(२७ अक्टूबर, १९३२ – ११ फरवरी, १९६३)

एक टिप्पणी कवि एवं कविता के बारे में : पूर्णतावादी अमरीकी लेखिका सिल्विया प्लाथ मध्यमवर्गी माता-पिता की संतान थीं। उन्होंने उपन्यास और कहानियों भी लिखीं, किंतु वे एक संवेदनशील कवयित्री के रूप में अधिक सराही गईं। मुख्यत: आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई उनकी कविताओं को कई आलोचक मध्य-सदी में अमरीकन-पोएट्री में आए ‘कन्फेशनल टर्न’ या इकबालिया बयान के रूप में देखते हैं, जहां रचनाकार चाक्षुष सत्य से अधिक अनुभूत सत्य को कहने में विश्वास रखता है।

फरवरी 1963 में अपनी मृत्यु (जो दरअसल एक आत्महत्या थी) से कुछ महीने पहले सिल्विया प्लाथ ‘रचनात्मक ऊर्जा के विस्फोट’ की स्थिति में थीं। इसके चलते उन्होंने तमाम छोटी-बड़ी कविताएं लिखीं। अक्तूबर 1962 में लिखी गई कविता ‘लेडी-लैजरस’ भी उन्हीं में से एक है, जो उनके मरणोपरांत प्रकाशित काव्य संग्रह ‘एरियल’ में प्रकाशित हुई। आत्महत्या की ओर प्रवृत्त एक तीस वर्षीय महिला पर केंद्रित यह कविता सिल्विया की लेखन शैली का बेहतरीन उदाहरण मानी जाती है। इसमें उन्होंने जीवन के विचलित करने वाले अनुभवों और सचाइयों को इस तरह बयान किया है कि सीधी-सरल भाषा होने के बावजूद अर्थ कहीं बहुत मारक हैं, तो कहीं बहुत गूढ़।

उल्लेखनीय है कि यद्यपि यह कविता अपना शीर्षक ‘न्यू टेस्टामेंट’ में वर्णित पात्र लैजरस (जिसे यीशु ने ‘ईश्वरीय कृपा और करुणा में विश्वास की स्थापना के लिए’ मृतकों में से पुनर्जीवित किया था) से साझा करती है, तथापि सिल्विया की ‘लेडी लैजरस’ का बार-बार मृत्यु को छूकर लौटने का अनुभव, यीशु के ‘लैजरस’ के लौटने से काफी अलग है। इसके सुर बाइबिल की कथा की तरह उत्सव-प्रधान न होकर त्रासद हैं, करुण हैं और मार्मिक हैं। 

आज चारों ओर से जिस तरह की ख़बरें आ रही हैं, जिस तरह दिनों-दिन आत्महत्या का ग्राफ बढ़ता जा रहा है, वहां यह कविता और अधिक प्रासंगिक हो जाती है, क्योंकि जब कहीं से पीड़ा उभती है तो वहीं उसके कारण और समाधान के सुराग भी लिख जाते हैं। लेकिन प्रश्न यही है कि क्या हम तैयार हैं उस लिखे को बांचने के लिए? आइए, इसी प्रश्न के साथ पढ़ते हैं गहन प्रतीकात्मक कविता ‘लेडी लैजरस’!

मैंने फिर से वही काम किया
जिसे मैं हर दस में से एक साल में
कर ही डालती हूँ-
एक चलता-फिरता चमत्कार
मेरी त्वचा
जैसे एक चमकता हुआ नाज़ी लैंपशेड
मेरा दायां पैर
जैसे एक पेपरवेट
मेरा चेहरा
जैसे खो गई हो इसकी हर पहचान
और ये उम्दा यहूदी लिनन।*

सुनो मेरे दुश्मन जान
मेरे ऊपर से यह कपड़ा हटा दो।
(देखो! देखो!) क्या मैं तुम्हें डराती हूँ?-
ये नाक, आंखों के गड्ढे,
एक से एक सटी दांतों की कतार?
खट्टी सांस
सब एक दिन में गायब हो जाएंगी

जल्द, बहुत जल्द मेरे मांस को
कब्र की गुफ़ा खा जाएगी
और मेरा घर बन जाएगी
(पर मैं कौन हूँ)
मैं हूँ हमेशा मुस्काने वाली स्त्री!
मैं बस तीस की हूँ
पर बिल्ली की तरह मेरे पास मरने के नौ मौके हैं।

यह तीसरा मौका था
हुंह हर दशक को नष्ट करने के लिए
कितना कूड़ा-करकट!
कितनी नसें, कितने रेशे, कितने तार!!!

