अनुजीत इकबाल, युवा कवयित्री
उपन्यास ‘द इनर श्राइन’।
निरर्थक साधनाओं में कैद होता संसार
तुमको तलाशता सुदूर तीर्थों में
और मैं लिखती हूँ
तुम्हारी विस्तृत हथेली पर
वे तमाम प्रणयगीत
जो मेरा हृदय गाता है
व्यर्थ कर्मकांडों के वशीभूत होता संसार
तुम को ढूंढता बेमतलब क्रियाओं में
और मैं निमग्न होती हूँ
उस चरमबिंदु पर
जहां आसन-रत हो
प्रेम ईश्वर हो जाता है।
अर्थहीन आडंबरों से आच्छादित होता संसार
तुमको देखता निर्जीव पाषाणों में
और मैं तन्मय होती हूँ
हृदय के उस घाट पर
जहाँ हिम-द्रवित हो
गंगा का उद्गम हो जाता है।
मिथ्या अर्चन से सम्मोहित होता संसार
तुमको पुकारता उन्मादी कोलाहल में
और मैं मल्हार रचती हूँ
अंतस के उस सभा मंडल में
जहाँ घनगर्जित हो
जीवन स्वयंप्रभु हो जाता है।
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