मिलान कुंदेरा से क्रिश्चिन सेल्मन की बातचीत
निधन
मिलान कुंदेरा : (1 अप्रैल 1929/11 जुलाई 2023)।
‘पहली रचना के साथ ही मुझे यक़ीन हो गया था कि मैंने ख़ुद को पा लिया है। तब से मेरे (सौंदर्य) बोध ने कोई परिवर्तन नहीं जाना। यह उसी एक लीक पर बढ़ता रहा। आज मैं संतुष्ट हूँ कि मैं एक लेखक, एक उपन्यासकार बना, क्योंकि मैं इसके इतर कुछ नहीं। कुछ भी नहीं!’
उत्तेजक हास्य, राजनीतिक आलोचना और चिंतनपूर्ण लेखन के लिए विश्व प्रसिद्ध, एकांतप्रिय चेक लेखक मिलान कुंदेरा ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखा और वे सराहे गए। किंतु उनके नाम के साथ वैश्विक प्रसिद्धि जोड़ने का कार्य उनके उपन्यासों ने किया। इसमें लेखक अपने किरदारों के जरिए ‘विस्थापन और अकेलेपन’ की त्रासदी के बीच ‘जीवन की, यथार्थ की, सत्य की तलाश’ करता नजर आता है। नाटकीयता से परे एक सरल-सहज तलाश! प्रस्तुत है पेरिस रिव्यू में प्रकाशित उनकी क्रिश्चिन सेल्मन के साथ हुई लंबी बातचीत का अंश। अनुवाद : उपमा ऋचा
यह साक्षात्कार मिलान कुंदेरा के साथ मेरी उन तमाम मुलाकातों का एक हासिल है, जो 1983 के पतझड़ में पेरिस में हुईं। हमारी भेंट उनके घर पर ही होती थी। हम जिस एक छोटे कमरे में बैठकर अपने संवाद को अंजाम देते थे, वह दरअसल कुंदेरा का ऑफिस हुआ करता था। दर्शन और संगीतशास्त्र की किताबों से भरी अलमारियों, पुराने ज़माने के टाइपराइटर और एक साधारण-सी मेज़ वाला यह कमरा एक विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार का कम, किसी छात्र का अधिक लगता था। एक दीवार पर पास-पास दो तस्वीरें झूलती रहती थीं, एक उनके पियानोवादक पिता की और दूसरी चेक कम्पोज़र लिओस जनाचेक की, जिनके वह बड़े प्रशंसक थे।
हमारे बीच फ्रेंच में कई लंबी और खुली चर्चाएँ हुईं। टेपरिकॉर्डर के बजाय हमने टाइपराइटर, कटर और ग्लू का इस्तेमाल किया। कई बार लिखने, लिखे हुए को ख़ारिज़ करने, फिर लिखने और फिर फाड़कर फेंक देने के बाद आख़िर यह पाठ सामने आया।
यह इंटरव्यू कुंदेरा की किताब ‘द अनबीयरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग’ के बेस्ट-सेलर बनने के तुरंत बाद संपन्न हुआ था। (मुझे लगता है) औचक उपलब्धि की तरह मिली इस प्रसिद्धि ने उन्हें किंचित असहज कर दिया था। उस स्थिति में कुंदेरा निश्चित रूप से मैल्कम लॉरी के इस कथन से सहमत रहे होंगे-‘सफलता एक भयानक आपदा की तरह है, जो किसी के घर में आग लगने से भी बदतर है। (क्योंकि) यह आत्मा की जड़ों को खा जाती है।’ किसी एक मौक़े पर, जब मैंने उनसे उनके उपन्यास पर प्रकाशित कुछ टिप्पणियों के बारे में पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘मैंने खुद को ज़रूरत से ज़्यादा सोख लिया है!’
