत पर चला गया।उसने इधर-उधर देखा।तीसरे तल्ले के बीतू सरकार की पत्नी कपड़े पसार रही है।उसने बेतरतीब ढंग से कपड़े पहन रखे हैं।अनादि को देखकर भी उसे न देखने का भान किया।फर्स्ट फ्लोर के चौधरी बाबू मक्खी की तरह भुनभुनाकर किसी से बातें कर रहे हैं।वैसे उनकी हमेशा शिकायत रहती है कि उनके फ्लैट में टावर बिलकुल नहीं मिलता।इसलिए वह नेटवर्क की तलाश में अकसर छत पर चले आते हैं।उन्होंने लूंगी पहन रखी है।सीना खुला पड़ा है।

ऐसा लग रहा है जैसे सीने से लेकर पेट के निचले हिस्से तक घने बालों की प्रदर्शनी लगी हो।फोन पर बातें ख़त्म हुईं तो अनादि की तरफ उनकी नज़र पड़ी।उन्होंने उसकी तरफ एक अधूरी लज्जा में लिपटी हँसी उछाल दी।अमेरिका की हालत बहुत ख़राब है क्या? ह्वाइट हाउस शायद बहुत नर्वस है? हॉलीवुड के सभी कलाकर अपने बंद घर में दुबके हुए हैं? सारे के सारे कैपिटलिस्ट बास्टर्ड हैं।मरें अब!!

अनादि ये समझ नहीं पाता कि अमेरिका के प्रति चौधरी बाबू इतने ऑब्सेशिव क्यों हैं।उसने सिर हिलाकर उत्तर दिया।शाम को अँधेरा होने और स्ट्रीट लाइट जलने से पहले-पहले अनादि रास्ते पर निकल पड़ा।उसकी पीठ पर एक बैग है जिसमें दो बोतल सैनिटाइजर और एक बोतल पानी है।गूगल मैप पर अपार्टमेंट का लोकेशन देख चुका है।वह जगह कहां हो सकती है इसकी एक रफ धारणा उसके दिमाग में बन चुकी है।मुख्य सड़क के पास पहुँचते ही वह ठिठक गया।जनजीवन विहीन निष्प्राण यह सड़क बिलकुल मरुभूमि-सी लग रही है।लाइन से सभी दुकानों और शो रूम के शटर बंद पड़े हैं।फुटपाथ पर दो कमज़ोर क्षुधातुर कुत्ते सोए पड़े हैं।कहीं दूर से ऐंबुलेंस के सायरन की आवाज़ सुनाई पड़ी।डिवाइडर पर लगे फूल के पौधे अद्भुत रूप से हरे भरे हो रखे हैं।आसमान एकदम नीला हो गया है।मुक्त हवा उमंग में नृत्य कर रही है।

मानव सभ्यता क्या धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगी? रास्ता पार कर वह जल्द ही किसी गली में घुस गया।लंबी सुनसान गली में उसने देखा एक तरफ दो परित्यक्त ठेलागाड़ी पड़ी हुई हैं, लाइन से सभी गुमटियाँ बंद हैं, बॉम्बे स्टार नामक सैलून भी बहुत दिनों से बंद पड़ा है।गली में क्रमशः अंधेरा बढ़ता जा रहा है।कहीं-कहीं खुली खिड़कियों से निकल कर न्यूज़ के टुकड़े फिज़ा में तैर रहे हैं।चीन में पुनः वायरस का आक्रमण।कल सुबह प्रधानमंत्री देश को संबोधित करेंगे।क्यूबा वैक्सीन तैयार करने में सफल।जल्द ही मनुष्यों पर वैक्सीन का परीक्षण शुरू होगा।

कितना निर्जन है अनादि का पथ! कितना लक्ष्यहीन! कितना सारहीन! जबकि ऐसा होने की बिलकुल भी बात नहीं थी।अनादि के पास सपने थे, उसके जीवन में भरपूर रंग थे और सबसे बड़ी बात कि उसके जीवन में इच्छाएँ थीं।उसने काफी तेज़ी से सफलता पाने की कोशिश की।ये सभी बातें याद करने का अभी क्या कोई मतलब है? वो भी आज जबकि एक गहरा अकेलापन अनादि को लील जाना चाहता है।वह जल्दी ही एक रेलक्रॉसिंग पार कर गया।एक सँकरी गली और सीढ़ियों से होता हुआ रास्ते पर चला आया।सावधानी से रास्ता पार हुआ।इस वक़्त अनादि को एक सिगरेट की काफी ज़रूरत है।

अपार्टमेंट खोजने में अनादि को कोई ख़ास दिक्कत नहीं हुई।यह एक पॉश इलाका है।उसका पथ प्रशस्त है।चारों तरफ एक तरह की सुश्रृंखलता और स्वच्छता है।इसके बीच वह भव्य भवन खड़ा है।उस भव्य भवन का प्रवेशद्वार सिंहद्वार की तरह विशाल है।पास ही एक और बिल्डिंग है जिसका निर्माण कार्य शायद लॉकडाउन के कारण बंद पड़ा है।रास्ते पर ही किसी उधेड़बुन में रुककर अनादि ने इधर-उधर देखा।जैसा कि उसे बताया था, उसने पाया कि बिल्डिंग की बाउंड्री के एक कोने पर एक छोटा-सा सर्विस गेट है।

निश्चित जगह पहुँचकर भी अनादि से एकदम अपार्टमेंट में घुसा नहीं गया।धीरे-धीरे बिलकुल सावधानी से वह पास के निर्माणाधीन बिल्डिंग में चला गया।सीढ़ी से ऊपर चढ़ने लगा।फ्लैट प्रायः तैयार है पर फिनिशिंग का काफी काम अभी बाकी है।खिड़की दरवाज़ों का काम भी बाकी है।रेलिंगहीन सीढ़ियों से होता हुआ वह पांचवी मंज़िल पर पहुँचा।यहां से बगल वाली बिल्डिंग उसे एकदम साफ-साफ दिखाई पड़ती है।उस भव्य भवन की उसी मंज़िल पर उसका टार्गेट है।समानांतर रूप से खड़ी उस अर्धनिर्मित बिल्डिंग से अनादि काफी सावधानी से अपनी टार्गेट बिल्डिंग का अवलोकन करता है।अंधेरा होने लगा है।अचानक स्ट्रीट लाइट जल उठता है।वह आश्वस्त हो जाता है कि सर्विस गेट से धुसने में उसे किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होनेवाली।अपार्टमेंट खूब आलोकित हो उठा है।सभी मंजिलों की लाइट भी एक-एक कर जल चुकी है।पांचवी मंजिल का एक हिस्सा अंधकारमय है, दूसरी तरफ की बत्तियां जल रही हैं।लंबी चौड़ी बालकनी है जिसमें बड़ा-सा कांच लगा है और हल्के रंग का पर्दा भी लगा हुआ है।इस समय तक उसे आस-पास किसी सिक्योरिटी गार्ड का आभास नहीं हुआ।ख़ुदा न खास्ता अगर सिक्योरिटी गार्ड से सामना हो ही जाए तो उसके पास प्लान बी तैयार है।वह अपना परिचय सैनिटाइज़ करने वाले के रूप में देगा।इसे प्रमाणित करने के लिए उसके बैग में सैनिटाइज़र की बोतलें पड़ी हैं।

