सुबोध सरकार
बंगाली भाषा के विख्यात कवि, लेखक और संपादक। कविता-संग्रह द्वैपायन ह्रदेर धारे के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।

वक्तव्य : ‘कवियों से इतना डर क्यों?’

 
 

हिंदी अनुवाद: विजय कुमार यादव

लेखक और अनुवादक। परमेश घोष के बांग्ला उपन्यास और रूमी लस्कर बोरा के असमिया उपन्यास का हिंदी में अनुवाद।

 

आज से पचीस वर्ष पहले जब पेरिस के हेडक्वार्टर में बैठ कर यूनेस्को ने 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में निर्धारित किया, क्या उस समय वह नहीं जानता था कि कविता लिखकर युद्ध नहीं रोके जा सकते? कविता लिखकर लोगों के मुंह तक रोटी नहीं पहुंचाई जा सकती? लोगों का मुंह तो बड़ी बात हो गई, क्या कोई कवि कविता लिखकर अपने लिए दो रोटियों का जुगाड़ कर सकता है? क्या कवि कविता लिखकर अपनी संगिनी लौटा ला सकता है? जब कविता कुछ कर ही नहीं सकती, तब इतने सारे लोग कविता लिखते क्यों हैं? इतने सारे लोग कविता क्यों पढ़ते हैं? इतने लोग कविता सुनते क्यों हैं?

सभी प्रश्नों के उत्तर हैं, लेकिन इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है, 21 मार्च का विश्व कविता दिवस फिर से धकियाते हुए यह बता गया। कोई ऐसी भाषा है जिसमें कविता नहीं लिखी जाती? एथनोलॉग गाइड के अनुसार पृथ्वी पर 7139 भाषाएं  हैं। यह संख्या घटती-बढ़ती रहती है। भाषा के मृत होने पर संख्या घट जाती है और जब आदमी आविष्कृत नए भूखंड में नई भाषा की खोज करता है, उस समय यह संख्या बढ़ जाती है। उस दिन माया सभ्यता की किशे (किचे) भाषा में कविता सुन जैसे अवाक हुआ था, उत्तर बंगाल जाने पर वहां की कुडुख भाषा की कविता सुनकर भी उतना ही अवाक हुआ था। किशे या कुडुख भाषा में कविताएं लिखी जा रही हैं! इन कविताओं को कुछ गिने-चुने लोग ही पढ़ेंगे या सुनेंगे, तो इससे क्या हुआ? जिस समय शेक्सपियर लिखते थे, उस समय भी तो कुछ गिने-चुने ‘बर्बर’ अंग्रेज ही उनका लिखा सुनते, देखते या पढ़ते थे।

कविता लिखकर कवियों को भोजन नहीं मिलता, सिर के ऊपर छत नहीं मिलती। दार्शनिक बाउल कवि, जिनका एक-एक दर्शन जीवन की धारा बदल सकता है, अभी भी पेड़ के नीचे आश्रय लेते हैं और भीख मांगते हैं। कवियों की हालत ‘राख फेंकनेवाले टूटे हुए सूप’ जैसी हो गई है, जिस सूप में राख छोड़कर और कुछ नहीं फेंका जाता। क्या कवि एक घर और दोनों जून दो मुट्ठी भोजन भी नहीं पा सकते? कवियों के ऊपर राष्ट्र का इतना गुस्सा क्यों है? वर्जिल को निर्वासित किया गया था, ओविद को खदेड़ा गया था। चार सौ वर्ष पहले महाराष्ट्र में समाज के सिरमौर ब्राह्मणों ने शूद्र कवि तुकाराम की हत्या की थी। बेंजामिन मोल्वीज ने किसी पुलिसवाले को नहीं मारा था, फिर भी उन्हें फांसी दी गई थी। जर्मनी और सोवियत रूस में हिटलर और स्टालिन ने कवियों की कब्रों पर पिकनिक किया था। इसके बाद भी कोई कवि कविता क्यों लिखता है? यह एक विस्मय है! कोई कवि ‘नोबल पाने’ की मंशा से कविता नहीं लिखता। कोई कवि बीएमडब्ल्यू खरीदने की खातिर कविता नहीं लिखता। लिखने पर न तो उसके पास गाड़ी होगी, न ही कविता।

