वरिष्ठ डोगरी साहित्यकार और फिल्मकर।हिंदी एवं उर्दू में भी लेखन।लगभग तीस पुस्तकें प्रकाशित।अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित। |
कविता
कविता नहीं है
किसी न्यायाधीश का फैसला
वह किसी अधिवक्ता की
दलील भी नहीं
न ही किसी गवाह की गवाही है
कविता तो उस गुनहगार की
आंख से गिरा अश्रु है
जिसे ज्ञान नहीं कि
उससे गुनाह हुआ कैसे?
अमूल्य
दिन
हर रोज
मेरी उम्र का एक हिस्सा चुरा ले जाता रहा-
पर आज मैंने उससे
अपनी एक अमूल्य वस्तु
छीन ही ली
मैंने आज एक कविता लिख ली!
प्रतिबिंब
स्थापित हो चुकी धारणाओं को
मैंने सत्यापित नहीं किया
मैंने स्थापित सत्य की
उधेड़ी है सीवन
और अपने अस्तित्व को
आईना दिखाया है
कविता का प्रतिबिंब
कभी झूठ नहीं कहता।
आंतरिक ताप
भीतर धधकती आग से
भाव की लपटें
अंगारे बन निकल रही हैं कविताएं
तड़तड़ा रही हैं कविताएं
आंतरिक तपिश कभी घटती नहीं
अटूट क्रम कभी थमता नहीं।
जिंदगी
थक-हारकर उसने स्वयं को
जिंदगी के हवाले कर दिया
जिंदगी ने वस्त्र उतारे, और
उसके समक्ष निर्वस्त्र खड़ी हो गई
उसे वस्त्ररहित देख
वह घबरा गया
बेतहाशा भाग निकला वहां से
सहसा ठोकर लगने से
वह गिर पड़ा
जिंदगी खिलखिलाकर हँसने लगी
उसके निकट आकर बोली :
‘मुझसे भाग कर कहां जाओगे?
मैं ही आर हूँ, मैं ही पार हूँ!’
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