कुंदेरा की अपने बारे में बात न करने की इच्छा अधिकांश आलोचकों की लेखक के कृतित्व के बजाय उसके व्यक्तित्व, राजनीति और निजी जीवन का अध्ययन करने की प्रवृत्ति के ख़िलाफ एक सहज प्रतिक्रिया प्रतीत होती थी। एक स्थान पर ‘ले नोवेल ऑब्ज़र्वेटर’ से बात करते हुए कुंदेरा ने कहा भी है, ‘अपने बारे में बात करने से परहेज या घृणा ही औपन्यासिक प्रतिभा को गीतात्मक प्रतिभा से अलग करती है।’
अपने विषय में बात करने से इंकार करना, प्रकारांतर से साहित्यिक कार्य और शैली को केंद्र में रखने और रचना के कथ्य व तथ्य पर फ़ोकस करने का एक तरीक़ा है। इस विमर्श का उद्देश्य भी यही है, यानी रचना कला पर संवाद करना।
क्रिश्चिन सेल्मन : आपने कहा है कि आप आधुनिक साहित्य के अन्य लेखकों की तुलना में ख़ुद को रॉबर्ट मुसिल और हरमन ब्रोच के अधिक करीब महसूस करते हैं। तो जैसा कि ब्रोच का मानना था कि ‘मनोवैज्ञानिक उपन्यासों’ का युग समाप्त हो गया है। इसके बजाय उन्होंने ‘बहु-ऐतिहासिक’ (poly-historical)) उपन्यास पर भरोसा जताया था। क्या आपका नज़रिया भी यही है?
मिलान कुंदेरा : मुसिल और ब्रोच ने उपन्यास को भारी ज़िम्मेदारियों से भर दिया था। उन्होंने इसे सर्वोच्च बौद्धिक संश्लेष्ण के रूप में देखा, एक अंतिम स्थल जहां मनुष्य अभी भी पूरी दुनिया पर सवाल उठा सकता है। वे आश्वस्त थे कि उपन्यास में इतनी जबरदस्त सिंथेटिक शक्ति होती है कि कविता, कल्पना, दर्शन, सूक्ति और निबंध सभी इस एक में समाहित हो सकते हैं। अपने पत्रों में ब्रोच ने इस मुद्दे पर भी कुछ गहन टिप्पणियां की हैं। तथापि मुझे ऐसा लगता है ‘बहु-ऐतिहासिक’ उपन्यास शब्द का ग़लत ढंग से चयन करके उन्होंने अपने स्वयं के इरादों को अस्पष्ट कर दिया। क्योंकि भूविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, प्राणीशास्त्र, चित्रकला, वास्तुकला आदि के बारे में जानकारियां ठूंस-ठूंसकर भरने की प्रवृत्ति के कारण आमतौर पर इस तरह के उपन्यासों में मनुष्य को अपने साथ, अपनी परिस्थितियों के साथ लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है। इससे एक वैक्यूम क्रिएट होता है। यह उस तत्व के अभाव की ओर संकेत करता है, जिसे उपन्यास कहते हैं। मेरे विचार में, ‘बहु-ऐतिहासिक’ शब्द को ‘अस्तित्व पर प्रकाश डालने के लिए ज्ञान के हर उपकरण और हर रूप को एक साथ एक सतह पर लाने’ के अर्थ में परिभाषित किया जाना चाहिए। हां, मैं ख़ुद को इस तरह के दृष्टिकोण के करीब महसूस करता हूँ।
क्रिश्चिन सेल्मन : एक मैगज़ीन में प्रकाशित अपने एक लंबे निबंध में आप ब्रोच को फिर से खोजने की बात करते हैं और उनकी आलोचना भी करते हैं! बल्कि निबंध के अंत में आपने यहां तक लिखा, ‘सभी महान कार्य (केवल इसलिए क्योंकि वह महान होते हैं) आंशिक रूप से अपूर्ण होते हैं। अधूरे…!’
मिलान कुंदेरा : ब्रोच हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं, केवल इसलिए नहीं कि उन्होंने क्या हासिल किया। बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने क्या तय किया और प्राप्त न कर सके। मेरा मानना है कि उनके (या किसी के भी) कार्यों का अधूरापन हमें नई शैलियों की ज़रूरत को समझने में मदद कर सकता है।
क्रिश्चिन सेल्मन : ‘द बुक ऑफ लाफ़्टर एंड फोर्गेटिंग’ सात भाग में लिखी गई है। आपको नहीं लगता कि आप इस पर किसी दूसरे ढंग से काम करते तो यह सात अलग-अलग उपन्यास बन सकते थे?
