बैंक कर्मी। दो पुस्तकें ‘सुनो कौशिकी’ (कविता संग्रह), ‘उनचास का पचास’ (कहानी संग्रह) प्रकाशित।

जो किसी को याद नहीं रखता

तुम अभी भाषा में मुझे नहीं पा सकोगे
क्योंकि मैं जो भी हूँ अभी भाषा में नहीं हूँ
फिर भी तुम बार-बार मुझे वहीं ढूंढते हो
शायद तुम्हें आदत है सबको भाषा में ढूंढने की
अभी भी कोशिश करता हूँ
जब लौटूं भाषा से तो छोड़ आऊं
भाषा में अपने शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श
और भी बहुत कुछ अपना
जो मेरे अस्तित्व को देते हैं आकार और अर्थ
परंतु भाषा को यह स्वीकार नहीं रहा कभी
लौटा ही देती है वह सब-कुछ
और मैं लौट आता हूँ भाषा से
साथ लेकर अपना सब-कुछ
यहाँ तक कि
मेरे पैरों की निशानी भी भाषा में अब नहीं मिलेगी
भाषा उसे अब मिटाना सीख चुकी है
पद-चिह्न का अजायबघर नहीं बनाना चाहती है भाषा
अस्थियों की तो बात ही नहीं है
वहां मेरे नाखून या बाल का छोटा-सा टुकड़ा भी
नहीं मिलेगा तुम्हें
स्तूप या मकबरा बनने से
साफ इनकार कर चुकी है भाषा
भाषा को मूर्तियां पसंद नहीं
इसलिए भाषा के किसी चौराहे पर
मेरी कोई मूर्ति नहीं मिलेगी
भाषा अब वह चौराहा बनना भी नहीं चाहती
जो बनाए जाते हैं सिर्फ मूर्तियों को
खड़ी करने के लिए
फिर भी मुझे नहीं मालूम
तुम क्यों ढूंढते हो मुझे भाषा में
तुम्हें क्यों लगता है
तुम्हें मिल जाएगा वहां मेरा अक्स?
भाषा किसी मठाधीश का कमरा नहीं है
वह सेतु है पृथ्वी और आकाश के बीच।

नया नहीं है मेरे लिए

मेरे लिए नया नहीं है
धनुष की चढ़ी प्रत्यंचा को उतरते देखना
हर दिन बांसुरी की चढ़ती लय के साथ
ध्यानस्थ बुद्ध के ठीक सामने बैठ
चार्वाक को चाय पीते देखना
नया नहीं है मेरे लिए
तुलसी के कमंडल से गंगाजल निकाल
रहीम को बुजू करते देखना तो
बिलकुल नया नहीं है
नया तो होगा
देखना काशी के पंडितों को
पसीने से तर-बतर अपने कुर्ते से
धागे खींच-खींच जनेऊ बनाते हुए
जुलाहे के लिए
नया होगा यह देखना कि
कुछ राजकुमार जाने लगे हैं स्कूल
एकलव्य की मंडली में दिन-भर बैठ
सीख रहे हैं -नया ककहरा
जहाँ दो वर्णों के मेल के बिना
कोई भाषा ही नहीं बनती आदमी की
न ही बनता है सभ्यता का कोई व्याकरण
नया होगा यह देखना कि
इस पार का आदमी
सामनेवाले आदमी की पीठ को
उसकी पीठ ही समझता है
पुल नहीं समझता
उस पार जाने के लिए।

संपर्क: मुख्य प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक, पणजी सचिवालय शाखा, फैजेंडा बिल्डिंग, पणजीगोवा403001 मो.7030654223