युवा लेखक।वर्तमान निवास – जयपुर में। संप्रति स्वतंत्र लेखन।
‘पता है, तुम आजाद भाला हो!’ मोहित ने दही-चीनी खिलाते हुए उससे कहा। ‘आजाद भाला!’ उसने रुमाल से मुंह साफ करते हुए पूछा।मोहित ने कहा, ‘प्राचीन यूनान में कुछ सैनिक सोते समय सिरहाने भाला रखकर सोते थे।वे किसी खास सेना के दीर्घावधिक योद्धा नहीं होते थे।जो उन्हें अच्छा पारिश्रमिक देता था, वह सुबह उठकर उसी की तरफ से युद्ध स्थल को चल देते थे।तुम भी कल तक जिस राजनीतिक दल के आईटी सेल में काम करते थे, आज उसके विरोधी दल में काम करने जा रहे हो।’ मोहित ने समझाते हुए कहा, ‘इसे मित्र या शत्रु चुनने में उदारता बरतना कहते हैं! वैसे भी आज के समय में किसी संबंध में दृढ़ निष्ठा तलाशना अपराध से कम नहीं है’, उसने दरवाजा खोलते हुए कहा।
‘गुडलक फॉर न्यू असाइनमेंट’, मोहित ने दरवाजा बंद करते हुए कहा।
कुछ समय से भाग्य देवी उसपर मुस्करा रही थी।उसने एक बड़ी छलांग मारते हुए मोटे पैकेज पर एक पुरानी, लेकिन सोशल मीडिया की कमजोर खिलाड़ी राजनीतिक पार्टी के आईटी विभाग को जॉइन किया था।
केबिन में बैठे हुए उसने सोचा, कुछ भी तो अलग नहीं है यहां उसके पुराने ऑफिस से।अलग है तो बस इतना कि वह रणभूमि में एक युद्ध शिविर से दूसरे युद्ध शिविर के एक तंबू में आकर बैठ गया है।मित्र और शत्रु के चेहरे भले बदल गए हों, लेकिन न उसकी तलवार बदली है और न ही युद्ध के प्रति उसके अंदर से उठती सम्मोहन अग्निलीक।
उसे अपने पुराने सीनियर की एक बात याद आई, कभी मोह मत पालना, नफरत करना मुश्किल हो जाएगा।उसका पूरा कौशल प्रेम और घृणा के बीच झूलते पेंडुलम पर टिका है।स्याह या सफेद, उसे अन्य सभी रंगों को इन दो रंगों में बदलना था, एक रंगरेज की तरह। अपने मालिक के लिए सफेद और विरोधी दल के लिए स्याह…
वह अपने लैपटॉप में एक बड़े व्यापारी का वीडियो खंगाल रहा था, जिसमें वह उसके विपक्षी खेमे के एक नेता की तारीफ कर रहा था।व्यापारी और नेता का गठजोड़ साबित करने के लिए वीडियो का वह अंश उसे अपनी टीम को वितरित करना था, जो अपने छद्म प्रोफाइल से उसे वायरल कर देंगे!