युवा कवि रिफअत अलारीर गज़ा के एक विश्वविद्यालय में शेक्सपियर पढ़ाते थे। उन्होंने तल्ख भाषा में इजरायल को हत्यारा देश कहा था। तीव्र प्रतिवाद कौंध उठा था उनकी कविता में। उसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ी। इजरायल के बमवर्षक विमानों ने इस युवा कवि की हत्या की। उनके साथ ही परिवार के और चार लोगों की जिंदगी भी तबाह हो गई। उनकी पत्नी बची हुई हैं। उनके सपने बचे हुए हैं। उन्होंने गजा में ‘वी आर नॉट नम्बर्स’ की स्थापना की है, छोड़ गए हैं एक सपना और वही है कविता, इफ आई मस्ट डाइ, लेट इट ब्रिंग होप, लेट इट बी ए टेल।

गजा एक ऐसा भूखंड है, जहां के कवि चिर पीड़ित रहे हैं। युद्ध शुरू होने के बाद से मोबाइल नंबर चुन-चुनकर तेरह कवियों की हत्या की गई है। विश्व कविता दिवस बीत गया। उस दिन को स्मरण करते हुए हमारा यही संदेश होना चाहिए कि हम फिलिस्तीनी कवियों के साथ हैं। जहां-तहां कवियों पर अत्याचार किया जा रहा है, अगर हम इसका प्रतिवाद न करें, तो कौन करेगा?

ओ राष्ट्रनायको! तुमलोग जो कवियों को मार रहे, इस पर कभी सोचा है कि तुमलोगों को भाषा कौन देगा? रुलाई के समय कौन तुमलोगों के सिर पर हाथ फेरेगा? पराजय पर कौन तुम्हारे साथ रहेगा? आनंद के समय कौन आनंदित होगा? आज गजा में कवियों ने जिस तरह प्रतिरोध का निर्माण किया है, उसे देखकर याद आता है वह दृश्य, जब हिटलर द्वारा यहूदियों के कत्ल के विरुद्ध बड़े-बड़े कवियों ने उस समय पेरिस की सड़कों पर अपने प्रतिरोध का प्रदर्शन किया था। आज उसी इजरायल के बम फिलिस्तीन के तरुण कवियों के प्राण ले रहे हैं! तुमलोगों के लिए हमने अपने प्राण दिए थे और तुमलोग ही हमारे प्राण ले रहे हो? कविता आज नियति के किस अट्टहास के बीच अटक गई है? राष्ट्र कविता को बचा नहीं सकता, राष्ट्र कविता को मार नहीं सकता, फिर भी कवियों को मरे हुए तिलचट्टों की तरह उठाकर फेंक दिया जाता है। कवियों से इतना डर क्यों? एक-दो पंक्तियों से इतना भय? आधे स्तवक से इतना डरते हैं आपलोग?

एडोनिस सीरिया के सबसे विख्यात कवि हैं, जिनके नाम की चर्चा स्टॉकहोम की नोबल समिति में हर साल होती है, वे एक ऐसे कवि हैं, जिन्होंने सर्रियलिज्म (अतियथार्थवाद) और सुफिज्म (सूफ़ीवाद) को मूंगफली के आवरण के भीतर मौजूद दो दानों के समान धारण किया हुआ है। उन्हें भी आजीवन निर्वासन की कविता लिखनी पड़ी है। जब राष्ट्र ने उन्हें नहीं चाहा, तो उन्होंने भी राष्ट्र को नहीं चाहा! लेकिन क्या चाहने से ही कवि की हत्या की जा सकती है? जब एलन गिन्सबर्ग ने ‘हॉवेल’ कविता लिखी थी, उस समय उसे ह्वाइट हाउस के ऊपर बम रखने जैसी घटना माना गया था। ह्वाइट हाउस उस बम को पचा गया था। कभी-कभी पचाना पड़ता है। पाकस्थली एक ऐसी जगह है, जहां बहुत से बम भी निष्क्रिय हो जाते हैं।