मूंगफली तोड़ती भीड़
घुस आती है तमाशा देखने के लिए
मेरे हाथ और पैर उघाड़ देती है
कपड़ों को चीर-फाड़ देती है
देवियों-सज्जनों की भीड़!

(अरे) ये मेरे ही हाथ हैं
ये मेरे पांव!
हालांकि मैं हाड़-मांस भर हूँ
फिर भी; मैं स्त्री हूँ
वही स्त्री जो मैं इस काम को अंजाम देने से पहले हुआ करती थी

पहली बार जब यह हुआ, मैं दस साल की थी
पर वह एक हादसा था
दूसरी बार में मेरा इरादा
इसे अंतिम सत्य बनाने
और कभी वापस न आने का था

किसी सीप की तरह
मैंने (अपनी आत्मा को) पूरी ताक़त से
भीतर समेट लिया
वे मुझे बार-बार पुकारते
और उठाते
मेरे ऊपर से चिपचिपे मोतियों जैसे कीड़े…

सुनो मेरे दुश्मन जान
बाक़ी तमाम चीज़ों की तरह
मरना भी एक कला है
(और) मैं एक माहिर कलाकार

मैं यह काम करती रहती हूँ
इसलिए यह नरक जैसा लगता है
मैं यह काम करती रहती हूँ
इसलिए यह (नरक) सच्चा लगता है
मुझे लगता है आप कह सकते हैं
कि मृत्यु मुझे पुकारती है

एक बंद कोठरी में यह काम करना आसान है
वाक़ई आसान है यह करना और वहीं टिके रहना

(लेकिन देखो) एक प्रशस्त दिन में नाटकीय वापसी
वापसी उसी जगह, उसी चेहरे और उसी पाशविक आनंद से भरी चीख़ में :
जो मुझे बेचैन कर देती है
चमत्कार! चमत्कार! चमत्कार!

सुनो मेरे दुश्मन जान
मेरे घाव, मेरे दाग देखने की एक कीमत है
कीमत है मेरे दिल की आवाज सुनने की
कि (क्या) यह सचमुच चलता है

और कहूँ तो
मेरे एक शब्द
एक स्पर्श
ख़ून की एक बूंद
बालों की एक लट और कपड़े के टुकड़े की भी क़ीमत है, बहुत भारी क़ीमत!

पर सुनो मेरे वैद्य
मेरे दुश्मन जान
मैं तुम्हारी ही रचना हूँ
तुम्हारा गहना
एक निखालिस सोने से गढ़ी संतान
मैं एक चीख़ से पिघल जाती हूँ
मैं मुड़ती हूं, जल जाती हूँ
मुझे नहीं लगता
कि मैं कमतर करके आंकती हूँ
तुम्हारे इरादे और तुम्हारी चिंताएं

आह राख़! राख़! बस राख़!
तुम धक्का दो, उकसाओ या हिलाओ
हड्डी और मांस के अलावा कुछ नहीं वहां
मैं जानती हूँ तुम मेरी राख में ढूंढते हो
साबुन की एक टिकिया**
शादी की अंगूठी
या बचा हुआ सोना
पर मेरे वैद्य
मेरे दुश्मन जान
खबरदार!
सावधान!
अपने रक्तिम बालों के साथ
मैं अपनी राख़ से उठूंगी
और तमाम मर्दों को ले उड़ूंगी…।

 

*कहते हैं कि लैजरस को क़ब्र में ले जाने से पहले यहूदी लिनन में लपेटा गया था। यह बिंब वहीं से लिया गया है।
** मान्यता है कि नाजी मृतक के अवशेषों से साबुन की टिकिया बनाते थे। यहां उसी का संकेत है।

 

उपमा ऋचा
युवा कवयित्री
, लेखिका और अनुवादक।सात महत्वपूर्ण साहित्यिक एवं ऐतिहासिक कृतियों का हिंदी अनुवादमौलिक पुस्तक एक थी इंदिरा’ (इंदिरा गांधी की जीवनी)