अपने लक्ष्य स्थान तक जाने के लिए वह अर्धनिर्मित बिल्डिंग की सीढ़ियों से उतरने को हुआ कि उसके समानांतर खड़े भव्य बिल्डिंग की उस निश्चित बालकनी में उसे एक महिला दिखी।अंधकार प्रकाश के खेल में वह कुछ समझ पाए इससे पहले ही बालकनी का पर्दा खींच दिया गया।एक मुहूर्त में सब गायब हो गया।अनादि के शरीर में जैसे कोई करंट दौड़ गया।

उसने तुरंत अपने को संभाला।क्या यही उसका टार्गेट है? उसने अपने मन को विचलित होने से रोका।उसका चेहरा कठोर हो गया।

अपार्टमेंट की चौहद्दी से लगे छोटे सर्विस गेट से अनादि घुसा।कार पार्किंग के बीच से होकर वह लिफ्ट तक पहुँचा।अत्याधुनिक लिफ्ट में चढ़कर उसने पाँचवी मंज़िल का बटन दबा दिया।पूरी बिल्डिंग की वही आख़िरी मंज़िल है।उसके बाद टैरेस के लिए सीढ़ी है।पाँचवी मंज़िल पर दो फ्लैट हैं।उनमें से एक खाली पड़ा है।कम से कम कोई आवाज़ या कोई हरकत तो नहीं ही है।अनादि को जो पता दिया गया है, वह उसी तरफ का है।यह पता अभिषेक दत्त का है।अनादि जल्दी से सीढ़ियों से होता हुआ ऊपर टैरेस की तरफ बढ़ गया।टैरेस काफी बड़ा और साफ-सुथरा था।कहीं थोड़ा भी कचरा नहीं था।टैरेस का आधा हिस्सा कॉमन एरिया है और बाकी के आधे हिस्से में अभिषेक दत्त ने बागवानी कर रखी है।उसमें बैठने के लिए लोहे की बेंच लगी है, झूला भी लगा है।कुल मिलाकर यहाँ एक सुंदर परिवेश तैयार किया गया है।यह पूरा हिस्सा लोहे की रेलिंग से घिरा हुआ है।समय बर्बाद किए बिना अनादि उस स्टोर रूम की तरफ बढ़ा जो कॉमन एरिया में है।दरवाज़े की किल्ली खोली।भीतर काफी अंधेरा था।इस अंधेरे में उसे कुछ चीज़ें दिखाई पड़ीं।दो दूटी कुर्सियाँ, एक बोर्ड, कुछ मैग्ज़ीन, एक साइकिल, एक कम्प्यूटर मॉनिटर और एक गिटार, जिसके तार टूट चुके हैं।गिटार के ठीक पीछे उसे एक गाढ़े रंग का बैग दिखा।जैसे उसे कहा गया था ठीक उसी तरह वह बैग वहाँ पड़ा था।किसी फिल्म की पटकथा की तरह सबकुछ हू-ब-हू वैसे ही घट रहा था।ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं नियति ही इसका निर्देशन कर रही हो।

उसने अपने आपसे एक सवाल किया कि कहीं फिर वह किसी वंचना का शिकार तो नहीं हुआ? कोई धोखा तो नहीं हुआ उसके साथ? होठों के नज़दीक आकर पानपात्र कहीं गिर तो नहीं जाएगा? इधर-उधर देखकर उस काले बैग को थोड़े उजाले में लाकर उसने खोला

५०० रुपये के १० बंडल पड़े थे उसमें ।यानी पूरे पांच लाख रुपये।

अनादि के लोभी हाथ पैसों को स्पर्श करना चाहते हैं।रुपये के बंडलों को अपने बैग में भर कर खाली बैग को उसने अंधेरे में फेंक दिया।फिर बिना रुके जल्दी से वह सीढ़ियों से उतरा।लिफ्ट की तो उसे याद ही नहीं आई।उसकी सांसें काफी तेज़ चलने लगीं।तुरंत ही उसने अपने को रास्ते पर पाया।उजाले उसे उस वक़्त अपने दुश्मन लगे।उसे महसूस हुआ कि स्ट्रीट लाइट के उजाले किसी प्रहरी की तरह उसकी तरफ देखे जा रहे हैं।

उसकी चाल काफी तेज़ हो गई।प्रायः दौड़ते हुए  वह एक गली में घुस गया।रास्ते पर उसे पत्थर से ठेस लगी और वह गिरते-गिरते बचा।पीठ पर टंगे बैग को टटोलकर उसने सुनिश्चित किया कि वह अब भी पीठ पर ही है।गली के दूसरे छोर से उसे एक थका हुआ कुत्ता आता हुआ दिखा।गली के दोनों तरफ की खिड़कियों से आते रोशनी के टुकड़े गली में पड़े हैं।रात उतर रही है धीरे-धीरे।निर्जनता रात को भयावह और आक्रामक बना रही है।किसी बाधा, रुकावट या अवरोध के बिना ही उसे घर पहुँचना है।मुख्य सड़क पर बीच-बीच में पुलिस पेट्रोलिंग जारी है।उसे सावधान रहना है।उसका गला सूख रहा है।उसने सिगरेट की गहरी तलब महसूस की जबकि पूरे रास्ते एक भी दुकान खुली नहीं थी।आधी छाया और आधी रोशनी के बीच अनादि तेज़ी से आगे बढ़ता जा रहा है।खाली गली में उसने खुद को अपने ही प्रेत की तरह महसूस किया।उसने सोचा, यह स्वप्न है या कोई दुःस्वप्न! अब क्या? क्या वह ‘वायरस’ द्वारा सौंपे गए काम को पूरा करने के लिए बाध्य है? उसका जीवन क्या कोई नया मोड़ ले रहा है?

सीढ़ियों से होता हुआ अनादि अपने घर में घुसा और बिस्तर पर लेट गया।बैग को एक कार्टून में ठीक से रख कर उसने उसे बेड के नीचे डाल दिया।मोबाइल वाइब्रेट हुआ।कई मैसेज आए।पर अनादि अब उस चक्रव्यूह से कुछ देर के लिए अलग रहना चाहता है।इतने पैसे उसे मिले हैं, यह उसके लिए किसी जादू से कम नहीं है।वह इन पलों को थोड़ी देर जी लेना चाहता है।अभी वह अद्भुत एहसासों के बीच डूब-उतरा रहा है।धीरे-धीरे उसकी पलकें झपकने लगीं।

सुबह खाने की मेज पर एक हलचल मची।कोरोना वायरस का वैक्सीन बनेगा।इससे रिहाई मिलेगी।टी. वी. पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रहा है।अमेरिका के वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि नवंबर से पहले बाज़ार में इस वायरस का एंटीवायरल उपलब्ध होगा।

अब नवंबर तक बच गए तो समझो बला टली।किचेन से भाभी की आवाज़ आई।

 वैसे भी कच्ची हल्दी, लहसून वग़ैरह लेने पर इस रोग से छुटकारा मिल सकता है।भैया अपने विचार रखते हैं।असल में यह सब मेडिसिन कंपनियों का खेल है।अब वैक्सीन के नाम पर करोड़ों का व्यवसाय होगा।देखते रहो।

बाकी दिनों की तुलना में सुबह घर का परिवेश ठीक-ठाक था।सभी मंत्रमुग्ध होकर टी.वी. के सामने बैठे हैं।बीमार माँ भी टी.वी. देखकर सिर हिला रही है।पिकलू ने मोबाइल की तरफ निरंतर झुका अपना सिर उठाकर पूछा, वैक्सीन का इंजेक्शन लेने पर दर्द तो नहीं होगा न! घर का परिवेश सकारात्मक है।खिड़की से स्वच्छ हवा आ रही है।कहीं दूर से किसी पक्षी की आवाज़ सुनाई पड़ी तो अनादि को अचानक महसूस हुआ जैसे लॉकडाउन में क़ैद पृथ्वी बहुत ही मनोरम और सुंदर हो गई है।जीवन को जैसे बिलकुल नई तरह से शुरू किया जा सकता है।भोर के प्रकाश की तरह उम्मीद, आनंद और विश्वास  पृथ्वी पर उतर रहे हैं धीरे-धीरे।बिस्तर से उठकर अनादि ने फिर एक बार पैसों से भरे बैग को टटोला, यह जांचने के लिए कि कहीं यह सपना तो नहीं।

