अनुवाद :तरसेम
कथाकार और अनुवादक। हिंदी और पंजाबी में लेखन। अद्यतन कविता संग्रह हाशिए पर एक कोना

पंछी तो उड़ गए हैं

पंछी तो उड़ गए हैं
अब के पेड़ कर रहे हैं मशवरे :
चलो चलें यहां से

घर घर में पुत्र कहते हैं :
छोड़ो बापू अब क्या रखा है
इस जमीन में
बेच डालो चार पाड़
कर के जुगाड़ कोई
चलो चलें यहां से

तूने नहीं सुने बापू
गांव के उजाड़ बियावान में
ठहरी रात को
मर चुके किसान सारे
यही वृंदगान गाते
चलो चलें यहां से

और ये जो
नशे के उड़नखटोले में बैठ जाते
इन्होंने भी बस
यहां से जाने का ही राह-सा निकाला है

और ये जो
बेटियों को कोख में संदेश देते
नश्तरों की भाषा में
वे भी यही कह रहे हैं :
कहां ये आ गई हो
यहां आ के क्या लेना
तोहमतें और लानतें
वहशतें और शहवतें
दाग लेने दुख के
जनाह के तेज़ाब के?
जाओ जाओ चले जाओ
यहां आकर क्या लेना
वे जो हैं यहां आए हुए
वो पहले से ही कह रहे हैं :
चलो चलें यहां से
यही यहां ताल है
और यही राग है

यही है वृंदगान
यही है समूहगान

है कोई कवि यहां?
है कोई संगीतकार?
है कोई मंत्री
साज़ियों की टोली कोई?

वह जो कोई और राग छेड़े
वह जो कोई और ताल दे

मेरी इस धरा पर
हलेमी राज1 कायम हो
कोई यहां किसी को सताए न
बेगमपुरा का रूप मेरी धरती हो जाए
कहे न कोई भी यहां :
चलो चलें यहां से
हर कोई यही कहे :
हम यहीं बसेंगे
हम यहीं बसेंगे
हमने इस धरती को
बनाना है वसणजोग2

रसणजोग3
है कोई कवि यहां?
है कोई संगीतकार?
है कोई मंत्री
साज़ियों की टोली कोई?

1, गुरुग्रंथसाहिब में शामिल संबोध
2 बसने के योग्य
3 खुशियों भरा जीवन जीने के योग्य

यह बात

यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं
न यह मसला सिर्फ किसान का है
यह गांव के बसते रहने का है
यह खौफ के उजड़े जाने का है

वैसे चिरकाल से उजड़ा है
यह आज ही नहीं उजड़ा है
इसे ग़ैरों ने भी लूटा है
इसे अपनों ने भी ठगा है
इसका मन जिस्म से ज्यादा जख्मी है
इसका दुख रूह से बिछुड़ जाने का
यह बात निरे खेतों की नहीं
यह बात तो पन्नों की भी है
अक्षर हैं जिनपर बीजों के जैसे
उस सच के फलसफों का भी है
मुझे फिक्र लालो के कोधरे का
तुझे भागो के पकवान का है

इक बात कही थी पुरखों ने
वह बात अभी तक है ताज़ा
नहीं काम थकाता बंदे को
बंदे को थकाती बेक़दरी
यह दुख उसी बेक़दरी का
यह ग़म उसी अपमान का है

कुएं चलते-चलते काफूर हुए
यह बात बीती सदियों की
जानता हूँ युग बदलते हैं
रफ्तार तीखी है पहियों की
बंदे को रौंध न लाँघ सकें
यह फर्ज भी नीतिवानों का है

क्यों बेटी किसी श्रमजीवी की
उनके लिए है बेटी ही नहीं
जो पुत्र हैं तगड़ों के जन्मे
उनकी तो कहीं पेशी ही नहीं
तू डर उसकी अदालत से
जहां होना अदल ईमान का है

तेरे संग है वज़ीर अमीर खड़े
मेरे संग है पैगंबर पीर खड़े
रविदास फ़रीद कबीर खड़े
नानक शाह फ़कीर खड़े
मेरा है है नामदेव मेरा ही धन्ना भी
मुझे फ़ख्र अपनी इस शान का है!

