दारला वेंकटेश्वरा राव : तेलुगु के प्रसिद्ध दलित कवि। भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ. आंबेडकर नेशनल एवार्ड से सम्मानित।
अवधेश प्रसाद सिंह : लेखक, अनुवादक एवं भाषाविद
मेरी रीढ़ की हड्डियाँ कांप उठती हैं
जब कोई मेरे जन्म पर टिप्पणी करता है
मुझे नहीं पता कितने मत हैं
ब्रह्मांड के जन्म को लेकर
लेकिन एकमात्र आधार है
मेरी जाति की वह महिला
जिसे वंशानुक्रम से उनका
रखैल बनाया गया है
सामंतों के लिए मैं भोग की एक वस्तु हूँ
यही मेरी नियति है
मैं उनके मन को खुश करनेवाली
केवल उनकी यौन पिपासा की पूर्ति का साधन हूँ
मैं सदियों से मातंगी के रूप में रौंदी जाती रही हूँ
उनके जन्म के बारे में
पवित्रता के साथ पुराणों का वाचन किया जाता है
मेरा भी मन करता है
पुचेम्मा या पोलेरम्मा को
रच्चाबंडा बना दूँ
पूछूँ उनसे और घोषित करूं
मेरा जन्म किससे हुआ, और
किसको मैंने जन्म दिया
किसके साथ मिलकर
क्योंकि एक बात मुझे खलती है
कुलीनों के चरणों से पैदाहोने वालों को छोड़कर
क्या वे देवतागण
दूसरों की ‘जवानी’ का स्वाद नहीं लेंगे?
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