तस्वीरें
तस्वीरों में जितना दिखता है
उससे ज्यादा रह जाता है बाहर
तस्वीरें कहां बताती हैं कि कभी भी
बदल सकती है तस्वीर
रात-दिन चलते मजदूरों के
चेहरों पर गहरी थकान
और रास्तों पर जगह-जगह मौत के निशान
तस्वीरों में दिखते हैं
पर कोई भी तस्वीर कहां बताती है
कि सारा दुख गुस्से में बदल जाय
तो दरक सकते हैं बड़े से बड़े किले
तस्वीरें अधूरी रहती हैं हमेशा
जरा सोचो उन तस्वीरों के बारे में
जो अब तक किसी फ्रेम में आईं ही नहीं|
मां उठेगी
अभी अभी उसने दोनों
पांवों पर खड़ा होना सीखा है
अभी वह दौड़ना चाहता है
अभी वह खेलना चाहता है
अभी वह भूखा नहीं है
अभी उस पर कोई डांट नहीं पड़ी
अभी उसके रोने की कोई वजह नहीं
अभी उसकी मां सोई है प्लेटफार्म पर
अभी उसे नहीं पता कि मां की ट्रेन छूट चुकी है
अभी वह इतना ही जानता है कि मां जल्द उठेगी
अभी वह मां की चादर से खेल रहा है
अभी उसे क्या मालूम कि कोई
उसकी जिंदगी से खेल रहा है|
पागल
पागल हुए बिना कुछ
भी ऐसा नहीं होता
जो किसी को पागल कर दे
पागल होते ही खुलने
लगती हैं अजानी दुनिया की खिड़कियाँ
सुनायी पड़ने लगती हैं आवाजें
जो दूसरे नहीं सुन पाते
नजर आने लगते हैं दृश्य
जो दूसरों को नजर नहीं आते
पागल होते ही लगता है
कि जो उसे पागल समझते हैं
वे सब के सब पागल है
पागल होते ही अपने घर से
इस तरह निकलता है आदमी
कि एक साथ लौटता है सबके घर
पागल होने पर ही
कुछ ऐसा हो सकता है
जो दुनिया को पागल कर दे|
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