हेड क्लर्क सुजान मियां को अचानक मिठाइयां बांटता देख, दफ्तर के लोगों को हैरानी हुई।

‘किस खुशी में जलेबियां बांटी जा रही हैं भाईजान?’ – कोने वाली सीट पर बैठे मकबूल ने आवाज़ लगाई।

‘बताता हूँ भई, सब बताता हूँ। पहले आप मुंह तो मीठा करें।’ मौके पर मौजूद साहबानों से ‘बिस्मिल्लाह’ करने की गुजारिश करते हुए गलियारे में घुस गए।

लोगों ने अनुमान लगाया कि हो-न-हो सुजान भाई अपने छोटे बेटे, जो पढ़ाई-लिखाई में थोड़ा कमजोर है, उसी के ‘पास’ होने की खुशी में हमें मिठाइयां खिला रहे हों।

ऐन वक्त पर दफ्तर का चपरासी नूर अहमद ऑफिस रूम में आकर कहने लगा, ‘सुजान भाई आज शाम अपने घर पर पार्टी करने वाले हैं। लेकिन हमें शामिल होने की इजाजत नहीं।’

‘क्या हजरत नहीं चाहते कि हम उनके घरवालों के साथ मिलकर पार्टी करें?’ – मौके पर उपस्थित एक कनिष्ठ लिपिक ने सवाल पेश किया।

‘नहीं जनाब, हुजूर की हसरत है कि दफ्तर के बड़े साहब का बर्थडे वे अपने घर पर चंद व्यक्तियों के साथ अलग से मनाएं!’ – चपरासी ने भेद खोला।

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