मिलान कुंदेरा : लेकिन अगर मैं सात अलग-अलग उपन्यास लिखता तो मैं सबसे महत्वपूर्ण चीज़ खो देता : मैं एक ही किताब में ‘आधुनिक संसार में मानवीय अस्तित्व की जटिलता’ को पकड़ने में कामयाब नहीं हो पाता। साहित्य में ‘Art of ellipsis’(शब्दलोप) का प्रयोग बहुत ज़रूरी है। उसके लिए ज़रूरी है कि व्यक्ति हमेशा अपनी आत्मा की आवाज़ के पीछे चले। इस संबंध में मैं हमेशा चेक कंपोज़र लिओस जनाचेक के बारे में सोचता रहता हूँ। वह आधुनिक संगीत के महानतम गुरुओं में से एक हैं। आज कोई भी कम्प्यूटर के साथ संगीत बना सकता है (लेकिन) जनाचेक का उद्देश्य इसी ‘कम्प्यूटरीकरण’ को तोड़ना था। (शायद उनका मानना था कि) संगीत में केवल उन्हीं ‘नोट्स’ को बने रहने का अधिकार है जिनमें कहने के लिए कुछ हो। उपन्यास के विषय में भी यह बात लगभग सही है। वे भी ‘तकनीक’ से, ‘नियमों’ से घिर चुके हैं, जो लेखक का काम करते हैं, माने पात्र-प्रस्तुतिकरण, परिवेश का वर्णन, एतिहासिक वातावरण में द्वंद्व का चित्रण करना और कथा को निष्प्रयोज्य अध्यायों से भरना। जबकि जनाचेक की तरह मेरा उद्देश्य उपन्यास को इन स्वचालित औपन्यासिक तकनीकों और शब्दों की व्यर्थ कताई से छुटकारा दिलाना है।
क्रिश्चिन सेल्मन : लेकिन सभी का अपना दर्शन होता है और कोई उपन्यासकार अपने उपन्यास में अपने दर्शन को खुलकर और मुखरता से व्यक्त करने के अधिकार से खुद को क्यों वंचित रखना चाहेगा?
मिलान कुंदेरा : क्योंकि उसके पास कोई दर्शन है ही नहीं…। लोग अक्सर चेखव, काफ्का या मुसिल के दर्शन की बात करते हैं, पर ज़रा उनके लेखन में एक सुसंगत, स्पष्ट फ़िलोसोफी खोजने का प्रयास कीजिए! बल्कि जब वे अपने विचारों को अपनी नोटबुक में व्यक्त करते हैं, तो वे विचार किसी दर्शन के दावे के बजाय विरोधाभासों के साथ खेलने या सुधार करने वाले बौद्धिक अभ्यास के समान होते हैं। और जो दार्शनिक उपन्यास लिखते हैं, वे ऐसे छद्म उपन्यासकार हैं जो केवल अपने विचारों को चित्रित करने के लिए उपन्यास के पैरहन का उपयोग करते हैं। न तो वोल्तेयर और न ही कामू ने कभी ‘उस चीज़ की खोज की, जिसे केवल उपन्यास ही खोज सकते हैं।’ मैं केवल एक अपवाद के बारे में जानता हूँ, और वह है ‘डाइडरॉट ऑफ जैक्स ले फेटलिस्ट’। क्या चमत्कार है कि उपन्यास की सीमा पार कर एक गंभीर दार्शनिक एक चंचल विचारक बन जाता है और वो भी इतनी सरलता से। उपन्यास में एक भी गंभीर वाक्य नहीं है – मानो सब कुछ एक नाटक है, एक प्रहसन! इसीलिए इस उपन्यास को फ्रांस में अत्यधिक कम महत्व दिया गया है। दरअसल, ‘जैक्स ले फेटलिस्ट’ में वह सब कुछ शामिल है जो फ्रांस ने खोया है और उसे पुनर्प्राप्त करने से इंकार कर दिया है। फ़्रांस में कार्यों की अपेक्षा विचारों को प्राथमिकता दी जाती है। ‘जैक्स ले फेटलिस्ट’ को विचारों की भाषा में अनूदित नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे ‘विचारों की जमीन’ पर खड़े होकर समझा भी नहीं जा सकता है।
क्रिश्चिन सेल्मन : ‘द जोक’ (The Joke) में संगीतशास्त्रीय सिद्धांत विकसित करने वाला पात्र जरोस्लाव है। इस प्रकार उसकी सोच का काल्पनिक पक्ष स्पष्ट है। लेकिन ‘द बुक ऑफ लाफ़्टर एंड फोर्गेटिंग’ में संगीत-संबंधी चिंतन लेखक का, आपका अपना है। ऐसे में यह कैसे समझा जाए कि वह काल्पनिक है या निश्चयात्मक?
