मलयालम कथाकार और सामाजिक कार्यकर्ता।एक कहानी संग्रह प्रकाशित| संप्रति रेलवे सेवा में।
छुट्टी की सारी अलसता माथे पर मढ़कर चाय का प्याला लिए मैंने अखबार पर नज़र डाली।महामारी के फैलाव से बचाने के लिए बंद तालों के क्रमशः खुलते जाने का समाचार पढ़ रही थी कि उन परिंदों की लगातार बंद न होती चहचहाहट सुनाई दी।सिटौट के लैंपशेड में नीड़ बनाती चिड़ियों की जोड़ी।वह पहले से आया करती परिचिता-सी है।छह महीनों के अंतराल में नीड़ बनाती, उसमें अंडा डालती, और जब नन्ही चिड़िया उड़ने के काबिल होती तो वह घोंसला छोड़ उड़ जाती।
घर के चारों ओर वनस्थली है, फिर भी चिड़ियां इसी जगह को क्यों चुनतीं? शायद वे सोचतीं कि ये घरवाले खतरनाक नहीं हैं।नीड़ के बुनने की कला देखने लायक है।कहीं से खोज लाते झरे पत्ते और रेशे को सावधानी से बुनते-बुनते नीड़ का निर्माण हो जाता।उनमें एकाध गिर जाए तो उसे दुबारा नीड़ के लायक नहीं मानती।नर परिंदा थोड़ी दूर बैठा कभी झुककर, कभी बाएं-दाएं मुड़कर अपनी आंखों से निरीक्षण करता और कुछ निर्देश देता रहता।कभी-कभी दोनों थोड़ी दूर बैठकर घोंसले की बुनावट की जांच करते।फिर चिड़ियां, जाकर नए पत्ते और रेशे लातीं और बुनाई फिर से शुरू करतीं।शायद उनकी नज़रों में हमारे घर का कोई किनारा खतरनाक नहीं लगता हो।
मेरे हाथ की पहुंच की दूरी पर बैठे परिंदों से मैं बातें करती- ‘कहां थे अब तक? कई दिन हुए मिले?’।यह सुनते तो मेरे बच्चे मेरी हँसी उड़ाते।लेकिन उन परिंदों को देखकर ऐसा लगता कि वे अपना सिर हिलाते हैं और दोस्ती की धुन में कुछ न कुछ बोलते हैं।हरेक पत्ते और रेशे को जोड़ते हुए मानो वे परस्पर कुछ न कुछ राय जरूर कर लेते, ऐसा मुझे लगता था।
नर परिंदे को देखते ही मुझे राजुवेट्टन (मेरे पतिदेव) याद आते।इस घर के हर पत्थर पर उनकी छाप है।उनके पसीने से तर हुए बगैर कोई नुक और कोना इस घर का नहीं बचा है।इतना शौकीन घर बनाया, पर उन्हें इसमें रहने के लिए चंद दिन ही मिले।उन्हें जाना पड़ा।यह बहुत कष्टदायक है।
जो भी हो, अब इस नीड़ के निर्माण का वीडियो बनाकर मैं उन्हें भेज दूं।कहीं रेगिस्तान की लू में तपते हुए उनको घर के बाहर रहने की खिन्नता से थोड़ी सांत्वना मिल जाए।मोबाइल फोन को लेकर कैमराखोलने को ही थी कि घंटी बज उठी, ‘हैलो, गुड मोर्निंग, बिंदु मैडम हैं या नहीं?’
‘हां जी, गुड मोर्निंग।’
‘मैं बाहर के थाने से सीआई (सर्किंल इंस्पेक्टर) यामला देवी।मैडम की छोटी मदद चाहिए।’
‘बताइए।अगर मेरे लायक हुआ तो खुशी से करूंगी।’
‘मैडम, बिहार वाले किसी देवेश कुमार को जानती हैं?’
‘देवेश कुमार?’ पल भर यादों को टटोला, ‘क्या वह पायलदेवी का पति?’
‘ठीक।आज सुबह हमारे नाइट पेट्रोल की गिरफ्त में आया।गहरी पूछताछ की तो पता चला कि वह गुनहगार नहीं है।परदेशी होने के नाते दो आदमियों की जमानत पर रिहा करने की सोची।कइयों से पूछा, मगर कोई तैयार नहीं हुआ।तब जाकर उसने मैडम का नाम लिया।उसके मोबाइल पर किए फोन कॉल की जांच की तो पता चला कि उसने कल मैडम को दो बार कॉल किया है।’
‘मैंने उसे देखा नहीं है।फोन पर बातें हुईं, इतना ही परिचय है।अब मैं क्या कर सकती हूँ?’