यह मेला है

है जहां तक नजर जाती
और जहां तक नहीं जाती
इसमें लोग शामिल हैं
इसमें लोक, सुरलोक और त्रैलोक शामिल हैं
यह मेला है

इसमें धरा शामिल, पेड़, पानी, पव शामिल हैं
इसमें हमारी हँसी, आंसू, हमारे गान शामिल हैं
और तुम्हें कुछ पता ही नहीं
इसमें कौन शामिल हैं
इसमें पुरखों का रंगीला इतिहास शामिल है
इसमें लोक-मन का रचा मिथिहास शामिल है
इसमें सिदक हमारा, सब्र, हमारी आस शामिल है
इसमें शब्द, सुरति, धुन और अरदास शामिल है
और तुम्हें कुछ पता ही नहीं
इसमें वर्तमान, भूतकाल संग भविष्य शामिल है
इसमें हिंदू मुसलमान, बौद्ध, जैन के साथ
सिख शामिल है

यह मेला है
यह है एक लहर भी, संघर्ष भी जश्न भी तो है
इसमें रोष है हमारा, दर्द हमारा टशन भी तो है
जो पूछेगा कभी इतिहास तुमसे, प्रश्न भी तो है
और तुम्हें कुछ पता ही नहीं
इसमें कौन शामिल है
नहीं यह भीड़ नहीं कोई, यह रूहदारों की संगत है
ये बहते वाक्य में अर्थ हैं, शब्दों की पंगत है
यह शोभायात्रा से भिन्न है यात्रा कोई
गुरुओं की दीक्षा पर चल रहा है काफ़िला कोई
यह मैं को छोड़कर हम की ओर जा रहा कोई
इसमें मुद्दतों के सीखे हुए सबक शामिल हैं
इसमें सूफिओं फ़कीरों के चौदह तबक शामिल हैं
तुम्हें एक बात सुनाता हूँ
बड़ी भोली और मनमोहिनी
हमें कहने लगी कल एक दिल्ली की बेटी सोहनी
तुम जब लौट गए यहां से, बहुत बेरौनक होगी
ट्रैफिक तो बहुत होगी मगर संगत नहीं होगी
यह लंगर छक रही और इकट्ठी पंगत नहीं होगी
हम फिर क्या करेंगे
तो हमारे नयन नम हो गए
यह कैसा नेह नवेला है
यह मेला है

तुम लौटो घरों को, राज़ी-खुशी, है यह दुआ मेरी
तुम जीतो यह बाज़ी सच की, है यह दुआ मेरी
तुम लौटो तो धरती के लिए
नई तकदीर होकर अब
नए अहसास, सच्ची सोच और
तदबीर होकर अब
यह इच्छरां मां और पुत्र पूरन के
पुनः मिलन की बेला है
यह मेला है।

 

 
 

भारतीय भाषाओं के बीच एक मजबूत पुल थे पंजाबी के प्रसिद्ध कवि सुरजीत पातर। वे एक बड़ी मनुष्यता में विश्वास रखते थे और मानते थे कि किताबें समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का माध्यम हैं। उनसे जालंधर में पंजाबी कविता को हिंदी समाज में ले जाने के लिए आयोजित एक उत्सव में पहली मुलाकात हुई थी। पिछले कई वर्षों से पंचकूला-चंडीगढ़ प्रवास के समय हरियाणा में पुस्तक संस्कृति के उन्नयन का दायित्व निभा रहा था। बातचीत के क्रम में सुरजीत जी ने सुझाव दिया कि पुस्तक मेले की थीम भारतीय भाषाओं में अंतर्संबंध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बंगाली का कोई कवि काव्य पाठ करे और उसका अनुवाद पंजाबी में लाइव सुनाया जाए। ऐसे ही पंजाबी की कविता बांग्ला में सुनाई जाए। इस प्रयोग से साहित्य के क्षितिज का विस्तार होगा। 2023 में चंडीगढ़ किताब उत्सव हुआ। इसके लिए 74 वर्ष की आयु में सुरजीत पातर जी का युवाओं जैसा जोश हमारे जैसे लोगों को उत्साहित कर रहा था। उद्घाटन के अवसर पर मैं काव्यपाठ सुन रहा था। इलाहाबाद से आए मेहमान कवि बद्रीनारायण कविता पढ़ रहे थे। सुरजीत पातर जी की अध्यक्षता थी। आयोजन के बाद चाय पीते हुए सुरजीत पातर जी ने कहा कि लोगों को जोड़ने की यह यात्रा जारी रखना। तोड़ने वाले बहुत हैं, पर जोड़ने वाले भी कम नहीं हैं। इस तरह शुरू हुआ चण्डीगढ़-पंचकूला की सरजमीं पर पुस्तक मेले का सिलसिला, जिसमें पंजाबी कवि सुरजीत पातर जी की एक बड़ी भूमिका थी। उनका जाना हिंदुस्तानियत के रंग का मद्धिम होना है। पर उनके साहित्यिक बीजारोपण का भारतीय साहित्य के क्षितिज पर विस्तार हो रहा है। हरियाणा में 35 सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना हुई है। ऐसे महान साहित्यकार को हम सबकी श्रद्धांजलि!

राजीव रंजन

 

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