छत्तीसगढ़ी और हिंदी, दोनों भाषाओं में लेखन।  दो कविता संग्रह, तीन यात्रा संस्मरण, एक खंड काव्य और तीन समीक्षा की पुस्तकें।

सगोतिया

बस्तर की औरतें नहीं जानतीं
गाजा की बात
नहीं मालूम उन्हें कहां है गाजा और
कैसे हैं वहां के लोग
फिर भी जब कभी मिलेंगी वेे
चीन्ह लेंगी उन औरतों को
दौड़ कर लिपट जाएंगी उनसे और
रो पड़ेंगी गोहार पारकर

उनकी सूनी कोख और सूना मन
सिसक उठेगा एक साथ
दुख चीन्ह ही लेता है
अपने सगोतिया को
हां सगोतिया ही तो हैं
बस्तर और गाजा की औरतें।

कोसमसरा की औरतें

अब जंगल नहीं रहे उनके अपने
वहां तो है उनका राज
जिन्होंने लिया है ठेका जंगलों का
सूखी लकड़ियों टपकते महुए
चार और तेंदू पर भी
नहीं रहा उनका अधिकार
जंगल उनके संगी हैं
तभी वे जाती हैं जंगल
बीनती हैं महुआ

मगर महुए की गंध में बिंधी औरतें
चौंक उठी थीं उस दिन
सहम गईं वे
अचानक हुए उस आक्रमण से
समझ नहीं पाई थीं कि
आखिर क्या है उनका अपराध
अपने ही जंगल में पीटी जा रही थीं वे
और शहर मना रहा था
नारी सशक्तिकरण का त्योहार
कदम कदम टंगे थे
सशक्तिकरण के पोस्टर
जिनपर प्रश्नचिह्न बनकर
लटक रही थीं कोसमसरा की औरतें।

संपर्क : ए २१ स्टील सिटी, अवन्ती विहार, रायपुर४९२००६, छत्तीसगढ़  मो.९८९३२९४२४८