‘किसी एक आदमी के साथ जरा इस तरफ आ सकेंगी? ताकि फोरमालिटीज को निभाने के बाद उसे छोड़ सकूँ।’
‘क्या कोई उलझन पैदा करेगा? अंत में क्या मैं फँस जाऊंगी? मेरा व्यक्तिगत परिचय बिलकुल नहीं।’ मुझ में शंका जनमी।
‘नहीं।ऐसी बात के लिए क्या मैं आपको कष्ट देती?’ यामला मैडम की वाणी में हँसी थी।
मैडम मुझे कभी बुलातीं तो खास कुछ वजह होती।वर्दी पहनने पर भी उनमें मानवता और सामाजिक प्रतिबद्धता कायम थी।मैंने उनसे कहा, ‘ज़रूर।जितनी जल्दी हो सके, मैं पहुंचूंगी।’ फिलहाल वीडियो बनाने की बात टाल दी।
थाना तीन किलोमीटर है।जाने के पहले राजुवेट्टन को फोन पर सूचना दे दी।
‘देखो, कोई झंझट मोल नहीं लेना।बिहार वाला… बंगाल वाला बातें तो ऐसे करेगा… और गहराई तक जाएं तो कहीं बांग्लादेशी निकला तो? मुझे पता है कि तू वही करेगी जो तेरे अंतःकरण को ठीक लगेगा।फिर भी होशियार।’
राजुवेट्टन की बातों में चिंता थी।इस बात को मन में छुपाकर मैंने मणि का मोबाइल नंबर मिलाया।वह एक मशहूर दैनिक अखबार का क्षेत्रीय संवाददाता है।उसके माध्यम से ही मेरा देवेश से परिचय हुआ था।पहले रिंग में ही उसने फोन उठाया।बिना भूमिका के मैंने पूछा -‘मणि, कहां है तू अभी?’
‘मैं अभी शहर में हूँ।दूध, ब्रैड आदि कुछ ज़रूरी सामान खरीदने आई हूँ।क्या हुआ बिंदु दी?’
‘तू शहर के थाने तक मेरे साथ आ सकेगी।सीआई का फोन था।देवेश कुमार है न, वही पायल देवी का पति।अब वह पुलिस हिरासत में है।उसे रिहा करने के लिए दो आदमियों की जमानत चाहिए।एक मैं, और दूसरा तू।मैं निकल पड़ी हूँ।’
‘बिंदु दी, क्या तू सूली पर चढ़ेगी? बुरा वक्त पूछकर नहीं आता।’
‘कुछ नहीं, ऐसा होता तो क्या यामला मैडम हमें बुलातीं।जाकर देखें।कोई झंझट हुआ तो हम पीठ दिखाएंगे।
‘ओके।मैं आ रही हूँ’, मणि ने फोन रखा।
कार पर चढ़ते हुए मैं सोच रही थी कि देवेश कैसे गिरफ्त में आया।
कोरोना के देश में पैर फैलाने के दिनों में, लॉकआउट के दिनों में ही मणि ने मुझे बुलाया था, ‘बिंदु दी, एक मदद चाहिए।एक सनसनीपूर्ण समाचार।एक हिंदीवाले की पत्नी की, अस्पताल का इलाज न मिलने पर ऑटो के अंदर प्रसूति हुई।असलियत जानने के निमित्त उसके पति का नंबर लगाया।लेकिन उसकी हिंदी मेरी पकड़ में नहीं आ रही है।मैंने आपको एक नंबर भेजा है।दीदी, एक बार उसे बुला लें और आवश्यक जानकारी ले लें?’ दफ्तर में कइयों से हिंदी में बातचीत करते हुए मुझे अब हिम्मत आ गई थी कि देवेश कुमार से हिंदी में बात करूं।बातचीत की शुरुआत में ही मैंने बताया था कि समाचार पत्र के लिए बुलाया है।उसे खुशी हुई थी।
देवेश ने बताया, ‘पत्नी पायल देवी को दूसरा बच्चा होने वाला था।वह हमेशा मंगलापुरम में चेकअप के लिए आती थी।मगर कोविड के डर के मारे केरल के सीमांत इलाकों में घेरा बनाकर प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया था।इसलिए प्रसव पीड़ा शुरू होते ही जिला अस्पताल में जाना पड़ा।वहां जाकर पता चला कि यह अस्पताल अब कोविड अस्पताल में तब्दील हो गया है।तब ऑटो में दूसरे निजी अस्पताल में ले जाते वक्त प्रसूति हुई।मां-बेटा दोनों स्वस्थ हैं।हमारा वतन बिहार के जिला मधुबन का बाकुआ गांव है।परिजन और सब के सब दोस्त श्रमिक स्पेशल ट्रेन से गांव लौट गए थे।पत्नी के आसन्न प्रसवकाल के मारे वे लौट नहीं पाए।’