कुछ दिन पहले चिली के कवि राउल जुरिटा से भेंट हुई थी। निकानोर पार्रा के बाद राउल जुरिटा चिली के सबसे विख्यात कवि हैं। पिनोशे की पुलिस ने जेल में उन पर इतना अत्याचार किया था कि अपनी इस वृद्धावस्था में वे बैठे नहीं रह पाते और उठने पर भी बहुत देर तक खड़ा नहीं रह सकते। उनका सर्वांग लगातार कांप रहा था। जवानी में पुलिस ने उनकी इस कदर पिटाई की है कि वे पचहत्तर वर्ष की आयु में भी कांपते रहते हैं। कविता लिखने के लिए पृथ्वी पर आकर इतने कष्ट झेलने पड़े? सेंटियागो के युवक-युवतियां, युवा कवियों के दल उनके मकान के सामने खड़े होकर उन्हीं की कविताओं को जबानी सुनाते रहते हैं। शायद वे समझ भी नहीं पाते हों कि ये किसकी कविताएं हैं। बस उनकी उंगलियां कंपकंपा जाती हैं।

कविता पढ़ने मैं जहां भी जाता हूँ- चाहे वह ग्रीस का पारोस द्वीप हो या दिनहाटा हो, प्राग का मिलान कुंदेरा का छोड़ आया मुहल्ला हो या छत्तीसगढ़ का बस्तर- वहां किसी युवा कवि को खोज निकालता हूँ। उसके पास थोड़ा बैठ लेता हूँ। उसकी कविता सुनता हूँ। उसके मुंह में ही कविता का भविष्य छिपा हुआ है, जो मैं नहीं कर पाया, हम जो नहीं कर पाए वह मानो उसके साहस और विपन्नता के बीच व्याकुल होकर जगा हुआ है। युवा कवि की कविता पढ़कर जब उठ बैठता हूँ, बालुरघाट से चालीस मील दूर रहनेवाले सोहेल इस्लाम की कविता या प्रेसिडेंसी से स्नात्तकोत्तर दीपशेखर चक्रवर्ती की कविता को जब अपने हाथों में लेता हूँ, तब ऐसा लगता है जैसे उससे कह रहा होऊं- आओ कविता, दौड़ती हुई आओ, मुझे थामो, मुझे बचाओ ताकि हमें भी राउल जुरिटा की तरह आजीवन कांपते न रहना पड़े।

पिछले सप्ताह साहित्य अकादेमी के आयोजन में लगभग दस घंटों तक सैंतालीस भाषाओं में कविता और गद्य पाठ किया गया, जो एक विश्व रिकार्ड है। भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में बाईस भाषाएं शामिल हैं, लेकिन उसके बाहर एक हजार से भी अधिक भाषाएं हैं। उनमें से प्रत्येक भाषा में कविता लिखी जा रही है। उन सारी भाषाओं की कविताएं धीरे-धीरे सामने आ रही हैं। इन समस्त भाषाओं की कविताओं के एक जगह इकट्ठा हो जाने पर सारा भारत एक ‘ग्लोबल पावर’ बन जाएगा। वह पांच नोबल पुरस्कारों से भी ज्यादा शक्तिशाली होगा।

एक उत्सव में तीन सौ कवियों को तो बुलाया जा सकता है, लेकिन उसके बाद और भी तीन सौ बाहर रह जाते हैं। हो सकता है कि उनके भीतर शायद हीरा छिपा हो। एक व्यक्ति, बुद्धदेव बसु, समस्त वृत्त के बाहर पड़ी हीरे की एक अंगूठी उठा ला पाए थे। उसी तरह असल कवि का काम है एक-एक कर कवि की खोज करना। मुझे कोई याद नहीं रखेगा, लेकिन अगर मैं एक अच्छे कवि को रखकर जा पाऊं तो वही हमारी चंद्रालोकित शस्यभूमि हो उठेगा।

 