लेकिन किसी समय उसे निर्देश तो मिलने ही थे।चाय पीकर उसने मोबाइल उठाया तो देखा कि ‘वायरस’ के एकाधिक मैसेज पड़े हैं- कंग्राचुलेशंस! मेरे निर्देशों का अनुसरण कर तुम्हें पैसे मिल गए।अब काम की बात पर आओ।

अनादि ने अपने को किसी दायित्व तले दबा हुआ महसूस किया।

कहिए।

समय खिसकता जा रहा है।जल्दी से काम पूरा करो।

तस्वीर अभी तक नहीं मिली है।

कुछ सेकेंड के अंदर तुम्हें मिल जाएगी।

मैं एक बार घर के अंदर जाकर उसका मुआयना करना चाहता हूँ।वहाँ की स्थिति भाँपना चाहता हूँ।सैनिटाइज़ करने के बहाने जा सकता हूँ।अनादि ने होशियारी दिखाई।

हम्म।

एनी प्रॉब्लम!

ठीक है।कल आ जाओ।काफी जटिल समय है।ग़लती की कोई गुंजाइश नहीं।और पांच लाख रुपये तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।एक गलती और सबकुछ बिगड़ सकता है।तस्वीर भेजी है।देख लो।

पलक झपकते ही मैसेंजर पर तस्वीर आ गई।कुछ देर के लिए अनादि स्तब्ध हो गया।बादल जैसे केश, मासूम होंठ और गहरी नीली आंखों वाली वह भोलीभाली उदास महिला जैसे उसकी तरफ अपलक देखे जा रही है।अनादि के हाथ कांप उठे।उसे एक धुँधलीसी याद आई।उसे इसी तरह के एक चेहरे और ऐसी ही आँखों की धुँधलीसी याद आ गई, जिन्हें वह भूल जाना चाहता है।मन से पोंछ देना चाहता है।

थैंक्यू! तस्वीर मिलने पर उसने लिखा।

इस समय पांच या दस लाख रुपये मिलना कोई छोटी बात नहीं है।इन पैसों से वह छोटा-मोटा ही सही अपना काम शुरू कर सकता है।भैया की स्कूटी काफी पुरानी हो चुकी है।अकसर खराब हो जाती है।एक नई स्कूटी खरीद सकता है।एक महंगी साड़ी ख़रीद देने पर भाभी को अच्छा लगेगा।मां की दवा का खर्च अनादि अब ख़ुद ही उठाने में सक्षम होगा।

पिकलू तुम्हें मोबाइल चाहिए?

मुझे आई फोन चाहिए।दीजिएगा?

दूंगा।मन लगा के पढ़ाई करो।अनादि ने अचानक भैया की तरफ मुख़ातिब होकर पूछा- मां की दवा में महीने का कितना खर्च बैठता है भैया?

कोई लौटरी लगी है क्या? अनादि की बातें सुनकर भाभी ने मजाक में कहा।

दूसरे दिन सुबह ही अनादि तैयार हो गया।बढ़िया से नहा-धो लिया।ठीक से बाल संवारे।दाढ़ी के बाल बेतरतीब बढ़े थे, थोड़ी छंटनी कर के उनको ठीक किया।आईने में चेहरा निहारा यह देखने के लिए कि इंप्रेसिव लग रहा है या नहीं? जूते गंदे पड़े थे।उनको साफ किया।

शाम को अंधेरा होने से पहले ही भरपूर आत्मविश्वास के साथ अनादि अपार्टमेंट के प्रवेशद्वार पर आ खड़ा हुआ।सिक्योरिटीवाले ने भीतर से ही पूछा

कहां जाना है?

5(ए), सैनिटाइज़ेशन का काम है।

हां, मुझे ख़बर है।आइए।

दिन के उजाले में भवन और उसके परिवेश का वैभव देखकर अनादि दंग रह गया।चारों तरफ विदेशी फूलों के पौधे और उनकी आभा बिखरी है।एक छोटा-सा पार्क है।इस वक्त यहां कोई नहीं है।बड़ी कंपनियों की महंगी और खूबसूरत गाड़ियां जिनके नाम तक वह नहीं जानता, पार्किंग की शोभा बढ़ा रही हैं।पूरा फ्लोर पत्थर की संरचना वाली महंगी टाइल्स से बंधवा दिया गया है।फ्लैट नं. ५(ए) के सामने पहुँचकर अनादि ने कॉलिंग बेल का बटन दबाया।थोड़ी देर के बाद ही दरवाज़ा खुला।सामने अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति खड़ा था।

सैनिटाइज़र? वेल, कम इन।उस आदमी के पीछे-पीछे अनादि भीतर आ गया।यही अभिषेक दत्त हैं।बालों का घनापन कम हो गया है।पेट पर चर्बी जम गई है।लेकिन चेहरे और काया से यह आदमी स्वस्थ लगता है।गालों पर करीने से तराशी गई छोटी दाढ़ी की नीली आभा है।चाल में एक ख़ास ढंग का आभिजात्य है।अनादि जितना ही फ्लैट के अंदर प्रवेश करता गया, अभिनव वैभव देखकर उतना ही हैरान होता रहा।उसने सोचा, एक दरवाज़े की आड़ में कितना प्राचुर्य छुप सकता है।एक विशाल ड्रॉइंग रूम है जिसकी दीवार में टंगी एक विशाल प्लाज्मा टी.वी. और कई दुर्लभ पेंटिंग्स भी हैं।शो केस में देश विदेश से लाई गई सजावट की चीज़ों का भंडार है।एक प्राचीन दीवार घड़ी से हर सेकेंड की आवाज छिटक कर बाहर आ रही है।

अच्छा, ये बताओ कि सैनिटाइज़ करने में तुम्हें कितना समय लगेगा? काम कब करोगे? अनादि तुरंत दत्त साहब का इशारा समझ जाता है।वह सोचता है कितना स्मार्ट है यह आदमी।चेहरे पर एक क्रूर हँसी है।दोनों आँखें ऐक्स-रे जैसी हैं जो मनुष्य की काया को भेद कर अंदर तक जाती हैं और सामने वाले आदमी के लक्ष्य, उद्देश्य और सामर्थ्य तक का पता लगा लेती हैं।

जल्दी ही हो जाएगा।पर मुझे कुछ बातें जाननी हैं।एक बार बाहर-भीतर ठीक से देख लेना होगा।मेरा स्टाफ आकर काम कर जाएगा।आपलोगों को किसी तरह की कोई असुविधा नहीं होगी।अनादि जैसे कोई प्रत्युत्तर देने की कोशिश करता है।वह इधर-उधर देखता है जैसे कुछ ढूंढ रहा हो।

गुड! दत्त बाबू ने कहा।जितनी जल्दी संभव हो इस काम को निपटाओ।ये वायरस बहुत ही डेंजरस  है।द बिगेस्ट पैंडेमिक इज़ नॉट द वायरस इटसेल्फ, इट इज़ द फीयर एंड अनसर्टेनिटी।बिजनेस को बर्बाद कर दिया इसने।हमें कई असाइन्मेंट्स क्लोज़ करने पड़े।अभिषेक दत्त बहुत बीज़ी आदमी हैं।बार-बार उनके मोबाइल पर कॉल आती है और वह व्यस्त हो जाते हैं।मोबाइल पर बातें करते हुए वह लगातार इधर-उधर टहल रहे हैं।उनकी उपस्थिति थोड़ी असहजता और थोड़ा विस्मय बढ़ा रही है।लेकिन वह समझ तो नहीं पा रहे हैं कि यहाँ कितनी भयानक घटना घटनेवाली है।

जितनी जल्दी संभव हो काम को पूरा करो।वह फिर बोल पड़े।उनकी आंखें नाच उठीं।उनके चेहरे पर किसी तरह का कोई अपराधबोध नहीं है।

दो फ्लोर हैं आपके?

