(1959 नॉर्वे)। नोबल साहित्य पुरस्कार 2023 से सम्मानित कवि, उपन्यासकार और नाटककार।

एक इंसान

यहां एक इंसान होता है
और फिर गुम हो जाता है एक ऐसी हवा में
जो मिटती जाती है अंदर ही अंदर
और जा मिलता है चट्टानों की गति से
और फिर
एक सन्नाटे में
क्या होता है
क्या नहीं
के निरंतर योग में
अर्थ बनकर आकार लेता है
जहां
जो कुछ भी हुआ
उसकी खोई हुई लय में
हवा
‘हवा’ बन जाती है
और अर्थ
‘अर्थ’
और फिर फौरन एक बीज
जहां
शब्द के द्वारा अपने ही टुकड़े करने से पहले
ध्वनि; अर्थ को थामा
और तब से कभी हमें अकेला नहीं छोड़ा
लेकिन
यह अतीत के हर काल में है
और भविष्य के हर पल में
और यह उसमें भी है
जो नहीं है
जो था
और जो होगा के बीच
गुम होती अपनी सीमाओं में
यह असीम और अलगाव रहित है
उसी लय में
यह प्रकट होता है
और अदृश्य हो जाता है
यह होने के बाद भी नहीं होता
और होता है न होने बाद भी
और जब यह बात करता है
अपनी चुप्पियों की
यह रोशन करता है
अपने अंधेरे
यह कहीं नहीं है
यह हर कहीं है
यह निकट है
यह दूर है
देह और आत्मा मिलते हैं वहां
एक होकर
और यह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है
यह इतना बड़ा है
जैसे सब कुछ यही है
और इतना छोटा
कि जैसे कुछ भी नहीं
और जहां सब ज्ञान है
और कोई कुछ नहीं जानता
अपने अंतरतम में
जहां कुछ भी अलग नहीं
और एक ही समय में
सबकुछ अपने में समाहित है
और बाक़ी सबकुछ
उन खंडों में है
जो अंतहीन सीमाओं में
खंडित नहीं
जिस तरह मैंने उसे गुम हो जाने दिया
स्पष्ट उपस्थिति में
लुप्त गति में
और टहलता रहा दिन में
जहां
पेड़ ‘पेड़’ हैं
चट्टान ‘चट्टान’
और हवा ‘हवा’
जहां शब्दों का एक असंगत
अतुलनीय योग है
उसके
जो कुछ भी हुआ
उसके
जो कुछ भी हो रहा है
और उसके
जो कुछ भी गुम हो जाता है
और इस प्रकार
मैत्रीपूर्ण शब्दों के रूप में छूट जाता है।

पर्वत अपनी सांसें रोक लेते हैं

वहां एक गहरी सांस उठी थी कभी
और फिर वहां एक पर्वत खड़ा हो गया
फिर वहां पर्वत खड़े होते गए
खड़े होते गए
और झुके
नीचे
और नीचे की ओर
अपने आप में
और रोक ली अपनी सांसें
(हां) जब समंदर और आकाश
टकराते और प्रहार करते हैं
तब पर्वत रोक कर रखते हैं
अपनी सांसें।

अंग्रेजी में अनुवाद : मेब्रिट अकरहोल्ट