वह बौखलाता झटपट घर में घुसा। घुसते ही अपने पहने जनाने कपड़े फुर्ती से खोलने लगा तो उसकी पत्नी हैरत से बोली, ‘क्या हो गया आपका, इतनी जल्दी आ गए!’
‘बाजार में किन्नर मिल गया था।’
‘आप भी तो किन्नर ही हो न!’
‘मगर हूँ तो बहुरूपिया ही!’
‘फिर?’
‘उसकी बात ने मेरे दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख दिया। मैं सीधा घर चला आया।’
‘ऐसा क्या बोल दिया उसने?’
‘वह बोला, मुझे दिक्कत नहीं है कि तुम किन्नर बन हमारा हक मार रहे हो! मगर उसने एक सवाल किया।’
‘क्या था सवाल?’
‘वह बोला, तुम दिन भर किन्नर बरकर कमाई करने के बाद घर जाते ही फिर से सामान्य आदमी बन जाओगे, मगर हमारी तकदीर में ऐसा क्यूं नहीं लिखा कि…!’
‘मैंने पूछा, क्या?’
‘वह बोला कि तुम अभी किन्नर हो और घर पहुंचते ही आदमी बन जाओगे, पर हमारी किस्मत में ऐसा क्यों नहीं लिखा?’
सुथारों की बड़ी गुवाड़, बीकानेर-334005, राजस्थान, मो.9950215557
‘वह बोला कि तुम अभी किन्नर हो और घर पहुंचते ही आदमी बन जाओगे, पर हमारी किस्मत में ऐसा क्यों नहीं लिखा?’
पूरी लघुकथा का यह एक प्रतिनिधि वाक्य है ।