वरिष्ठ लेखक। अद्यतन नवगीत संग्रह ‘पंख का नुचना’।

नम्र

नम्र होने का नहीं मतलब
बनो कमजोर
या तमस के हाथ में खुद
सौंप दो तुम भोर

छिपे उसके किटकिटाते
दांत होते हैं
सिलसिले जड़ कालिमा के
पांत होते हैं

लिए उनचास पवन शातिर
तांसता घनघोर

चाल शतरंजी रगों में
भरम पैदा कर
कुछ वजीरों, ऊंट, घोड़ों
से नपा कर घर
मारता है निरे पैदल
दाब
जुमलाखोर

शब्द में तिरते इरादों से
बचे रहना
‘अंततः’ के लक्ष्य खातिर
‘तुरत’ को सहना
साथ है
आंसू ढले
बिन आवाज का शोर!