मदकम लक्ष्मण कोया (तेलुगु)

आंध्र प्रदेश के पूर्व गोदावरी क्षेत्र के युवा आदिवासी तेलुगु कवि।

ओ आदिवासी

तुम वर्षा में भीगते हो
धूप में सूखते हो
जाड़े में कांपते हो
खाते तब हो जब पाते हो
और उपवास रहते हो
जब कुछ नहीं मिलता
तुम अकेले हो
और बड़ी शक्तियां टांग अड़ाती हैं
हो सकता है कुछ लोग मदद करते हों
तो कुछ दूसरे नुकसान पहुंचाते हों
तुम सोचते हो
यह जंगल तुमलोगों का है
यह तुम्हारा अज्ञान है
बड़ी शक्तियां बता चुकी हैं
ये जंगल तुम्हारे नहीं हैं
तुम सिर्फ खा भर सकते हो
जो जंगल से पाते हो
बड़ी शक्तियां पूरा जंगल खा जाती हैं
वे तुम्हारा खाना चुरा लेते हैं
वे तुम्हारा साहस तोड़ देते हैं
तुम्हारा घर छीन लेते हैं
तुम सोचते हो कि तुम जी लोगे
इधर-उधर कुछ खेती करके
उन्होंने कानून बना लिया है
तुम ऐसा नहीं कर सकते
वह जमीन अब तुम्हारी नहीं
जहां कई पीढ़ियों से रहते आए हो
वे लूटते हैं
तुम्हारी प्राकृतिक संपदा को
तुम्हारी ही मदद लेकर
जिससे तुम अनजान हो
ओ आदिवासी
तुम अभी नहीं बोले तो
नहीं बचोगे तुम लोग
खड़े हो जाओ
बचाओ अपनी भाषा, संस्कृति
और अपना जीवन!

बाबू पंगाला (कन्नड़)

दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र के उदपि जिले की कोरगा भाषा के आदिवासी कवि।2011 के सर्वेक्षण के अनुसार कोरगा भाषा बोलने वालों की संख्या मात्र 15 हजार है।

जागो

जागो अभी, अब जागो
जाग रहे हैं कोरगा लोग
खड़े हो रहे हैं कोरगा लोग
संगठित होना है सभी ओर
सिर झुक रहा हो नीचे
तो उठाओ ऊपर
ऊंचा कर सिर
बढ़ो चारों दिशाओं में
कप्पू सोप्पू कप्पुडा या हो कुन्तु
तुम सभी हो कोरगा
सभी हो एक मां की संतान
फिर क्यों करना भेदभाव
गाते हुए गान, बजाते हुए नगाड़े
कोरगा लोगों को होना है संगठित
पुरुषों को स्त्रियों को आना है एकसाथ
जमीन की लड़ाई में शामिल होने के लिए
कोरपलु देती है जन्म
बकादी है बच्चों को पालने वाली मां
कोरगा थानिया का जीवन नहीं है निम्न
वह है हमारी मुखिया
सभी अतिथियों का है स्वागत
जो हुए हैं जमा
दूसरे धर्मों के थोपे कर्मकांड को
रोक देना है हमेशा के लिए
पति, पत्नी और बच्चों को
जारी रखनी है अपनी मातृसत्ता।

नोट : इस क्षेत्र में 1993 में भूमि संघर्ष की शुरुआत हुई थी।2000 में एक कानून पास कर कोरगा लोगों पर कुछ खास धर्माचरण थोपे गए थे।बाबू पंगाला का कहना है, ‘हम जब चाहेंगे तभी हमारी भाषा बचेगी और बढ़ेगी।हमें आत्मसम्मान के साथ जीना और अपनी भाषा की रक्षा करनी है।हमारी भाषा का संबंध हमारे मूल्यों और आदर्शों से है।’