हां, ऊपर टैरेस पर एक पेंट-हाउस जितना एरिया है।इस फ्लोर का एरिया लगभग फोर थाउजेंड स्क्वायर फीट का होगा।

अनादि को आश्चर्य हुआ।इतने बड़े दैत्याकार फ्लैट में मात्र दो लोग रहते हैं।वह इंटेरियर का सौंदर्य निहारने लगा और उस पर मोहित होता रहा।चारों तरफ से आभिजात्य और ऐश्वर्य छिटक रहा था।

मैं यहां अधिक नहीं रह पाता।अभी हर तरह का कम्युनिकेशन बंद है।लगभग महीने भर से घर के भीतर बंद रहना पड़ा।वायरस से कितने लोग मरे यह इंपॉर्टेंट नहीं है।इट किल्स बिज़नेस, दिस इज़ इंपॉर्टेंट।उन्होंने स्वगतोक्ति की तरह ये बातें कहीं।डिस्गस्टिंग।फिर अचानक पुकारने लगे- अलि, अलि!

उसी समय पर्दा हटाकर वह महिला अंदर आ गई।वही उदास चेहरा, गहरी नीली आंखें।बाजुओं तक लटकते बाल।अनादि से गलती होने की अब कोई संभावना नहीं।अभिषेक दत्त ने अनादि के सामने लाने के लिए ही अपनी पत्नी को वहां बुलाया।साला कितना नृशंस और कठोर आदमी है! अनादि ने मन ही मन कहा।इस महिला ने क्या अपराध किया है? अनादि ने अलि को अपनी तरफ देखते हुए देखा।वही गहरी-नीली आंखें, वही शांत-सुंदर चेहरा! वह जैसे छिन्न-भिन्न हो गया।

अलि इसी सप्ताह सैनिटाइज़ेशन का काम कर लेना होगा।बहादुर को समझा देना।घर की सभी चीजें ठीक से सुरक्षित रखनी होंगी।अभिषेक दत्त ने अधिकार के साथ निर्देश दिया।

बहुत स्ट्रंग तो नहीं है न, किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी न? अभिषेक दत्त ने उदासीन ढंग से पूछा।

नहीं, घर के भीतर बहुत अधिक स्प्रे नहीं होगा।बाहर ही होगा।बाल्कनी, रेलिंग, सीढ़ी, ऊपर का टैरेस, बाहर का बारामदा…कोई दिक्कत नहीं होगी।

गुड, अभिषेक दत्त ने जैसे उसे इधर-उधर देखने का मौका दिया।

तभी अनादि ने बहादुर को देखा।वह ट्रे में एक कप चाय लेकर भीतर से निकला।छोटे कद और स्थूलकाय शरीर का मालिक।उम्र करीब साठ वर्ष की रही होगी।हाफ शर्ट के ऊपर उसने एप्रन पहन रखा है।घर में एक तीसरा आदमी भी है।अनादि ने जल्दी से स्थिति को भांप लिया।

क्या आप चाय पिएंगे? महिला ने कहा।कोमल तापहीन आवाज़।

न, न, न।नर्वस होकर उसने एक साथ कई बार ना ना कहा।थैंक्यू।फिर उसने एक कलम मांगी ताकि वह एरिया का कुल हिसाब कर सके।जेब से काग़ज़ निकाल कर वह कुछ नोट करते हुए समय काटने लगा।वह महिला बिलकुल स्थिर होकर किसी बुत की तरह खड़ी रही।

कितना भयानक समय है! अभिषेक दत्त ने बहुत विरक्ति के साथ कहा।एवरी डे इज सनडे नाउ।यू आर प्रोफेशनल पिपुल ऐसे समय बर्बाद नहीं कर सकते।कवियों और साहित्यकारों की बात अलग है।अपने मजाक पर अभिषेक दत्त ख़ुद ही हँस पड़े।उन्हें ये पता ही नहीं कि देयर इज़ नो स्पेस फॉर लिटरेचर इन दिस वर्ल्ड, एंड यू नो पोएट्री इज़ जस्ट अ डाइंग आर्ट।कुछ अप्रासंगिक बातें भी वो कह गए।अनादि स्वीकारोक्ति में ज़ोर से सिर हिलाने ही वाला था कि रुक गया।बेकार के उत्साह प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं बनता।आज उसका लक्ष्य कुछ और है।अनादि ने चोरी से नजर तिरछी कर उस महिला को देखा।वह उसी की तरफ देख रही थी।

अनादि अपार्टमेंट से निकल पड़ा।सिक्योरिटी वाला नहीं दिखा।अंधेरा बढ़ने लगा है।स्ट्रीट लाइट जल पड़े हैं।उसके मन में ये सवाल उठे कि क्या कविता की मृत्यु हो गई है? इसकी घोषणा किसने की? साला वायरस।लेकिन अनादि इस वक़्त घोर आशावादी हो गया है।उसे पैसों की सख़्त जरूरत है।इसी बीच वह ये काम पूरा करने के लिए खुद को तैयार भी कर चुका है।

वह बगलवाली अर्धनिर्मित बिल्डिंग पर चढ़ गया।पांचवी, छठीं मंजिल पर बार-बार चढ़ता-उतरता रहा ताकि अभिषेक दत्त की बिल्डिंग का ठीक से मुआयना कर सके।काफी देर तक वह फ्लैट में उस वक्त उपस्थित तीनों लोगों की गतिविधियों को देखता रहा।रात गहराती जा रही थी।प्रोफेशनल अपराधियों की तरह अनादि इंतज़ार करता रहा।

बिस्तर पर लेटने के बावजूद उस रात काफी देर तक अनादि को नींद नहीं आई।क्या सचमुच कविता की मत्यु हो गई है? उसे बहुत दुख हुआ।दरवाज़ा खोलकर वह छत पर चला गया।नीचे लॉकडाउन से स्तब्ध हो चुकी धरती की तरफ वह देर तक निहारता रहा।उसे लगा जैसे मोबाइल पर कोई मैसेज आया है।

अब किस चीज का इंतजार कर रहे हो?