सुबोध सरकार की बांग्ला कविताएं

 
 

हिंदी अनुवाद: देवेंद्र कुमार देवेश

उप सचिव, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली। कवि, आलोचक, अनुवादक एवं संपादक। डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।

तारीख

मेरे प्यार का कोई बिंदु नहीं
मेरे प्यार में कोई हिंदू या गैर-हिंदू नहीं
मेरे प्यार की कोई तारीख नहीं
मेरे प्यार में कुछ व्यावहारिक नहीं

आया था पृथ्वी नामक इस रेस्तरां में
सुबह-सबेरे जलपान करने
पहले लंच, फिर डिनर करके
बैठा हूँ बिंदास, लौट नहीं पाया मैं

मेरे प्यार में लज्जा का कोई स्थान नहीं
मेरे प्यार का कुछ भी शृंगार नहीं
मेरे लिए कोई ब्राह्मण या शूद्र नहीं
मेरे प्यार का कोई अनुवादक नहीं।

विश्व कविता दिवस 2024

उपमा से जन्म लिया था
इसीलिए जीवन भर लिखता रहा
और करता रहा शोध
राष्ट्र चलानेवाले जितने निर्बोध हैं
उससे भी अधिक अहंकारी
कविताएं लिखकर शायद उनसे मांग रहा हूँ क्षमा

जितने चाबुक मेरे भाग्य में लिखे हैं
मारो मुझे, मुझे मारो, मारो मुझे…
कवि कभी किसी की क्षति नहीं करता

उपमा से जन्म लिया था
रक्त बहाकर सारी उपमाएं वापस किए जाता हूँ।

आसमां से आसमां तक

अंधा था, अंधा हूँ, अंधा ही रहूंगा
तभी तो पा सकूंगा प्यार को मैं

मैं कभी देखता नहीं उसका दोष
प्यार किया है
इसीलिए कभी नहीं करता अफसोस

मुझे प्यार करने के लिए अंधा होना होगा
जब तक संभव होगा, मैं रहूंगा उत्सव में

रहेगा दोष, रहेगी त्रुटि भी
खाएंगे मिलकर दोनों ही एक रोटी

अगर मैं अंधा नहीं, तो कैसे करता प्यार
आसमां से आसमां तक कैसे दौड़ लगाता फिरता?

जब हवा चलती है

आमबागान की बात कभी भी
जामबागान में कहते नहीं
तुम्हारे हाथों में विस्फोटक
लेकिन उसमें पलीता नहीं

जब हवा चलती है
बहने दो उसको दक्षिण से
मैं जाता हूँ उत्तर की तरफ
तुम्हारा प्रिय फूल खरीदकर

जिस राह चले पूर्वज कवि
उस रास्ते पर चलते नहीं
पैरों के पास बिन्ना घास
इस घास को कुचलते नहीं

भीषण बातें सुनते नहीं
आंचल से ढक लो विषण्णता

विषण्णता में कभी जलते नहीं
आमबागान की बात कभी भी
जामबागान में कहते नहीं।

प्यार के आकाश तले

आंखों में अटके हुए अश्रुजल
वही है प्यार का गगनतल

रखो मेरे हृदय में अग्नि, रख दो अपना माथा
वही है मेरी सप्तशती गाथा

जब मेरा मन विचलित रहता, जब मैं होता वाष्प
छोड़कर तब अपना घर, आऊंगा मैं तेरे घर

तुम्हारी आंखों में थोड़े-से अश्रुजल
प्यार का गगनतल

तैरूंगा आंखों में अटके अश्रुजल में
बिना रोए करूंगा प्यार कैसे?

अरे ओ, हेमंत काल के बूट पॉलिश वाले!

