स्त्री को 21वीं सदी में भी मानवाधिकार नहीं मिले हैं, वह एक न एक उत्पीड़न की शिकार है। उसपर बाजार संस्कृति और धार्मिक अंधविश्वासों का दबाव है। ‘स्त्री साहित्य : नए परिप्रेक्ष्य’ विषय पर सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा आयोजित 29वें हिंदी मेला में देश के कई कोने से आई लेखिकाओं ने इस तरह के विचार व्यक्त किए। पहली बार लेखिकाएँ एक राष्ट्रीय सम्मिलन में स्त्री प्रश्नों पर संवाद कर रही थीं। सभी का स्वागत प्रो. संजय जायसवाल ने किया।

केरल विश्वविद्यालय की प्रो.एस आर जयश्री ने कहा कि हिंदी साहित्य में पिछले चार दशकों से ‘स्त्री साहित्य’ की नई श्रेणी का उभरना समाज में स्त्री चेतना के उदय का एक उदाहरण है। दार्जिलिंग गवर्नमेंट कालेज की डा. श्रद्धांजलि सिंह ने कहा कि स्त्री और पुरुष दोनों के सामने आज कुछ साझी चुनौतियां हैं, जिनकी तरफ स्त्रीवादी विमर्श का ध्यान जाना चाहिए।

डा. सुजाता ने 19वीं सदी की पंडिता रमाबाई का प्रसंग उठाकर कहा कि उनका संघर्ष उन पुराने विचारों से था, जो स्त्रियों के लिए जंजीरें हैं। पूनम सिंह ने कहा कि स्त्री मुक्ति का संबंध जाति, धर्म और बाजार के मानव विरोधी रूपों से है।  स्त्री-स्वतंत्रता और परिवार के बीच अंतर्विरोध नहीं है। प्रथम सत्र की अध्यक्ष प्रो. रोहिणी अग्रवाल ने कहा कि स्त्रियां आज भी अंधेरे और नरपशुओं से लड़ रही हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण साक्षी मलिक जैसी स्त्री पहलवानों का  सत्याग्रह है। सत्र का संचालन प्रो. गीता दूबे ने किया। मधु सिंह ने धन्यवाद दिया।

दूसरे सत्र में कथाकार शर्मिला बोहरा जालान ने कन्नड़ भक्त कवि अक्क महादेवी की चर्चा करते हुए कहा कि पुरुष-स्त्री के अधिकारों में विसंगति चिंताजनक है। जेएनयू की प्रोफेसर वरिष्ठ लेखिका गरिमा श्रीवास्तव ने कहा कि आज उन गरीब स्त्रियों के बारे में भी सोचना चाहिए जिन्हें आर्थिक अभाव का सामना अपनी देह से करना पड़ता है।

गुजरात विश्वविद्यालय की प्रोफेसर-कवि पन्ना त्रिवेदी ने कहा कि आज भी आमतौर पर कन्या के जन्म की तुलना में पुत्र के जन्म पर ज्यादा खुशी व्यक्त की जाती है। आज स्त्रियां आत्मसम्मान चाहती हैं। शिक्षायतन कालेज की प्रो.अल्पना नायक ने कहा कि लैंगिक समानता का अर्थ यौन मुक्ति नहीं है। सुनीता गुप्ता ने कहा कि आज भी रात में स्त्रियां सुरक्षित नहीं हैं।

आदिवासी लेखिका निर्मला पुतुल ने सवाल उठाया कि आदिवासी स्त्रियां गरीब हैं, छोटे कपड़े पहनती हैं, लेकिन अमीर घरों की स्त्रियां छोटे कपड़े क्यों पहनती हैं और यह कैसा संस्कार है? स्त्री रचनाकारों के पूरे दिन के सम्मिलन में घुलने-मिलने और संवाद के अनोखे दृश्य थे। दूसरे सत्र का संचालन प्रो. इतु सिंह ने किया। संवाद सत्र का संचालन गुलनाज बेगम ने किया। धन्यवाद ज्ञापन किया प्रीति सिंघी, पूजा पाठक और डॉ राजेश मिश्रा ने।

प्रस्तुति :मधु सिंह