हम्म।

काम जल्दी पूरा करो।टैरेस के ऐटिक में पांच लाख रुपये तुम्हारे इंतजार में रहेंगे।काम खत्म होने के बाद आकर ले जाना।

लोभ, घृणा, ईर्ष्या और बदले की रक्तपिपासु भावना से भरी इस दुनिया में कविता कैसे बची रहेगी? दिमाग से दूसरी बातें निकालकर अनादि काम पर कॉन्सन्ट्रेट करने की कोशिश करने लगा।अगले दो दिन तक लगातार वह अंधेरा होने के बाद उस अर्धनिर्मित बिल्डिंग में फिर गया।लंबे समय तक वह वहां से उस अपार्टमेंट में उपस्थित तीनों लोगों की गतिविधियों का निरीक्षण करता रहा।बहादुर अधिकांश समय किचन की तरफ रहता है।अलि अधिकांशतः टेलीविज़न के सामने, बाल्कनी में या बेडरूम में अकेले रहती है।दत्त बाबू स्टडी या अपने कमरे में रहते हैं अकसर।लेकिन डिनर करने के बाद ठीक नौ बजे वह टैरेस पर चले जाते हैं।गेस्ट हाउस की तरफ अभिषेक दत्त सिगरेट पीते हैं।यह उनकी रोज की आदत है।घर के सभी लोग उसे एक-दूसरे से विच्छिन्न अलग-अलग द्वीप जैसे लगे।

तीसरे दिन अनादि तैयार हुआ।अंधेरा घिरते ही घर से निकल पड़ा।उसके सिर पर एक बेसबॉल कैप था, मुंह पर मास्क और पीठ पर वही बैग।कई बार आनेजाने से रास्तों, गलियों और रास्ते के कुत्तों और स्ट्रीट लाइट्स से जानपहचान हो गई है।यहां तक कि खिड़कियों से आते रोशनी के टुकड़ों से भी जानपहचान हो गई है।वह नहीं पहचानता तो बस मनुष्यों को।यह रक्तपिपासु बदले की भावना क्यों?

 वह फिर से सोचने लगा।निर्माणाधीन बिल्डिंग में वह घात मारे बैठा रहा।चार हज़ार स्क्वायर फीट के अपार्टमेंट में तीनों चरित्रों की हरकत फॉलो करता रहा।कैंपस में सिक्योरिटी वाले का पता नहीं था।भोजन पकाने के बाद शायद वह सोने चला गया हो।अभी-अभी दूर कहीं सायरन बजाते हुए पुलिस वैन गुजरी है।समय निकलता जा रहा है।असीम धैर्य के साथ अनादि इंतजार करता रहा।

डिनर हो चुका है।अभिषेक दत्त अभी सिगरेट लेकर ऊपर टैरेस पर चले जाएंगे।बहादुर किचन में उलझ जाएगा और नीचे अलि अकेली रह जाएगी।अनादि उस बिल्डिंग से लगभग उछलते हुए उतरा और सर्विस गेट से अपार्टमेंट में घुस गया।लिफ्ट में तुरंत चढ़ा और पाँचवी मंज़िल का बटन दबा दिया।पाँचवी मंज़िल पर अलि के दरवाज़े तक पहुँच कर वह रुक गया।फिर धीरे-धीरे बहुत सावधानी से कदम बढ़ाते हुए सीढ़ियों से होते हुए टैरेस पर चढ़ गया।

अभिषेक दत्त सिगरेट सुलगा रहे थे।टैरेस पर हल्की रोशनी थी।वहां जो कॉमन एरिया था वहां खड़े होकर उसने अभिषेक दत्त की ओर देखा।यह आदमी अलि को क्यों मारना चाहता है? अनादि ने यह पूछा नहीं।उलझन में वह अभिषेक दत्त की तरफ बढ़ा, गुड इवनिंग सर!

वह चौंक गया और सिगरेट उसकी उंगलियों के बीच फंसा जलता रहा।

कौन?

मैं हूँ सर।द सैनिटाइज़र मैन…।

ओ… मैं समझ नहीं पाया।

अभिषेक दत्त ने उत्तर दिया।फिर आवाज धीमी कर लगभग फुसफुसाते हुए उसने वह प्रश्न पूछा, मेरा काम कब पूरा होगा?

डोंट वरी सर! ज़रा लाइटर दीजिएगा? सिगरेट पीने का बहुत मन कर रहा है।

अभिषेक दत्त को थोड़ा आश्चर्य हुआ।लाइटर को उन्होंने टेबुल पर रख कर उसकी ओर खिसका दिया।

एक सिगरेट दीजिए प्लीज़! निर्लज्ज होकर अनादि ने सिगरेट मांग लिया।

हा हा हा! दिस इज़ इंट्रेस्टिंग।ऐन ओल्ड ट्रिक।अभिषेक दत्त ने एक श्लेषात्मक हँसी हँस दी।और सिगरेट का डिब्बा अनादि की ओर बढ़ा दिया।

आः! सिगरेट का कश लेकर अनादि मुग्ध हो गया।कितने दिन बाद वह सिगरेट पी रहा है।क्या सुगंध है! आनंद में उसने हवा में धुआं उड़ा कर ‘थैंक्यू सर’ कहा।

अभिषेक दत्त उसकी ओर देखते रहे।फिर अपने सिर को दोनों तरफ झटका दिया।

दैट्स ओके।लेकिन काम तो पूरा करो।बी प्रोफेशनल।

अनादि के चेहरे पर एक म्लान हँसी तैर गई।सहमति में उसने सिर हिलाया।

लेकिन क्यों? उसने फिर पूछा, आख़िर क्यों?

वायरस।उसने सब ख़त्म कर दिया है।

आपको पता है सर, जब से आपके साथ मुलाकात हुई है न, तब से मैं आपका फैन हो गया हूँ।जीवन में मैं बिलकुल आपकी तरह प्रोफेशनल होने की कोशिश करूंगा।

अभिषेक दत्त ने अनादि की ओर देखा।आंखों में आत्मविश्वास झलक रहा था।

आपका ऑटोग्राफ चाहिए मुझे।अनादि बोलता रहा।आपने कहा था न कि वायरस मनुष्यों को मार रहा है, यह इंपॉर्टेंट नहीं है।इंपॉर्टेंट यह है कि वह बिज़नेस को मार रहा है।ह्वाट अ लाइन सर!

आर यू मैड? इतना कहने के बावजूद अभिषेक दत्त की आवाज़ में प्रशंसा का स्वर था।आज तक किसी ने मेरा ऑटोग्राफ नहीं मांगा।

लेकिन आप आइडियल हैं सर! जेब से पेन निकालकर अनादि ने एक कोरा कागज उनकी तरफ बढ़ा दिया।ऑटोग्राफ प्लीज़ सर! और आप अपनी वो लाइन भी लिख दीजिए।

तुम तो बहुत ड्रामेबाज हो! काग़ज़ पर वह वाक्य लिखकर उपेक्षा के साथ अभिषेक दत्त ने साइन किया।लेकिन प्रोफेशनलिज़्म का मतलब ही होता है बेकार की बकवास किए बिना अपना काम सही समय पर ठीक ढंग से पूरा करना।

रिलैक्स सर! इतनी हड़बड़ी किस बात की? पेन और काग़ज़ वापस लेते हुए अनादि ने शांत भाव से कहा, लेकिन आप हमेशा सही नहीं हो सकते।उस दिन आपने कहा था न- पोएट्री इज़ डाइंग… उस समय आप गलत थे।कविता अब भी बची हुई है सर!

अभिषेक दत्त ने हँस दिया।हँसी में थोड़ी उपेक्षा और थोड़ी विरक्ति थी- ओके देन गुड नाइट!

चलता हूँ सर, लेकिन उससे पहले इस धरती की ओर एक बार देखिए।जनविहीन रास्ते की ओर देखिए।टैरेस के पारापेट वाल की तरफ खड़े होकर नीचे निस्सार धरती की ओर अनादि ने इशारा किया।आइए सर हारे हुए मनुष्य की बेआवाज़ कविता सुनिए।

अभिषेक मिनी वाल की तरफ बढ़े।दूर-दूर तक जनजीवन का कोई अस्तित्व नहीं।स्ट्रीट लाइट की रोशनी स्थिर बनी हुई है।पूरी धरती स्तब्ध पड़ी है।अभिषेक दत्त सिगरेट का एक आलस्य भरा कश लेकर उस छोटी दीवार के सामने मंत्रमुग्ध रूप से खड़े हैं।और दूर कहीं देखे जा रहे हैं।

थैंक्स फॉर द ऑटोग्राफ, सर!

