कवि, लेखक और विशिष्ट तकनीकविद।
1.
बोलने वाला था सच तो धमकियां मिलने लगीं
झूठ कहते ही खनकती थैलियां मिलने लगीं
हम भटक कर हो गए थे जब परेशां तो हमें
राह दिखलाती हुई कुछ तितलियां मिलने लगीं
देर थी इतनी सी बस जैसे मिला मौका उन्हें
आसमां छूती हुई तब बेटियां मिलने लगीं
इक जमाने से मकां जो बंद था उसमें हमें
ताजगी लाती हुई फिर खिड़कियां मिलने लगीं
बैठने को भी नहीं पूछा गया वो इक समय
होते ही मशहूर उसको कुर्सियां मिलने लगीं।
2.
तप रहा हूँ और भी तप कर खरा हो जाऊंगा
हर जुबां पर आएगा वो माजरा हो जाऊंगा
मैं कलम का हूँ सिपाही ये मेरी तकदीर है
सबको खुश करने लगा तो मसखरा हो जाऊंगा
सिर्फ एहसासों की कोई कब्र मत समझो मुझे
देख लेना एक दिन मैं मकबरा हो जाऊंगा
आसमां को देख कर बोला परिंदा कैद से
छोड़ दो मुझको नहीं तो अधमरा हो जाऊंगा
आज दिल का जख्म ‘शर्मा’ रात भर कहता रहा
याद मत करना उसे वर्ना हरा हो जाऊंगा।
3.
दर असल सबको सुखन में आतिशें दिखला रहा हूँ
यूं समझिए धूप में मैं बारिशें दिखला रहा हूँ
काम तो खतरे का है लेकिन ये जिम्मा भी मेरा है
मैं नकाबों को हटा कर साजिशें दिखला रहा हूँ
बेतुकी कह कर न समझे ये मेरे अपने कभी भी
रह गईं आधी अधूरी ख्वाहिशें दिखला रहा हूँ
वक़्त की थी वो नजाकत इसलिए मैं चुप रहा बस
और वो समझे कि उनसे रंजिशें दिखला रहा हूँ
जंग ख्वाबों से रवायत से ज़माने से है करना
इश्क में होती हैं क्या-क्या कोशिशें दिखला रहा हूँ।
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