मलयालम पटकथाकार, लेखक।  ‘भूतम’, ‘लीला’, ‘वाङ’, ‘मलयाली मेमोरियलआदि (लघु कथाएँ)प्रती पूवन कोज़ी’ (उपन्यास) आदि रचनाएं।

अनुवादक : युवा लेखिका।संप्रति अतिथि प्राध्यापिका एन एस एस हिन्दू कॉलेज,चंगनाशेरी।

(१)
सच है यह?
जी बिलकुल।
तुमने देखा है?
देखने लायक अब वहां कुछ बचा ही नहीं है।
अब क्या करेंगे?
हम भी यही पूछ रहे हैं मालिक, अब हम क्या करेंगे?
वे सब फिर कहां गए?
वही तो हम भी जानना चाहते हैं मालिक कि आखिर वे सब कहां गए?
अरे बेवकूफ़ो उस गांव के लोगों से पूछो।
वहां गांववाले नहीं हैं मालिक।
नहीं हैं? तो फिर अब कौन हैं वहां?
दो परिवार है, एक में पति-पत्नी और तीन बच्चे हैं और दूसरा परिवार एक वृद्ध दंपत्ति का है।
अच्छा तो जाओ उन्हीं से पूछताछ करो।
पर मालिक वे लोग तो गांव छोड़कर चले गए।
तुम लोगों को उनपर शक है?
जी मालिक, शक तो है।
तो फिर उन लोगों को कैसे जाने दिया बेवकूफ़ों? जाओ उन्हें पकड़कर लाओ।
जी मालिक।

(२)
तुम कब से उस घाटी में रह रहे हो?
जब से हमें याद है तब से वहीं रह रहे हैं मालिक।
याद से तुम्हारा क्या मतलब है?
पैदा ही वहीं हुए थे मालिक।
कल आधी रात को तुम वहां से कहां भाग गए?
भागने के लिए कोई जगह तय नहीं थी मालिक।
अपना गांव छोड़कर भागने के पीछे का कारण क्या था?
हम विवश थे मालिक।
कैसी विवशता?
हमारे कुछ भी कहने पर वे लोग हमें जंगल में ले जाकर…
तो भागने के पीछे का कारण डर है।अच्छा ये बताओ, तुम वहां से क्या कुछ लेकर भागे थे?
कुछ बर्तन, कपड़े और दाल-चावल।
और कुछ नहीं ले गए?
और तो कुछ हमने लिया नहीं मालिक।
सच कह रहे हो न?
जी मालिक, सच कह रहे हैं।
जानते हो, कल से वहां के पर्वत और जंगल लापता हैं।इसलिए सच सच बता दो तुमने वह सब कहां बेच डाला।झूठ बोलने का अंजाम तो जानते हो न?
जी मालिक, हम जानते हैं।
अब ये तुम्हारे आवारा बच्चे हँस क्यों रहे है?
हम तो हँसे नहीं मालिक।
बदतमीज़ों तुम नहीं तो फिर कौन हँस रहा है?
जंगल और पर्वत हैं मालिक।

एन आर सेतुलक्ष्मी, नोचिकाट्टू हाउस, मलकुन्नम, चंगनाचेरी, केरल६८६५३५  मो.९७४७३९४५०३