अनादि ने काग़ज़ को मार्बल के टेबुल पर रख कर ऐशट्रे से उसे दबा दिया।नीला पेन भी वहीं बगल में रख दिया, जिसे उसने पिछले दिन अभिषेक दत्त के घर से लिया था।

फिर अचानक अनादि ने पूरा ज़ोर लगाकर अभिषेक दत्त को छत से नीचे धकेल दिया।

अंतिम खंड

अनादि एक क्षण के लिए रुका।उसने किसी भार के इतनी ऊंचाई से गिरने की आवाज़ सुनने की कोशिश की।टैरेस के पारापेट वाल पर अपने दोनों हाथ रख कर उसने नीचे की ओर देखा, निर्जीव अभिषेक दत्त वहीं पड़े हुए हैं।

वह जल्दी ही वहां से हट गया।कूद कर रेलिंग पार हुआ और कॉमन एरिया में चला आया।टूटी-फूटी अप्रयोजनीय चीज़ों के बीच मैग्ज़ीन के स्तूप के नीचे उसे वह बैग मिला जिसके गर्भ में नोट के बंडल पड़े थे।लिफ्ट रुका था।अनादि तेज़ी से उतर आया।अपार्टमेंट से निकल कर रास्ते तक आया और तेज़ चलने लगा।दूर कहीं पुलिस की गाड़ी हुटर बजाते हुए गुजरी।स्ट्रीट लाइट की रोशनी में उसे असुरक्षा महसूस हुई।वह पहली गली में ही घुस गया।अनादि उस संकरी गली में जोर से दौड़ने लगा।सांस लेने में दिक्कत होने लगी, तो उसने मुंह से मास्क हटा लिया।सिर से गोल्फ कैप उतार दिया।उसका पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया।मस्तक से होती हुई पसीने की बूंदों ने उसकी आंखों को ढंक लिया है।बैग में पैसे हैं, पानी और सैनिटाइज़र की बोतलें हैं।पीठ पर बैग के चिपके रहने से पीठ भी भींग चुकी है…

उसने ये क्या किया? ये क्या हो गया? उसने एक आदमी का ख़ून कर दिया! बार-बार हाथ धोने से भी ख़ून का यह दाग क्या मिट पाएगा? हो सकता है वह निर्मम हो, स्वार्थी हो या पत्थरदिल हो-अनादि उससे इतना क्षुब्ध क्यों हो गया? वह ख़ुद अपने को ही नहीं पहचान पा रहा था।रेलवे स्टेशन के पास गली से निकल कर वह मुख़्य सड़क पर आ गया।इधर-उधर देखकर वह रास्ता पार हुआ।धीरे-धीरे उसे डर लगने लगा।हो सकता है वह डर निर्जनता, निस्तब्धता और अकेलेपन के कारण हो।गली में कुछ ऑटो रिक्शा लगे हुए हैं।लाइन से मिनी ट्रक लगे हुए हैं।कुछ दूरी पर पत्थर की तरह निर्लिप्त एक घोड़ा खड़ा है।

नहीं…, सभी दुश्चिंताएं वह दिमाग से निकाल देना चाहता है।उसने तो मृत्यु के हाथों से एक निश्छल, मासूम औरत की रक्षा की है।आज अगर उसने ये काम अपने हाथ में न लिया होता, तो कोई और करता।दस लाख रुपए के बदले में तो इस महानगरी में बहुत हत्यारे मिलेंगे।अनादि इस तरह अपने को सांत्वना देता है।

और यह भी है कि इन दस लाख रुपयों से अनादि सब कुछ नए सिरे से शुरू कर सकता है।उसके जीर्ण-शीर्ण मध्यवर्गीय जीवन के लिए यह संजीवनी जैसा हो सकता है।यह उसके अभावग्रस्त जीवन को काफी हद तक भर सकता है।गली से अनादि फिर मुख्य सड़क पर चला आया।थोड़ी दूर चलने के बाद उपपथ की तरफ मुड़कर थोड़ी दूरी पर उसका फ्लैट है।

उसने अलि के साथ कुछ ग़लत नहीं किया।कितनी चालाकी से अभिषेक दत्त ने अलि को अपने जीवन से हमेशा के लिए निकाल देना चाहा था।अलि को ये पता चलेगा तो चौंक जाएगी।एक ही छत के नीचे रहने वाले किसी इतने अपने के लिए कितना अविश्वास, कितनी घृणा, कितनी साजिश हो सकती है किसी के मन में! अनादि को अलि की दोनों आंखें याद आती हैं।उसके मासूम होंठ याद आते हैं।याद आते हैं बादल जैसे खुले केश।अनादि सोचता है, वह एक दिन अलि के पास जाएगा।उसको उसे बहुत कुछ बताना है।लेकिन उससे पहले उसे अपने जीवन को व्यवस्थित कर लेना होगा।भैया-भाभी को थोड़ा सुख देना है।शहर के किसी कोने में उसे एक छोटा-सा व्यवसाय शुरू करना है, मां की दवाएं खरीदनी हैं और…

ठीक तभी अन्यमनस्क अनादि के पास पुलिस पेट्रोलिंग वैन आकर रुकी।तीन-चार बंदूकधारी जवान कूद कर उतरे और उन्होंने अनादि को घेर लिया।सामने से दरवाजा खोलकर एक स्थूलकाय रक्षा अधिकारी उतरा और उसकी तरफ बढ़ा।स्ट्रीट लाइट की रोशनी में अनादि ने उस अधिकारी का मुखमंडल और उसकी भौंहें देखी।घनी मूंछों की आड़ से एक श्लेषात्मक हँसी छनकर बाहर आ रही थी।वह अनादि के ठीक सामने आकर खड़ा हुआ।

जीवन में बहुत बार अनादि के साथ नियति ने इस तरह का खेल किया है।कई बार उसने अपना प्राप्य खोया है।बहुत बार अपराजेय दुर्भाग्य ने उसका दरवाजा खटखटाया है।होंठ के नज़दीक आकर भी बहुत बार पानपात्र हाथ से फिसल गया है।आत्मसमर्पण की मुद्रा में अनादि ने धीरे-धीरे अपना दोनों हाथ आगे बढ़ा दिया।

क्या कर रहे हो?

रक्षा अधिकारी की कर्कश आवाज गूंजी।अनादि ने अपनी आंखें झुका लीं।अपार्टमेंट के सिक्योरिटी गार्ड ने कोई आवाज़ सुनकर शायद पुलिस को फोन किया होगा, या अलि ने ख़ुद ही पति के लापता होने की खबर की होगी…

दूसरों को तो मारोगे ही खुद भी मरोगे।रक्षा अधिकारी ने उसकी ओर गुस्से से देखते हुए धमकाया, मास्क कहां है तुम्हारा? क्यों नहीं पहना उसे?

अनादि को आश्चर्य हुआ।उसने झट जेब से मास्क निकाला और रक्षा अधिकारी को दिखाया।

पॉकेट में क्यों है? साले, जल्दी पहन!!

