युवा कवयित्री।संप्रति अध्ययन।
मैं उतनी ही नहीं हूँ
जितना तुम
मुझे जानते हो
चंद्रमा के न दिखने वाले
हिस्से की तरह
आधी मैं अदृश्य हूँ
हवाओं के साथ बहती हूँ
रोशनी के हर क़तरे में घुलती हूँ
पेड़ों से गिरे पत्तों की तरह बीतती हूँ
फिर लौट आती हूँ
नए पल्लवों में
अंधेरे में घुलती हूँ
आधी उजाले में
आधी अंधेरे में मिलती हूँ
मैं उतनी ही नहीं हूँ
जितना तुम
मुझे जानते हो
मुझमें मेरा बहुत कुछ है
जो बिन जाना
बिन कहा
बिन समझा ही रह जाएगा।
संपर्क सूत्र : महिला पुलिस थाना, जी-2 पुलिस लाइन,चुरू-331001 (राजस्थान) , मो. 6376970803
किसी को भी जानना इतना आसान नहीं है।