इसी बीच उसे एक-दूसरे व्यापारी, जो देश छोड़कर भाग गया था, का वीडियो मिल गया। ‘कुछ काम का’ मिलने की आशा में वह ईयर फोन लगा कर अपने केबिन में उस वीडियो को देखने लगा।भले वह राजनीतिक दल के साथ काम करता था, लेकिन उसकी नजर सब सेलिब्रिटी पर रहती थी।जो लोकप्रिय था, जिसकी थोड़ी बहुत साख थी, वह उसके लिए कभी भी उपयोगी हो सकता था।भले ये सेलिब्रिटी अलग-अलग दुनिया से आते हों, लेकिन राजनीति की नुकीली घास पर उनके कदम जब-तब पड़ जाते थे।उसके नेताओं की मजबूत छवियां गढ़ने और संवारने में ये सेलिब्रिटी बहुत काम के होते थे।राजनीति खेल ही छवियों का है।
बेहद साधारण पृष्ठभूमि से आया वह उद्योगपति अपने बचपन और पिता की कुलीनता और सुसंस्कृति के बारे में पत्रकार को बता रहा था।वह चौंका, उसने वापस इंटरव्यू का वह हिस्सा देखा।निम्न मध्यम वर्ग से आए उस उद्योगपति के उत्कर्ष की कहानी सैकड़ों बार मीडिया में आ चुकी थी।अब वह अपने पिता की कुलीनता की बात कह कर असंगत इतिहास को बदलने का प्रयास कर रहा था।
उद्योगपति का संदेश स्पष्ट था, ‘यह संभ्रांतता और कुलीनता उसने अर्जित नहीं की है, यह सदा से ही उसके पास थी।उसने अपना काल्पनिक बचपन गढ़ लिया था, जिसे वह दृढ़ विश्वास के साथ पत्रकार के साथ साझा कर रहा था।लेकिन वह एक पुराना कथन भुला बैठा जो उसने नौकरी के पहले दिन सीखा था- ‘झूठ सत्य के जितना निकट होगा, उसे पकड़ना उतना ही मुश्किल होगा।’ उद्योगपति एक कदम आगे निकल गया था, उसने अपना सत्य ही बदल लिया था।
उसका पाला-पोसा नाजुक सत्य था -समृद्धि और कुलीनता से उसके व्यक्तित्व की अटूटता।उसने अपने बचपन की गरीबी और सामान्यता को अपने अतीत की चौखट से कहीं दूर फेंक दिया था।
जिस राजनीतिक पार्टी के लिए वह पहले काम करता था, अब उसी राजनीतिक पार्टी के नेताओं पर मीम, चुटकुले और कार्टून बनाने थे।वह नेताओं के पुराने ट्वीट, वीडियो और पोस्ट्स से गुजरने लगा। ‘आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन वह स्वयं होता है’, यह उक्ति उसके धंधे की जीवन–रेखा थी।
व्यक्ति सबसे कमजोर तब होता है, जब वह खुद से लड़ता है।अतीत की किसी बात से वर्तमान पर आक्रमण सबसे सरल और प्रभावी औजार है, उस नेता की विश्वसनीयता समाप्त करने का।विश्वसनीयता जो दुर्लभ है, उसे आप अपने विपक्षी के तरकश में रहने नहीं दे सकते।कायदा यही है कि लड़ाई दो अविश्वसनीय पक्षों और नायकों में हो।
आप अपने विपक्षी की छवि पर पत्थर फेंककर जितनी छेद कर सकते हैं, उतनी ही आपकी जीत की संभावना है।आपके पास अच्छाइयां कम होती हैं तो आप दूसरे की बुराइयों पर रोशनी डालकर ही अपने लिए रास्ता बना सकते हैं।नायक क्या है? हजारों करोड़ से बना एक ब्रांड।उस ब्रांड की तामीर में लगे रहते हैं उसके जैसे हजारों पेड वर्कर।
उसके लिए चेहरे नहीं मायने रखते थे।वह सभी चेहरों से निर्लिप्त, निस्संग और निर्मोही होकर ‘मिलावट’ करता था- सच में कल्पना की।कभी एक चुटकी तो कभी एक मुट्ठी कल्पना वह सच में मिला देता था।झूठ एक कल्पना ही तो है, यथार्थ की संभावना के बीच से गुजरती हुई… सर्प की चिकनी खाल सरीखी!
उसे याद आया आज निशा का जन्मदिन है।भले वह सोशल मीडिया के लिए कंटेंट बनाता था, जिसे हजारों लोग अलग-अलग प्रोफाइल से शेयर करते थे, लेकिन उसकी खुद की सोशल मीडिया पर कोई आईडी नहीं थी।
फेसबुक पर जरूर कॉलेज के समय की बनाई उसकी आईडी थी, पर इसे वह बहुत कम देखता था।निशा और उसका बॉयफ्रेंड राहुल एमबीए में उसके साथ पढ़ते थे।उसका निशा के प्रति प्रेम राहुल के कारण अकसर फेंटेसी की छांव में अपनी मरहम-पट्टी करवाता था।उसे विश्वास था कि एक दिन वह राहुल के अतीत में उस जादुई मिलावट का समावेश करने में सफल रहेगा, जिससे राहुल के निशा के साथ रिश्ते का भविष्य डगमगा उठेगा।
शाम को निशा के जन्मदिन की पार्टी में वह आमंत्रित था।बियर का मग घुमाते हुए राहुल ने उससे पूछा, ‘सुना है आजकल तुम दूसरी पॉलिटिकल पार्टी के लिए काम कर रहे हो।क्यों इस देश के करोड़ों कम लिखे-पढ़े लोगों की अज्ञानता का फायदा उठा रहे हो?’