पुलिस की गाड़ी चली गई।उसके बाद अनादि को लगा जैसे उसकी छाती के भीतर कोई रेल का इंजन धड़धड़ाते हुए गुज़रा हो।आतंक और उत्तेजना दोनों एक साथ उस पर हावी होने लगे।रास्ता छोड़कर वह जल्दी ही गली में घुस गया।घर वहां से ज्यादा दूर नहीं था।

अनादि को एक गंभीर अवसाद घेरने लगा।बिल्डिंग तक पहुँचने के बावजूद सीढ़ी से चढ़कर ऊपर जाने की ताक़त उसमें नहीं बची थी।संकरी, गंदी सीढ़ियों पर ही वह बैठ गया।बैग कंधे से उतारकर उसने हाथ-पैर फैला दिए।उसकी पलकें झपकने लगीं।ऐसा नहीं है कि उसको नींद आ रही थी, बल्कि वह किसी जुनून में डूबा जा रहा था।

पैरों के पास बैग पड़ा है।पैसे पड़े हैं।पूरे दस लाख रुपयों का मालिक है अब वह।लंबे इंतज़ार और लंबी तपस्या के बाद एक अद्भुत ढंग से यह सौभाग्य मिला है।इस प्रतिकूल समय में अनादि को इतने रुपये मिले हैं, हा हा हा!! जीवन में कई बार ऐसा समय भी आता है, जबकि कौतूहल और ट्रैजडी के बीच की विभाजक रेखा मिट जाती है।पाप और पुण्य का भेद खत्म हो जाता है।एक वायरस ने जैसे पूरी पृथ्वी को बदल दिया, इस ‘वायरस’ ने अनादि के जीवन को भी बदल कर रख दिया।

सुबह अनादि ने खुद को अपने ही बिस्तर पर पड़ा पाया।टेलीविज़न पर कोई न्यूज़ ऐंकर कोई ब्रेकिंग न्यूज़ बता रहा है।तेज धार वाले चाकू की तरह धूप उसके बिस्तर पर पड़ रही है।उसी समय अनादि को फिर वह चूहा दिखा।दाल के कनस्तर के ऊपर से गुज़रते हुए वह रुककर अनादि की तरफ देख रहा है।सभी चीज़ों से उदासीन, बिलकुल निर्भीक दिख रहा है वह, जैसे वहां अनादि के होने का उसके लिए कोई मतलब नहीं।जा जा- बिस्तर से ही अनादि ने हाथ उठाकर उसे भगाने की कोशिश की।इसी चूहे को उसने उस दिन नहीं मारा, बख़्श दिया था।वही आज कितना निडर हो गया है।सामने के दोनों छोटे पैरों से उसने अपना मुंह पोंछने जैसी कोई हरकत की।अनादि की ओर देख कर उसने आंखों से भी इशारा किया।

परेशान होकर वह बिस्तर से उठ पड़ा।इस्स, बहुत देरी हो गई।दरवाज़ा खोल कर उसने देखा, खाने की मेज पर बैठ कर सब लोग टी. वी. देख रहे हैं।आंखें मलते हुए टेलीविज़न की तरफ उसने देखा: महानगर के प्रमुख व्यवसायी अभिषेक दत्त ने की आत्महत्या।अपने अपार्टमेंट की छठीं मंज़िल के टैरेस से कूदे।उन्होंने सुसाइड नोट भी लिखा है-वायरस आदमी को मार रहा है, ये बात महत्वपूर्ण नहीं है।बल्कि यह बिज़नेस भी खत्म कर रहा है- इट किल्स बिज़नेस दैट्स इंपॉर्टेंट।साथ ही अनेकों विशेषज्ञों की राय का सिलसिला चल रहा है।क्या लॉकडाउन फिर बढ़ेगा? व्यापारी, उद्योगपति, किसान सभी निराश-हताश हो गए हैं।असहाय-निरुपाय लोग आत्मघात करने लगे हैं।घर में कैद होकर आदमी शायद वायरस से बच जाएगा, लेकिन व्यापार और वाणिज्य का क्या होगा? कलकारखानों का क्या होगा? देश की अर्थव्यवस्था ने क्या आत्मघाती रूप अख़्तियार नहीं कर लिया है?

भैया टी.वी. के सामने स्तब्ध होकर बैठे हैं।चाय का कप उनके हाथ में है और चाय ठंडी हो गई है।सब्जी की थाली लेकर भाभी की आंखें भी अभी टी.वी. के पर्दे पर टिकी हैं, इस देश का पता नहीं क्या होगा! स्वतःस्फूर्त ही भाभी का उद्गार फूटा।विशाल और भव्य अपार्टमेंट के नीचे व्यापारी अभिषेक दत्त का निर्जीव शरीर पड़ा हुआ है।टी.वी. के फ्रेम में केवल दो पुलिस वाले और कुछ उत्सुक लोग हैं।बहादुर का धुँधला मुंह भी वहां दिख रहा है।लॉकडाउन चल रहा है इसलिए इतनी दुखद ख़बर सुनने के बावजूद परिजनों, क़रीबियों में से कोई आ नहीं पाया होगा।जीवन की तरह मृत्यु के मुहूर्तों में भी आदमी आज कितना अकेला हो गया है।

मुझे मौत क्यों नहीं आती प्रभु, मुझ पर दया करो।बिस्तर से आती मां की आवाज़ सुनकर अनादि आश्वस्त हुआ।वह दौड़कर छत पर चला गया।आसमान बिलकुल नीला और शांत है।बहुत ऊपर कुछ अपरिचित पक्षी मुक्ति के आनंद में उड़े जा रहे हैं।सुबह रास्तों पर चिरपरिचित सन्नाटा पसरा है।उस सन्नाटे को चीरते हुए मेन रोड से अचानक फायर ब्रिगेड की गाड़ी दनदनाते हुए अभीअभी निकली है।

पूरे संसार में १६० करोड़ लोगों की नौकरी जाएगी, पता है? अनादि की तरफ देखते हुए पड़ोसी चौधरी बाबू ने कहा।वह अभी-अभी मुेह में टुथब्रश लेकर छत से झूलते बेड कवर की आड़ से बाहर निकले हैं।हमारे ट्रम्प साहब ने तो सभी इंडियंस को काम छोड़कर अमेरिका से चले जाने का आदेश दिया है! चौधरी बाबू के एक हाथ में मोबाइल है।शरीर का ऊपरी हिस्सा बिलकुल नंगा है।केवल कमर के बिलकुल निचले हिस्से से लगी एक काले रंग की लूंगी अब गिरी कि तब गिरी वाली मुद्रा में लटक रही है।लूंगी के दुर्घटनाग्रस्त होने की अपार संभावना बनी हुई है।चौधरी बाबू फिर से फोन पर व्यस्त हो गए।

जेब से अपना मोबाइल निकालकर अनादि ने मैसेंजर खोला।हाँ, ‘वायरस’ का अब कोई और संदेश नहीं है।इस अभिषेक दत्त नामक वायरस को अनादि ने धरती से मिटा दिया है।गुप्त रूप से और अनिवार्य रूप से।इसके लिए अनादि को कोई दुख या अपराधबोध नहीं होना चाहिए।एक बुरे स्वप्न की तरह वह इस अध्याय को भूल सकता है।अनादि ने ‘वायरस’ के साथ हुआ सारा का सारा चैट डिलीट कर दिया।अलि की तस्वीर भी डिलीट कर दी।

अंतिम दृश्य : हफ़्ते भर बाद

कॉलिंग बेल बजा।बहादुर अपने लिए दवा लेने बगल की फार्मेसी में गया है।अलि ख़ुद ही बेडरूम से बाहर आई।ड्रॉइंग रूम में टेलीविज़न चल रहा है।आस-पास कोई नहीं है।न्यूज़ चल रहा है।टेलीविज़न बंद करने के लिए अलि मोबाइल खोजने को होती है कि कॉलिंग बेल फिर बजा।