उसके बाद भी मैंने एकाध बार देवेश को फोन लगाया था, वह भी मणि के कहने पर।कुछ बातों पर कठिनाई दूर करने के लिए।
देवेश पहले केरल में पेरुंबावूर में निवास करता था।बिहार से जिस दलाल के ठेके पर वह आया था, उसके निर्देश पर वह मजदूरी करता रहा।अब ठेकेदार बदलते–बदलते वह कासरगोड तक आ पहुंचा था।दो साल बाद एक दुमंजिले मकान से पैर फिसलकर वह गिर पड़ा था।रीढ़ में गहरी चोट लगी थी।और कई दिनों तक वह बिस्तर पर पड़ा रहा थी।फिलहाल वह कठिन मज़दूरी नहीं कर सकता।फ्लैटों में तथा रेसिडेंसियल कॉलोनियों में उसे बहुत काम मिलता।उसकी पत्नी घऱों में काम करती थी।वे साल में एक बार त्योहार में शामिल होने के लिए अपने गांव मधुबनी जाते थे।यूं ही बिना परेशानी से जीवन कटता था।
मुझे जानकारी मिली कि दवेश को केरल का जीवन पसंद है।उसके बाद कई बार उसने गलती से मुझे फोन लगाया था।कभी भूल से डॉक्टर समझ कर चेकअप का समय निकालने को, कभी बच्चे की बीमारी बताने के लिए।मैंने कई बार उसे समझाया कि मैं रेलवे में सेवारत हूँ और रौंग नंबर लगा है आदि।शायद बिहार जानेवाली गाड़ी की सूचना, टिकट की दर, टिकट की उपलब्धता आदि के लिए वह कॉल करने लगा था।मैंने उसे विस्तार से समझाया था।उसकी आवाज में कुछ घबराहट लगी थी, लेकिन अजनबी होने के नाते ज्यादा नहीं पूछा।
अब देवेश को क्या हुआ? पुलिस स्टेशन के सामने गाड़ी खड़ी करके उतरने को था कि मणि पास आ गई।हम दोनों ने एकसाथ पुलिस स्टेशन में प्रवेश किया।सीआई के कमरे के बाहर के बेंच पर बैठा आदमी देवेश होगा, ऐसा हमारा अनुमान था।उसकी आंगिक भाषा वैसी रही थी।दीवार से सटकर, हाथ पीछे की ओर करके, उकडूँ सिर नीचा किए बैठा था वह।निराशा और दुख से लदे बेबसी का भाव उसकी आंखों में झलकता था।तनहाई में गड़े, बीच बीच में अपना नाखून दांत से काटकर बाहर थूकता वह खोया हुआ-सा था
‘मैडम, हम आ गए।यह है मणि, पत्रकार!’
‘मुझे मालूम है।कभी-कभार मिलते भी तो हैं!’
‘मैडम, इस पर क्या बीता है, जरा बताएं।’ मणि बेचैन होकर पूछ बैठी।
‘आज सुबह दो बजने के आसपास पेंशनर्स स्ट्रीट की सड़क पर हमारे नाइट पेट्रोल ने इसे पकड़ा था।उन्होंने कहा कि एक घर के सामने वह गेट के अंदर घूर रहा था।इसलिए चोरी का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले आई।तलाशी की तो उसके हाथ में कोई हथियार नहीं दिखा।एक बोरी हाथ में थी, जो बू से तर थी।इस कारण उसे खोला भी नहीं गया।गंभीरता से पूछताछ की तो उसने सच बताया कि वह उधर के मकानों के सामने कचरा बिखेरने आया था।’
मेरे और मणि के पल्ले कुछ न पड़ा।हम दोनों अविश्वास भरी नज़रों से उसे देखने लगे।
‘जी मैडम, वह ऐसा क्यों करता है, क्या किसी से उसे नफ़रत है?’