उसने पनीर चबाते हुए कहा, ‘इसमें नया क्या है? तुम भी बेहतर भविष्य के लिए कंपनियां बदलते हो।लोगों की अज्ञानता का फायदा राजनीति हमेशा से उठाती आई है।उसका रूप बदलता रहता है।पहले प्रिंट मीडिया, फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और अब सोशल मीडिया।वैसे ये सब बड़ी–बड़ी बातें हैं जो हम जैसे छोटी औकात के लोगों को शोभा नहीं देतीं।’
राहुल ने हैरानी से पूछा, ‘तुम किसी राजनीतिक पार्टी की तुलना कॉरपोरेट कंपनी से कैसे कर सकते हो?’
उसने बियर की घूंट भरते हुए कहा, ‘जैसे एक ही तरह के प्रोडक्ट बनाने वाली दो कंपनियों में विशेष अंतर नहीं होता; वैसे ही राजनीति में भी दो राजनीतिक दलों में बाहर से भले अंतर दिखे, लेकिन अंदर से कोई बड़ा अंतर नहीं होता।वैसे भी मेरा काम, कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, समान ही है- अतीत का चयनात्मक उत्खनन, वर्तमान पर टिप्पणी और भविष्य के लिए कभी मनोरम तो कभी डरावना आख्यान!
‘शुक्र है, तुमने कल्पनाशीलता का नाम नहीं लिया।’ मोहित ने हँसते हुए कहा।
उसने कहा, ‘वह कल्पनाशीलता ही तो है, जो अतीत से लेकर भविष्य तक के बीच फैले रिक्त स्थानों को रचनात्मक उत्तेजना से भरती है।’ निशा ने चिप्स खाते हुए उससे पूछा, तुम लोग जो समाज में नफरत, घृणा और हिंसा फैलाते हो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?’
‘नफरत, घृणा और हिंसा तो पौराणिक आख्यानों से लेकर लोक किंवदंतियों तक बिखरी हुई है।हम सिर्फ लोगों के अवचेतन में जमी उस जहरीली काई को बाहर लाते हैं, जिसे मेडिकल साइंस में कथार्सिस (विरेचन) कहते हैं।जहां जीवन सस्ता हो, वहां डर भी सस्ता होता है।’ उसने पब के अंधेरे कोने की ओर देखते हुए कहा।
‘अच्छा छोड़ो, मेरे जन्मदिन पर कल सुबह मैं पड़ोस की झुग्गी बस्ती के स्कूल में कुछ फल और मिठाइयां बांटना चाहती हूँ।कौन-कौन मेरे साथ चलेगा?’ निशा ने पूछा।
जब वह सुबह झुग्गी बस्ती के स्कूल के लिए निकला तो रास्ते भर टैक्सी वाले से बात करता रहा।वह जब भी टैक्सी में जाता था तो टैक्सी वालों से राजनीति समेत सभी विषयों पर बात करने की कोशिश करता था।इससे उसे खुरदुरे यथार्थ को और बेहतर जानने में मदद मिलती थी।
झुग्गी बस्ती का स्कूल उसकी कल्पना से ज्यादा साधारण था।उसने अपनी कल्पना में ‘फोटोशॉप’ कर उसे ठीक-ठाक करने की कोशिश की, लेकिन स्कूल की बदहाली ने उसके फोटोशॉप की हुई इमेज को तड़का दिया।उसे अपनी बेबसी पर गुस्सा आया।और अपने पिता याद आए।एक कस्बे में सरकारी क्लर्क की नौकरी से रिटायर हुए अपने पिता को वह आज तक यह नहीं समझा पाया था कि वह करता क्या है? उसने उन्हें समझाने के लिए सच के करीब के लगभग सभी झूठों का सहारा लिया था।
वह कभी अपने पिता को बताता कि वह राजनीतिक दलों के लिए मार्केटिंग का काम करता है तो कभी कहता कि वह राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने में मदद करता है।हर बार नए जवाब के बावजूद वह अपने पिता को यह समझाने में असमर्थ रहा था कि आखिर उसके जैसा इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई कर चुका लड़का किसी राजनीतिक दल के लिए किस काम का हो सकता है।
निशा ने उससे कहा, ‘तुम इस स्कूल की हालत देख रहे हो? तुम्हारी फंतासी को यहां पढ़ रहे बच्चों की नन्ही जेब नहीं संभाल सकती।तुम्हारी बड़ी फंतासी उनकी छोटी जेब को फाड़ कर बाहर आ जाएगी।तुम जिस राजनीतिक दल के कसीदे दिन-रात पढ़ते रहते हो, उनका ध्यान सरकारी स्कूलों-अस्पतालों की दुर्दशा की ओर क्यों नहीं खींचते?’
