लगभग ढाई दशकों तक सक्रिय पत्रकारिता, दैनिक रांची एक्सप्रेस में ‘मैनेजिंग एडिटर’।अब स्वतंत्र लेखन।अभिशासन और जनजातीय विषयों पर आधा दर्जन से ज्यादा किताबें प्रकाशित।
मिथक नहीं है ब्रह्मांड
कोपरनिकस को सताने से
पृथ्वी सुस्ताने नहीं लगा
गैलेलियो को जेल में बंद करने के बाद भी
पृथ्वी ने सूर्य परिक्रमा बंद नहीं की
न गुरुत्वाकर्षण ने अपना खिंचाव कम किया
हमारी दृष्टि बदलने से
आकाश का रंग नहीं बदला
न खत्म हुई तारों की टिमटिमाहट
पौराणिक कथाओं को बांचने के बाद भी
सांझ और सवेरा ज्यों का त्यों रहा
सूर्योदय-सूर्यास्त ने रीति नहीं बदली
न नक्षत्र-तारों ने स्थान बदला
सरकार, पुलिस, अदालतें, जेल
कुछ भी नहीं चाहिए ब्रह्मांड को
मिथकों पर नहीं टिकी है
ब्रह्मांड की गति
आस्था, विश्वास, बल-छल
सबसे परे है
ब्रह्मांड की कुदरती व्यवस्था।
चांद पर पत्थलगड़ी
1.
चांद की सतह पर
धूल से सने, घिसे-पिटे, टेढ़े-मेढ़े
मुश्किल से पढ़े जा सकने वाले
पत्थर के शिलालेख में दर्ज हैं
दुनिया भर की
लोक कथाओं के चंदा मामा
और उसमें तकली काटती बुढ़िया से
मानव की पहली मुलाकात की कहानी
दृश्य बहुत सुंदर है
जहां हम उतरे हैं
उससे कुछ दूरी पर
बैंगनी रंग की चट्टान है
सूर्य के प्रकाश में
चांद की मिट्टी और चट्टानें चमक रही हैं
बिलकुल खामोश-सी यह जगह बेहद खूबसूरत है
पृथ्वी ग्रह से यहां हम
समस्त मानव जाति की
शांति कामना लेकर आए हैं
चांद पर सन्नाटा है
कोई आवाज नहीं
आवाज के आने-जाने के लिए हवा भी नहीं
ऋतुओं का कोई चक्र नहीं
न बादल उमड़ते-घुमड़ते हैं
न बिजली कड़कती है
न रिमझिम बारिश होती है
न हरियाली है, न नदियां हैं
न इंसानों-सी बस्तियां
न भौगोलिक सीमा
केवल रेगिस्तानी मिट्टियां और पत्थर
गैलेलियो से पहले
चांद पहले सिर्फ चांद था
आसमान में चांदी के थाल-सा
चमकता चांद
उसे छू लेने की चाहत थी
गैलेलियो ने दूरबीन से चांद को देखा
धूल, पत्थर, मिट्टी का बना
उबड़-खाबड़, गड्ढे, पहाड़-घाटियों-सी यह जमीन
पृथ्वी से अलग तो नहीं।
2.
धरती के इस कोने से उस कोने तक आंखें दौड़ाइए
नगाड़ों की आवाजें सुनिए
सबको चांद चाहिए
चांद पर जमीन है
जीवन नहीं
चांद पर खनिजों का खजाना है
पेड़-पौधे, जीव-जंतु नहीं
चांद का कोई माई-बाप नहीं
चांद मानव सभ्यता का अगला पड़ाव है
चांद मौन है
क्या जाने कब चांद की चुप्पी टूट जाए
पृथ्वी के मानवों के सारे दांव-पेंचों के खिलाफ
उठ खड़ा हो
कह उठे
बित्ते-भर जमीन पर तुम्हारी दुनिया
तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था
तुम्हें अपने घर में रहना चाहिए था
तुम्हें हमारी मिट्टी नहीं चुरानी चाहिए थी
इस मिट्टी में हमारे पुरखों के सपने हैं
तुम्हें लगता है जो बीत गया
वह कभी नहीं लौटेगा
कुछ भी नहीं बीतता
सपनों के जिंदा रहने तक
3.
चांद की अपनी रोशनी नहीं
सूरज की उधार की रोशनी से
चमकने वाले
चांद का इतना कम है गुरुत्वाकर्षण कि
गैसें उसकी पकड़ में नहीं रहतीं
लेकिन
हर पूर्णिमा को यही चांद
पृथ्वी के समुद्र के जल को
ऊपर की ओर खींचता है
जैसे लपटें आकाश में चढ़ती हैं
आग में जीवन है क्या!
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