पेंशनर्स स्ट्रीट के निवासियों में ज्यादातर लोग दफ्तरों में ऊंचे ओहदे पर काम करके अवकाश ग्रहण के बाद यहां आए हैं।उनकी साझेदारी से यह कस्बा बना है।ठेकेदार द्वारा एक समान वास्तु की आलीशान कोठी बनाकर उनको सुपुर्द किए छह महीने भी नहीं हुए हैं।कई कोठियां अभी भी खाली हैं।यहां रहनेवालों में बुजुर्ग दंपति ज्यादा हैं।उनकी संतानें या तो विदेश में है या भारत के किसी बड़े नगर में बसी हैं।मुझे लगा कि जब वे सेवारत थे, तब देवेश से कोई दुश्मनी मोल ली होगी, जिसका वह प्रतिशोध लेता हो।क्या यह बात है?
‘ऐसा कुछ नहीं है।कुछ दिनों पहले हमें एक शिकायत मिली कि पेंशनर्स स्ट्रीट की कोठियों के सामने रात में कोई कचरा फेंका करता है।सुबह होते-होते घरों के गेट, दीवार और आंगन कचरा और मल से लथपथ दिखाई देते।पहले उनकी शंका आवारा कुत्तों और सियारों पर थी।लेकिन सीसीटीवी चित्रों से पता चला कि यह किसी बदमाश का किया कराया है।उन दिनों पड़ोस की कॉलोनी में रहनेवाले देवेश कुमार के सहारे उनकी सफाई होती थी।
लॉकडाउन के कारण देवेश कुमार की मजदूरी बंद हो गई।उसकी एकमात्र कमाई इस सफाई से होती थी।इसलिए घर जाने के लिए पैसा कमाने का मार्ग यही था।जब महामारी जोरों पर थी, सफाई की धुन सब घरवालों के सिर पर सवार थी।वे देवेश कुमार को मुँहमांगी मजूरी देने लगे थे।उसने कतई नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह रंगे हाथों पकड़ा जाएगा।’
मैडम ने देवेश कुमार को बुलवाया, ‘तुझे मालूम है ये कौन हैं?’
‘नहीं।’
‘ये हैं, मैडम बिंदु।और वह इनकी दोस्त।’ उसकी आंखें खुलीं।हाथ जोड़कर बिनती की- ‘नमस्ते बिंदु मैडम।नमस्ते जी।मैं चोर नहीं हूँ।लेकिन मैंने एक गलती की।उसका मुझे दुख है।चार दिन पहले गांव से फोन आया था।अम्मा सीरियस हैं।मुझसे मिलना चाहती हैं।कोरोना के कारण कोई काम नहीं है।हाथ में पैसा नहीं है।इसलिए मैंने यह गलती की।क्षमा कीजिए।’ उसकी आंखें डबडबाईं।बहते आंसू, सुबकते होंठ, कांपते हाथ हम पल भर भौंचक्के रह गए।हमारी अवस्था देखकर यामला मैडम बोल उठीं।
‘जो कुछ उसने कहा, सच है।हमने उस नंबर को मिलाया जिससे उसे फोन आया था।दो-तीन दिनों से उसका गांव जाने की तैयारी थी।उसी की जांच करने मैडम को यहां बुलाया है।’
मैंने याद किया कि जब उसने मुझे फोन किया था तो बहुत परेशान था।फिर रुद्ध कंठ से देवेश बोलने लगा था-
‘बकुआ गांव में मां और भाई रहते हैं।पिता जी नहीं रहे।मरने के पहले पिता जी की अभिलाषा थी कि मुझसे मिलें।इसीलिए अम्मा के हठ पकड़ने पर मैंने जाने का निर्णय लिया था।सोचा कि नवजात छोटे को मां को दिखा दूँ और आशीर्वाद दिला दूं।पत्नी प्रसव के बाद आराम कर रही थी।इसलिए जाते वक्त पिता जी का साथ भी नहीं दे सका।जब मां की भी तबीयत खराब हुई तो हाथ खाली था।जो मजदूरी थी, वह कोरोना के कारण बंद हो गई थी।कंस्ट्रकश्न साइट पर काम करता था।मैं चोरी या जेबकतरे का काम नहीं कर सकता।इसलिए ऐसा बना-बनाया काम करके पैसा कमाने को सोचा।गलती हुई।अब नहीं करूंगा।मुझे माफ करें।मुझे बचा लें।’ रोते-रोते मेरे पांव पड़ने को बढ़ रहे देवेश को मैंने रोका।