उसने शांत स्वर में निशा से कहा, ‘निशा, कभी तुमने फ़िल्मों में बारिश के दृश्यों पर ध्यान दिया है? नायक, नायिका या अन्य किरदारों पर पानी की टंकी से फव्वारे द्वारा बारिश की जाती है।जो यह बारिश कर रहे होते हैं, उनके हाथ सूखे होते हैं।जिन्हें असली बरसात चाहिए उन्हें यह बारिश एक पल का सुकून दे सकती है, वास्तविक बारिश का नैसर्गिक आनंद नहीं! उनसे वास्तविक बारिश की आशा करना गलत दरवाजा खटखटाना है।
……….
‘तुम्हें एक ब्रेक की जरूरत है।तीन साल के लगातार काम की थकान ने तुममें एक किस्म की मानसिक जकड़न पैदा कर दी है।वैसे भी हाल–फिलहाल कोई चुनाव नहीं है।तुम एक लंबी छुट्टी पर जा सकते हो’ उसके सीनियर भाटिया ने चाय में शुगर क्यूब डालते हुए कहा।
वह कई दिनों से महसूस कर रहा था कि उसकी रचनाशीलता कुंद पड़ती जा रही है।मीम, वीडियो, कार्टून और पोस्टों में उसके काल्पनिक संवाद अपनी धार खोते जा रहे हैं।वह दोहराव और एकरूपता के दलदल में फँसा महसूस कर रहा था।क्रिकेट और राजनीति की तरह उसके धंधे में भी टाइमिंग का बहुत महत्व है।
सोशल मीडिया के लिए उसके तैयार माल की उत्पादन तिथि और एक्सपायरी डेट में बहुत कम अंतराल होता था।एक ही बात कितनी बार नए-नए तरीके से कहे।इस नए की तलाश उसे अकसर किसी दूसरे राजनीतिक दल से जुड़ने की ओर ले जाती थी।लेकिन अब उनमें अधिकांश छोटे क्षेत्रीय दल थे।उनका राजनीतिक कैनवास छोटा था।राजनीतिक जमीन भी छोटी थी तो वहां आर्थिक संसाधन भी कम थे।
छुट्टी के लिए मेल टाइप करते हुए उसे बचपन में पढ़ा हुआ एक चर्चित खिलाड़ी के साक्षात्कार का शीर्षक याद आया- ‘कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नहीं होता।’
मोबाइल पर रिमाइंडर आया, आज निशा की शादी की दूसरी सालगिरह थी।व्हाट्सएप पर बधाई देते हुए उसने सोचा, इन छुट्टियों में उसे एक गर्लफ्रेंड की तलाश करनी चाहिए।
पिता को वह अपने प्रयासों के बावजूद यह नहीं समझा पा रहा था कि आखिर उसने नौकरी से ब्रेक क्यों लिया।मां ने उसका लाया नया स्मार्टफोन अलमारी में बंद कर दिया था।बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने सिर्फ इतना कहा, ‘तेरे पापा के कभी काम आएगा, मेरे लिए तो अपना छोटा फोन ही सही है।इससे बात हो जाती है।’
उसने मुस्कराते हुए सोचा सभी उसकी मम्मी की तरह छोटा साधारण फोन इस्तेमाल करने लगें तो उसके जैसे लोग बेरोजगार हो जाएं।यह स्मार्टफोन ही तो है, जिसने टीवी के एंकरों को किसी डार्क कॉमेडी के विदूषक पात्रों में बदल दिया है।इसी स्मार्टफोन के सहारे उसके जैसे लोग जनता के अवचेतन के अंधेरे कोनों में पैठ बनाते हैं।
मोबाइल में वीडियो देखते पिता को उसने कहा, ‘पता है पापा, बाजार और राजनीति के लिए मम्मी की तुलना में आप आसान शिकार हो।’ पिता ने अपनी कम पढ़ी-लिखी पत्नी की ओर देखते हुए पूछा, ‘वह कैसे?’