अलि ने झांक कर देखा तो अनादि को दरवाज़े पर खड़ा पाया।वह जानती थी कि अनादि एक दिन ज़रूर आएगा।उसने अनादि के लिए दरवाज़ा खोल दिया।ड्रॉइंग रूम के बीचोंबीच पहुँचकर वह थोड़ी देर के लिए ठहर गई।अलि ने उसकी तरफ मुड़कर देखा।भर मुँह दाढ़ी भी उसके चेहरे का लालित्य छीन नहीं पाई है।उश्रृंखल, अविन्यस्त, रुक्ष जीवन अभी भी उसकी आँखों की आभा मिटा नहीं पाया है।

जो हुआ, उसके लिए मैं दुखी हूँ।अनादि ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया।लेकिन आपको मैं कुछ बाताना चाहता हूँ।

बताओ।

अनादि ने इधर-उधर देखा।वह थोड़ा नर्वस था।

बताओ।बड़ी शांति से अलि ने कहा।अभी घर में कोई नहीं है।

आपके पति ने आत्महत्या नहीं की।थोड़ी देर निस्तब्धता छाई रही।टेलीविज़न पर न्यूज़ चल रहा है।वह सुसाइड नहीं है।

मैं जानती हूँ।दबी आवाज़ में अलि ने कहा।अनादि चौंक गया।क्षण भर के लिए उसने अलि की आंखों में देखा और फिर आंखें हटा लीं।

मैं जानती हूँ।अभिषेक आत्महत्या करनेवाला आदमी नहीं था।अलि बोलती गई।हमारी शादी के तीन साल हो गए।उसके बारे में कम से कम मैं इतना तो जानती ही हूँ।

आपको कम से कम ये तो पता नहीं ही होगा कि आपके पति ने आपको मारने के लिए मुझे पैसा दिया था।उन्होंने सारी तैयारी कर रखी थी।बार-बार मैसेंजर पर तगादा करते थे।आपकी तस्वीर भी उन्होंने मुझे मेल की थी।

अलि बिलकुल शांति से उसकी बातें सुन रही थी।उसके होठों के एक कोने पर हल्की मुस्कराहट फँसी हुई थी।अनादि ने सोचा था वह दंग रह जाएगी।ये बातें सुनकर वह टूट-बिखर जाएगी।पर उसे रंच मात्र भी फर्क नहीं पड़ा।अलि के मन में कोई हलचल ही नहीं हुई।

मैं आपकी हत्या नहीं कर पाया।लेकिन परिस्थिति ऐसी हुई कि अभिषेक दत्त को मारना पड़ा।आज इस वक़्त आपको ये बताना कितना उचित है मुझे नहीं पता।लेकिन इस मामले में मुझसे गलती हो गई।आपके पति द्वारा दिए गए पैसे मैं डिजर्व नहीं करता।१० लाख रुपये कम नहीं होते।इसके अलावा इस स्थिति में आपको इन पैसों की सख़्त ज़रूरत होगी।

तुम्हें पैसा अभिषेक ने नहीं, मैंने दिया था।

मतलब? अब अनादि के दंग रह जाने की बारी थी।

मैं ही ‘वायरस’ हूँ।अलि के बोलने में एक उदासीनता थी।अभिषेक ने नहीं मैंने ही तुम्हारे लिए सबकुछ तैयार किया था।मैंने ख़ुद ही अपनी तस्वीर भी भेजी थी।गेट पर सिक्योरिटी वाले को या अभिषेक को मैंने ही बताया था कि सैनिटाइजेशन के लिए तुम आओगे।लेकिन तुम मेरी हत्या नहीं कर पाए।

लेकिन क्यों? अनादि की आवाज़ काँप गई।एक-एक कर सारी बातें उसके सामने स्पष्ट होने लगीं।आपने मुझे आपको ही मारने के लिए क्यों कहा था?

मैं जीना नहीं चाहती थी।मैं अब नहीं जी पा रही थी।अभिषेक के साथ रहना असंभव हो गया था।अभिषेक पूरे साल बिज़नेस के सिलसिले में दिल्ली-मुंबई करता रहता था।लेकिन इस लॉकडाउन के समय मैं उसके साथ एक ही घर में रहने को बाध्य हो गई।हमारे बीच कोई संबंध नहीं था।कोई लगाव नहीं था।लेकिन घर में कैद रहने के इस समय में उसके संस्पर्श में आकर मेरा दम घुटने लगा था।मैंने अपने को मार देना बेहतर समझा।आत्महत्या की कोशिश की।कई बार नींद की गोलियां भी खाईं।फिर भी बच गई।टैरेस से कूदना चाहा, हाथ का नस काट लेना चाहा।पर हिम्मत नहीं जुटा पाई।

अलि एक ही सांस में सारी बातें कह गई।तभी एक दिन तुम्हारे अकाउंट पर मेरी नज़र पड़ी।अनेक अकाउंट्स के बीच तुम्हारे पोस्ट्स पढ़े।उन्हें पढ़कर मैं तुम्हारा फ्रस्ट्रेशन, तुम्हारा क्षोभ, तुम्हारी वंचना सब समझ गई।मैंने तुम्हें पैसों का लालच दिया।पहले पांच लाख और फिर काम हो जाने के बाद पांच लाख की बात कही।मुझे लगा था तुम्हारी सहायता से मैं मर पाऊंगी।

अनादि किसी बुत की तरह स्तब्ध हो गया।वह अलि की आंखों की तरफ देखता रहा।अब?

अभिषेक को गए आज एक हफ्ता हुआ।लेकिन मैंने धीरे-धीरे अपने को बचे रहने के लिए तैयार कर लिया है।अलि के चेहरे पर दृढ़ता की रेखाएं उभर आईं।मैं नए सिरे से जीना शुरू करूंगी।मैं अब बिलकुल आज़ाद हूँ।मुझमें अब मृत्यु की कोई इच्छा नहीं बची।

ये आपके पैसे हैं।पीठ से बैग उतारकर अनादि ने कहा, रख लीजिए।अब आपको इसकी ज़रूरत पड़ेगी।पूरे दस लाख हैं।मैंने आपका एक पैसा भी खर्च नहीं किया।यहां तक कि मैंने इन पैसों से एक पैकेट सिगरेट भी नहीं ख़रीदा।

तुमने मुझे नए सिरे से जीने का अवसर दिया है।मैं इसके लिए कृतज्ञ हूँ।अनादि की तरफ देखते हुए अलि ने मुक्त कंठ से कहा।ये तुम्हारा प्राप्य है।

नहीं, नहीं- अनादि ने सिर हिलाया।मुझे नहीं चाहिए।मैं अपनी ही नज़रों में बहुत गिर जाऊंगा।

अलि उसकी तरफ बढ़ी।उसने जोर से उसका हाथ पकड़ा, प्लीज़! प्लीज़!! ये मेरा अनुरोध है।अलि ने कातर आवाज़ में फिर कहा, एंड थैंक्स फॉर एवरीथिंग!

कुछ देर तक अलि के हाथों में उसका हाथ लगभग बँधा रहा।कुछ बेज़ुबां क्षण इसी तरह गुजरे।

ड्रॉइंग रूम के टेलीविज़न में वायरस के प्रतिरोध का विज्ञापन आ रहा था, सामाजिक दूरी बनाए रखें।हाथ न मिलाएँ।बेवज़ह स्पर्श से बचें…।

संजय राय, ग्रामपोस्ट : चंदुआ, जोड़ा पुकुर के करीब, कांचरापाड़ा, जिला : उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल743145 मो.9883468442