‘डरो मत, मैं कुछ कर सकूंगी तो कर दूंगी।लेकिन ऐसी बुरी बात रिपीट किया तो हम दोनों फँस जाएंगे।क्योंकि हम पर्सनली तुम्हें नहीं जानते।’
‘ऐसा मत बोलिए मैडम जी।मैं ऐसा आदमी नहीं हूँ।मैं कुछ नहीं करूंगा।बीबी और बच्चे घर में हैं।उनको मालूम नहीं कि मैं क्या करता हूँ।प्लीज हेल्प कीजिए मैडम।’
देवेश के मर्मांतक आंसू मन को हिलाने लगे।सीआई ने कहा, ‘वह बेसहारा है, बिहार का है।भूल तो हुई है।पहले सवाल से ही उसका पता चला गया।कोई बुरी नीयत नहीं है।एक काम करें।मैं आपकी ज़मानत पर इसे छोड दूंगी।यह परदेशी है, इसलिए आपको बुलाया है।फोरमालिटीज पूरा करके आप जा सकती हैं।मैं फिर एक बार उसे सावधान करके छोड दूंगीं।’
पुलिस स्टेशन की फोरमालिटीज संपन्न होने पर देवेश को लेकर हम उसके एक कमरे वाले घर पहुंचे।नन्हें बच्चे को गोद में बिठा कर राह देखती उसकी बड़ी लड़की दौड़कर उसके पास आई।खाली हाथ आए पिता जी को देखते ही उसकी आंखें सजल हो गईं। ‘पप्पा, आप खाने का कुछ नहीं ले आए? भूख लगी है।छोटू भी रो रहा है।’
‘भूख के मारे तड़पते बच्चों को देखकर मैं कैसे निश्चिंत होकर घर बैठता।अब तक किसी का दिया दान ही भरोसा था।कैसे दिन आ गए हैं, क्या मुझे चोर या लूटेरा ही बनना पड़ेगा!’ चौखट पर खड़े-खड़े देवेश मुंह छुपाकर रो रहा था।उसकी आवाज़ सुनकर बाहर आई पत्नी की आंखें सजल हो गई थीं।
मणि गाड़ी की पिछली सीट से एक थैली उठा लाई और उसे बच्ची के हाथ में थमा दिया।उस थैली में वही रोटी और ब्रेड थे, जो उसने घर के लिए खरीद रखे थे।जेब से कुछ पैसे निकालकर भी देवेश को दिया।
उसने कहा, ‘आप जाने की तैयारी कीजिए।अगले टिकट मिलने तक आप ठहरिए और चले जाइए।आपकी अम्मा जी के लिए मैं दुआ मांगूंगी।’
वापस घर की तरफ गाड़ी चलाती हुई मुझे लगा कि जितने प्रवासी मज़दूर मैंने देखे हैं, वे सब देवेश के ही प्रतिरूप हैं।हर कोई उत्तर भारत के गांव के स्वप्नों और आकांक्षाओं को लेकर जीत हैं।
पोर्च पर कार खड़ी करते ही मेरा ध्यान आया कि नीड़ का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है।मादा पंछी इंतजार में अकेली बैठी है।नर पंछी कहीं दिखाई नहीं देता।शायद दाना खोजने निकला होगा।पुलिस स्टेशन जाकर देवेश की बेचैनी समझ में आ जाती है।
‘पिता जी से कहो कि कहीं बाहर न निकलें।महामारी का फैलाव गंभीर है।कहीं कुछ गड़बड़ हुआ तो मैं दौड़ा चला आ सकता हूँ, यह तुम्हें उन्हें समझाना पड़ेगा।’ यह कहते हुए राजुवेट्टन के रुंधे हुए गले को मैंने महसूस किया था।मुझे छाती के भीतर तड़प महसूस हुई थी।
हाथ-मुंह धोकर मैं अंदर आई।टीवी पर कुछ प्रवासी मजदूरों पर आरोप लगाकर, आतंकवादियों की गिरफ्तारी का समाचार प्रसारित हो रहा था।
विजयकुमारन सी.पी.वी., ‘कार्तियानी अम्मा स्मारका भवनम’ पोस्ट : कांहांग्दा दक्षिण, वाया : आनंदाश्रम, जिला : कासरगोड–671531 मो.9946678552