मैं पचास साल बाद
शिवतला के पुराने
पेड़ के नीचे आकर खड़ा हुआ
वही आंखें, वही हँसी, वही होंठ
वही दाहिना हाथ
कर रहा है जूतों की पॉलिश

त्रिभुवन नारायण कहार
मेरे बचपन का दोस्त
उसने हेमंतकाल से परिचय कराया था मेरा

मैंने कहा, त्रिभुवन कैसे हो?
पालिश करते-करते एक बार देखा त्रिभुवन ने
और फिर से करने लगा पॉलिश
मैंने फिर से उसे पुकारा, त्रिभुवन
अरे ओ त्रिभुवन, यह मैं आया हूँ

जूते चमकाते हुए त्रिभुवन ने कहा
मैं त्रिभुवन का बेटा हूँ
पिता जी के निधन के बाद
मैं ही यहां बैठता हूँ
कुछ कहेंगे क्या?

मुझे याद आया
त्रिभुवन ने एक बार कहा था मुझसे
अपने पिता के निधन के बाद
वह भी इस पेड़ के नीचे बैठ गया था

त्रिभुवन के बेटे का नाम मुझे नहीं पता
जानना भी नहीं चाहता
अरे ओ, हेमंत काल के बूट पॉलिश वाले!
क्या तुम जानते हो आज स्वतंत्रता दिवस है?
बरगद के पुराने पेड़ के पीछे से किसी ने कहा
गाड़ी, मकान, हवाई जहाज-सब आपलोगों का
हमारे लिए पेड़ के नीचे की जमीन ही थी
है और रहेगी
आप घर जाइए।

बेलूड़

मैं एक कोने में खड़ा देख रहा था
दो लड़के गेरुआ वस्त्र पहने
मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रहे थे

इतनी तल्लीनता से
मैंने किसी को सीढ़ियां साफ करते नहीं देखा
इतने प्यार के साथ
मैंने किसी को धूल उठाते हुए नहीं देखा
सीढ़ियों से नहीं
मानो मां की त्वचा की
धूल साफ कर रहे थे
सीढ़ियों से कोई इस तरह से
धूल पोंछ सकता है
यह मैंने कहीं नहीं देखा

स्थितप्रज्ञ महाराज से पूछा मैंने
ये दोनों लड़के कौन हैं?
महाराज ने मृदु मुस्कान के साथ कहा
एक है परमाणु भौतिकविद
और एक है आईबीएम की छह लाख की नौकरी छोड़कर यहाँ आया हुआ
सीढ़ियाँ धोने आए हैं, जिनसे लोग ऊपर चढ़ते हैं
ताकि वे साफ रहें
महाराज चले गए, गंगा में संध्या उतर रही है
मेरे भीतर भी उतर रही है संध्या
सारी दुनिया में इतनी सारी सीढ़ियां
सीढ़ियों पर इतने सारे दाग
इतना क्रोध
इतना अपमान?
आरती शुरू होने से पहले मन में आया
जो सीढ़ियाँ नहीं पोंछ सकता
वह कभी भी
मनुष्य की आंखों के आंसू नहीं पोंछ सकता।

लिटिल मैगज़ीन मेले में

एक इंटरव्यू में
एक संस्था विरोधी, क्रोधित कवि ने
मुझसे जिज्ञासा की :
‘आप साठ पार कर गए हैं,
यू आर ऑन द रेड साइड ऑफ द बेड
इस उम्र में क्या आपका कोई स्वप्न है?’
मैंने संस्थान विरोधी नाराज कवि से कहा :
द रेड साइड इज माइ राइट साइड
अभी मेरा एक ही स्वप्न है
साठ पार का हो गया
लेकिन मैं तीस साल के एक युवा कवि की तरह
लिखना चाहता हूँ
गलतियाँ करना चाहता हूँ
प्यार को साथ लेकर उड़ना चाहता हूँ आसमान में
खड़ा होना चाहता हूँ ज्वालामुखी पर्वत पर
क्या होगा जीवित रहकर यदि स्वप्न न देखूँ?

विजय कुमार यादव, फ्लैट नं. 3डी, तृतीय तल, सुरभि अपार्टमेंट, 4/2 बनर्जीपाड़ा रोड, तालपुकुर, बैरकपुर, कोलकाता 700123, मो. 9619888793

देवेंद्र कुमार देवेश, ए 1106, ऑफिसर सिटी-1, राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद 201017 (उ.प्र.)मो. 9868456153