वेमुला येल्लैया : तेलुगु के प्रमुख समकालीन दलित लेखकों में। एक कविता संग्रह के अतिरिक्त ‘कक्का’ और ‘सिद्दी’ दो दलित उपन्यास प्रकाशित।
अवधेश प्रसाद सिंह : लेखक, अनुवादक एवं भाषाविद

मैं वह हूँ जो शवों को जलाता है
लकड़ी की मदद से जलते शरीर को
चिता में धकियाता है
जलती चिता की लकड़ियों को
शवों पर जमाता है
मैं अछूत हूँ
शवों की अंतिम विदाई के पहले
उसपर फेंके गए मुट्ठीभर चावल को
अपनी धोती के कोर में बांध लेता हूँ
अरथी को श्मशान ले जाते हुए
आत्माओं की भूख मिटानेवाले
फेंके गए दानों को चुननेवाला
मैं अनेक कौओं में एक कौआ बन जाता हूँ
मैं वह हूँ जो
शवों को ढोनेवाले पलंग पर
आड़े-तिरछे लकड़ियां बांधता है
पहाड़ियों पर चढ़कर डालों को काटता है
उन्हें चीरता और शवों पर सजाता है
शवों को जलानेवाली लकड़ी के साथ
खुद भी राख बन जाता है
आप वे हैं जो हर चीज को हड़प लेते हैं
जैसे बाज पकड़ लेता है चूजे को
आप उन लोगों में हैं जो
बेसिर-पैर की
बदबूदार-मूर्खतापूर्ण कहानियां सुनाते हैं
माथे में गाद भर
हमारे तन में हलचल मचाते हैं
बार बार अत्याचार के सब्बल से नोच-नोच
हमारे अंतस के टुकड़े-टुकड़े बनाते हैं
हे द्विज!
आपने मुझ पर
घृणित और नीच होने के कलंक लगाए हैं
मैंने आपके मंत्रों के गायन में अपने पैर जमाए हैं
आप केवल अगरबत्ती की सुगंध ही पहचानते हैं
आज मैं आपको चिता की गंध से परिचय कराऊंगा
श्मशान की दुर्गंध आपको सुंघाऊंगा
आज आप सुनें
मैं अपनी घिनौनी आवाज में गाऊंगा
आपकी खोपड़ी का आर्तनाद
चिता पर जाने के पहले
आप तक पहुंचाऊंगा।
संपर्क अनुवादक : हाउस नं. 222, सी.ए. ब्लॉक, स्ट्रीट नं.221, एक्शन एरिया-1, न्यू टाउन, कोलकाता-700156 मो.9903213630