युवा कवि।दो काव्य संग्रह आवाज़ के स्टेशनऔर खंडित मानव की कब्रगाहप्रकाशित।

सरहदों का संगीत

कितना जादुई होता है सरहदों का संगीत
वह ढारस बंधाता है
बहुत दूर से आते हुए
बूढ़ी माँ के विलाप को
जो शोकाकुल होती है
अपने युवा बेटे की अचानक हुई मृत्यु पर

शून्य को चीरती हुई आवाज का त्रिकोण
जब गिरता है किसी छोटे बच्चे के कानों में
और वह मुस्कराता है इसे
ईश्वर का आलिंगन समझकर
तो असल में वह है सरहदों का संगीत

कंटीली तारों के दोनों तरफ बजते
मेंढकों के कंठ में कैद होते हैं
अनेक दृश्य
जिन्हें दोहराते हैं वे दिन रात
और करते हैं सृष्टि के मर्म को सार्थक

सरहदों के पास बने कच्चे मकानों से झांकती गरीबी में
वह फुसफुसाता है कई बार
तितलियों की आजाद उड़ान में दिखता है
सौंदर्य बनकर
दूधिया की पद्चाप में सरकता है
प्रतिदिन स्वरलहरी-सा
और पतझड़ में झड़ते सूखे पत्तों की कड़कड़ाहट में
हमेशा अमर है सरहदों का संगीत।

मैं मां हूँ

एक हवा का झोंका मुझे
संदेश देता है कम झुर्रियों और
पुरानी नसों वाली वृद्ध महिला का
वो कहती है मैं मां हूँ मेरी इज्जत करो
आते जाते हँसते मुस्कराते

उसकी आवाज और त्वचा में रहती है नमी
गले में है भारी ट्रैफिक जाम
आग उगलते दृश्यों से भर चुकी हैं आंखें
किसी पीले रंग के चतुर्भुज से रिसता है दुख
और अंततः आती है वही
विचलित कर देने वाली ध्वनि
कि मैं मां हूँ मेरी इज्जत करो

एक पुराने अतीत की संध्या
उसे लगे गलत इंजेक्शन ने
लील लिया था उसका सारा बचपन
और बाकी बचा संपूर्ण जीवन
प्रेम की परछाई के रूप में उपजी
एकतरफा संतान को
देखकर
वह बढ़ती रही उसके ही साथ दिन रात
और अपने बर्फ से जमे होठों से पुकारती
यही इकलौता वाक्य
कि मैं मां हूँ मेरी इज्जत करो।

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