मिलान कुंदेरा : यह सब सुर पर निर्भर करता है। पहले शब्द से ही, मेरा इरादा इन प्रतिबिंबों को एक चंचल, व्यंग्यात्मक, उत्तेजक, प्रयोगात्मक या प्रश्नवाचक स्वर देना होता है। ‘द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग’ के सभी छह भाग जिस मुख्य विषय को उजागर करते हैं, वह है : गंदगी के अस्तित्व का पूर्ण खंडन। यह मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसे काफी हद तक विचार, अनुभव, अध्ययन और जुनून पर आधारित कहा जा सकता है। हालांकि सुर कभी गंभीर नहीं हुआ, लेकिन यह उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त है। यह निबंध ‘उपन्यास’ के बाहर अकल्पनीय है, यह विशुद्ध औपन्यासिक चिंतन है।
क्रिश्चिन सेल्मन : आपके उपन्यासों की बहुध्वनि में एक सुर ‘स्वप्न’ का भी है। ‘लाइफ़ इज़ एल्सवेयर’ का पूरा उत्तरांश इसने घेर रखा है। ‘द बुक ऑफ लाफ़्टर एंड फोर्गेटिंग’ के मूल में यही है और ‘द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग’ में टेरेज़ा के सपने के जरिए पूरे कथ्य में इसी की प्रतिश्रुति सुनाई देती है। क्यों?
मिलान कुंदेरा : इन अंशों को ग़लत समझ जाना सबसे आसान है, क्योंकि लोग अक्सर इनमें कुछ प्रतीकात्मक संदेश ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं। टेरेज़ा के सपनों में समझने लायक कुछ भी नहीं है। वे मृत्यु गीत भर हैं। अंत की कविताएं… उनका अर्थ उनकी सुंदरता में निहित है, जो टेरेज़ा को सम्मोहित करती है। वैसे, क्या आपको एहसास है कि लोग काफ्का को पढ़ने का तरीक़ा नहीं जानते, जबकि वे उसे समझना चाहते हैं? वे खुद को उसकी अप्रतिम कल्पना में बह जाने देने के बजाय, वे रूपकों की तलाश करते हैं और घिसी-पिटी बातों के अलावा कुछ लेकर नहीं लौटते : जीवन बेतुका है (या यह बेतुका नहीं है), ईश्वर पहुंच से परे है (या पहुंच के भीतर है), वगैरह-वगैरह। आप कला, विशेषकर आधुनिक कला के बारे में कुछ भी नहीं समझ सकते, यदि आप यह नहीं समझते कि कल्पना अपने आप में एक मूल्य है। नोवालिस जब सपनों की प्रशंसा करता है, तो इस बात को जानता है। वह कहता है, ‘वे हमें जीवन की एकरसता से बचाते हैं’ और ‘अपने खेल के आनंद से हमें गंभीरता से मुक्त करते हैं।’ वह सबसे पहले यह समझने वाले व्यक्ति थे कि उपन्यास में सपने और स्वप्न जैसी कल्पना की क्या भूमिका हो सकती है। उनकी इच्छा एक ऐसी कथा लिखने की थी, जिसमें स्वप्न और सत्य एक दूसरे से इस तरह से जुड़े हों कि कोई भी उन्हें अलग नहीं बता पाए। सौ साल बाद काफ्का ने उनकी महत्वाकांक्षा पूरी की। उन्होंने अपने उपन्यासों में स्वप्न और वास्तविकता का मिश्रण किया; अर्थात वे न तो पूरी तरह स्वप्न थे और न ही पूर्ण वास्तविकता। यह एक क्रांति थी। एक सौंदर्यपरक चमत्कार! निःसंदेह, उन्होंने जो किया उसे कोई दोहरा नहीं सकता। लेकिन मैं उनके साथ और नोवालिस के साथ सपनों और सपनों की कल्पना को उपन्यास में लाने की इच्छा साझा कर सकता हूं। ऐसा करने की मेरी अपनी शैली है। मेरा अपना तरीका है। जहां सपने और वास्तविकता के मिश्रण के बजाय बहुध्वनिक टकराव है। मेरे लिए स्वप्न-कथा प्रतिवाद के तत्वों में से एक है।
क्रिश्चिन सेल्मन : मुझे इस तथ्य ने काफी चकित किया कि एक को छोड़कर आपके बाक़ी सभी उपन्यास सात भागों में बंटे हैं?