उसने समझाते हुए कहा, ‘इस स्मार्टफोन की वजह से ही तो बाजार और राजनीति की आप तक पहुंच आसान है।दूसरा, आप उस पीढ़ी से हो जो यह मानती है कि रेडियो, टीवी और अखबार कभी झूठ नहीं बोलते।जब सब झूठ नहीं बोलते तो भला मोबाइल पर वीडियो और पोस्ट झूठ कैसे बोलेंगे! इसलिए आप जैसे लोग मोबाइल पर परोसी गई हर सामग्री का बेखटक सेवन कर जाते हैं।’
पिता ने गुस्से में कहा, ‘तुम्हारी पीढ़ी को हर चीज प्रोपेगेंडा लगती है।तुम लोगों के लिए सचाई प्रोपेगेंडा है और प्रोपेगेंडा सचाई।’
यह जवाब सुनकर उसे अपने पिता की चिंता होने लगी।
रात को अरसे बाद उसने फेसबुक खोली।उसकी मित्रता सूची में गिनती के लोग थे।उनमें अधिकांश उसके कॉलेज के सहपाठी थे।उसके पास पुराने कॉलेज के एक सहपाठी का मित्रता अनुरोध आया हुआ था।उसने जैसे ही उसे स्वीकार किया, मैसेज आया- कैसे हो?
वह जवाब टाइप कर ही रहा था कि दूसरा मैसेज उभरा, ‘एक मदद चाहिए।इमरजेंसी है।अभी बीस हजार रुपए ट्रांसफर कर दो, सुबह वापस कर दूंगा।’ मैसेज पढ़कर वह मुस्करा दिया।उसने स्माइली के साथ जवाब लिखा, ‘फेक प्रोफाइल!’
उसके सामने इंजीनियरिंग किए हुए बेरोजगार लड़के का चेहरा आ गया।उधर के जवाब में एक बड़े थम्सअप चिह्न के साथ ‘हां’ लिखा हुआ था।वह सोचने लगा, इसी तरह का मैसेज यदि उसके पिता के पास उनके किसी मित्र की फेक प्रोफाइल से आया होता तो वे क्या करते?
रोज शाम घूमते हुए उसके पिता उससे उसके काम के बारे में पूछते।वह सरल तरीके से समझाते हुए यह बताता, ‘आप अखबार में खबर और विज्ञापन दोनों देखते हैं।यदि विज्ञापन को खबर बना दिया जाए तो?’
उसके पिता ने जिज्ञासा जाहिर की, ‘विज्ञापन खबर कैसे बनेगा?’
‘मान लीजिए कोई वशीकरण अंगूठी है, जिसका विज्ञापन अखबार में आता है।उसी वशीकरण अंगूठी के बारे में अखबार में छपे कि फलां विदेशी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में पता चला है कि सूर्य की रोशनी में उस अंगूठी से ऐसी किरणें निकलती हैं, जो आसपास के लोगों में सकारात्मक मनोभाव के उत्तरदायी रसायनों का स्त्रवण बढ़ा देती हैं, तो आप उसे खबर मानेंगे या विज्ञापन?’
उसके पिता ने सोचते हुए कहा, ‘जब वैज्ञानिकों के हवाले से कहा गया है तो वह खबर ही होगी, विज्ञापन कैसे होगा?’