मिलान कुंदेरा : …मैं जादुई संख्याओं से जुड़े किसी अंधविश्वासपूर्ण भ्रम में नहीं पड़ रहा हूँ, न ही कोई तर्कसंगत गणना कर रहा हूँ। बल्कि मैं एक गहरी, अचेतन, समझ से परे की आवश्यकता और एक औपचारिक आदर्श से प्रेरित हूँ जिससे मैं बच नहीं सकता। मेरे सभी उपन्यास सात संख्या पर आधारित वास्तुकला के भिन्न रूप हैं। इसपर बस इतना ही।
क्रिश्चिन सेल्मन : आपके उपन्यासों के सभी भाग अपने भीतर एक अलग संसार को समेटे होते हैं, जो दूसरे से बिल्कुल अलग होता है। तो उन भागों को अध्यायों में क्यों बांटा गया है?
मिलान कुंदेरा : क्योंकि हर अध्याय की अपनी भी एक छोटी-सी दुनिया होनी चाहिए। उन्हें अपेक्षाकृत स्वतंत्र होना चाहिए। यही कारण है कि मैं अपने प्रकाशकों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करता रहता हूं कि संख्याएं स्पष्ट रूप से दिखाई दें और अध्याय अच्छी तरह से अलग हो जाएं। मेरे लिए अध्याय एक संगीत स्कोर के माप की तरह हैं, जहां हर अध्याय अलग-अलग संगीतमय गति संकेत दे।
…दरअसल मेरे जीवन की एकमात्र महत्वाकांक्षा प्रश्न की गंभीरता को शैलीगत सरलता के साथ जोड़ने की रही है। यह विशुद्ध रूप से कोई कलात्मक महत्वाकांक्षा नहीं है। एक चंचल शैली और एक गंभीर विषय का हमारा नाट्य-संयोजन (जो सब हमारे बिस्तरों पर घटित होते हैं और साथ ही वे सब भी जो इतिहास के महान मंच पर खेले जाते हैं) की सच्चाई और भयावह सारहीनता को तुरंत उजागर कर देता है। यह एक अलग तरह का अनुभव है। ‘अस्तित्व के असहनीय रूप से भारहीन’ हो जाने का अनुभव!
मेरे लिए शीर्षक भी विनिमेय मात्र हैं, वे उन विषयों को दर्शाते हैं जो मुझ पर हावी हैं, मुझे परिभाषित और (दुर्भाग्य से) प्रतिबंधित करते हैं। इन विषयों के अलावा मेरे पास कहने या लिखने के लिए और कुछ नहीं है।
क्रिश्चिन सेल्मन : क्या इन आदर्शों के बाहर भी कोई कुंदेरा है (या हो सकता है)?
मिलान कुंदेरा : मैं हमेशा किसी बड़े अप्रत्याशित विश्वासघात का सपना देखता हूँ। लेकिन मैं अभी भी दोहरेपन से उबर नहीं पाया हूँ!
उपमा ऋचा युवा कवयित्री, लेखिका और अनुवादक। पुस्तक ‘एक थी इंदिरा’ (इंदिरा गांधी की जीवनी)। ‘वागर्थ’ की ऑनलाइन मल्टीमीडिया संपादक।upma.vagarth@gmail.com |