उसने हँसते हुए कहा, ‘पापा, ‘पोस्ट ट्रुथ’ समय में यही होता है।विज्ञापन अय्यारों की तरह भेष बदलकर खबरों की शक्ल में आते हैं।इसके सबसे आसान शिकार हैं युवा और बुजुर्ग, जिन्हें प्रभावित करना थोड़ा आसान है।’
उसके पिता ने झुंझलाते हुए कहा, ‘मेरे पास जो पोस्ट आती है उनमें पूरे आंकड़े होते हैं।फिर वीडियो कैसे झूठे हो सकते हैं?’ उसने अपने पिता की ओर सहानुभूति से देखते हुए कहा, ‘वे आंकड़े मेरे जैसे लोगों द्वारा उत्पादित होते हैं!’
उसके पिता ने अविश्वास से उसे देखते हुए पूछा, ‘तुम और क्या-क्या काम करते हो?’
उसने समझाया, ‘बहुत सारे काम, जैसे अलग-अलग नाम से फेक आईडी बनवाते हैं।इसमें सरनेम और जाति का विशेष ध्यान रखा जाता है।जैसे किसी राजनीतिक दल का कोर वोट बैंक अपर कास्ट है तो अधिकतर फेक आईडी लोअर और मिडिल कास्ट के नाम से बनाई जाती है।ताकि उस राजनीतिक दल का व्यापक जनसमर्थन दिखे और उस दल की नई इमेज बने।दरअसल हम सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले आम लोगों की भाषा का रुझान समझते हैं।जैसे वे कौन से कुछ खास ‘की-वर्ड’ प्रयोग कर रहे हैं।उससे उनका रुझान किस दल की तरफ है, इसका पता चलता है।सबसे ज्यादा टारगेट किया जाता है आप जैसे न्यूट्रल लोगों को।’
वह जब से आया था, उसके पिता राजनीतिक तौर पर आक्रामक और एकपक्षीय बातें करते अधिक दिख रहे थे।यह उसके लिए नया अनुभव था।
उसके पिता ने गर्व–मिश्रित स्वर में कहा, ‘हम जैसे आम तटस्थ लोग ही सत्ता के अहंकार को तोड़कर बदलाव लाते हैं।’
वह कहते -कहते रुक गया कि हम जैसे लोग आप जैसों को तटस्थ रहने कहां देते हैं पापा!
मोबाइल साइलेंट कर जैसे ही वह सोने लगा, उसने देखा रसोई से उसके पिता पानी पीकर वापस सोने जा रहे थे।यह लगभग रोज का क्रम था।उसके पिता देर रात नींद से उठते और पानी पीकर वापस सो जाते।उसने पिता के सिरहाने पानी का जग रखने की कोशिश भी की थी, लेकिन उसके पिता ने मना कर दिया था।
पिता की आक्रामकता और उनका हठीलापन नया था।इन सबसे बचने के लिए उन दोनों में बातचीत कम होने लगी थी।
पिता अकसर दिन भर मोबाइल पर वीडियो देखते रहते या सोशल मीडिया पर कुछ पढ़ते रहते।
उसे जिज्ञासा हुई कि उसके पिता दिनभर मोबाइल में क्या देखते रहते हैं? वह उठकर धीमे कदमों से पिता के कमरे में गया।पिता सो रहे थे।
सन्नाटे भरे कमरे में वह कुछ क्षण पिता के पास खड़ा रहा।उसका मन हुआ कि वह वापस चला जाए।इसी उधेड़बुन में उसे अपने मोबाइल की टॉर्च की रोशनी के घेरे में पिता का मोबाइल दिखा।उसने मोबाइल उठाया और तेजी से अपने कमरे में आ गया।
वह अपने पिता के मोबाइल में वीडियो हिस्ट्री, व्हाट्सएप ग्रुप चैट और गूगल खोज की लिस्ट जितना देखता जा रहा था, उतना ही उसे प्रयोगशाला के उन चूहों की याद आ रही थी, जिन्हें अलग-अलग मात्रा में रसायन देकर दवाओं का परीक्षण किया जाता है।उसके पिता के चेतन व अवचेतन में आईटी सेल वालों ने बारूदी सुरंग बिछा दी थी।
वह थके कदमों से पिता के कमरे में वापस आया।उसने मोबाइल उनके सिरहाने रखा।उसने पिता की ओर देखा… उसे लगा जैसे किसी ने उसके पिता की ओरिजिनल प्रोफाइल डिलीट कर दी हो और फेक प्रोफाइल बना दी हो।
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