वरिष्ठ कवि और कथाकार।दस कविता संग्रह, दो गीत संग्रह, चार कहानी संग्रह, एक उपन्यास सहित विविघ विधाओं में दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित।दो दैनिक पत्रों के संपादन से संबद्ध।

आज की तारीख में कविता

१.
जंगल जब उजाड़ हो रहे हों
और शहर में दौड़ रहे हों अजगर
दूसरों के हक और ईमान को निगलते हुए
पहरेदारों पर बेईमान बंदूकें तनी हों
और बहेलिए मेमनों के शिकार में जुटे हों
प्रार्थनाओं में उठे हुए हाथ कुंदों से
कुचले जा रहे हों
और प्रेम ग्रंथ के पन्नों पर शैतानी इबारतें
लिखी जा रही हों
ऐसे में क्या किया जाए
जब हर नटवर लाल
सत्यनिष्ठा की दुहाई में मुस्तैद हो
अब शब्द गुलेलों की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं
भाषा सियासी मुहावरों की टकसाल बन रही है
ऐसे उजाड़ मौसम में कविता
करुणा की पुकार नहीं बन सकती
उसे अपनी सुरक्षा की फिक्र सताने लगी है।

२.
वे कुछ और दिन थे
जब शिकार से लौट कर हमारे पुरखे
कुत्ते को भी हिस्सा देना याद रखते थे
वह स्वर्ण युग मायावी हिरन की तरह
कुलांचे भरता हुआ ओझल हो गया है
जब क्रौंच पंछी की आहत पुकार पर
कवि ने लिखी थी संवेदना में पगी कविता
इतिहास के अगले मोड़ पर
कपिलवस्तु से विरक्त एक राजकुमार
बोधिवृक्ष के नीचे
जीवन के अर्थ खोजने पहुंचा था
कभी एक राजा ने आत्मा की पुकार पर
जंगी तलवारों को अलविदा कहा था!
आज का समय मिथ को सच
पुराण कथा को इतिहास
और खंडहर को पुरातत्व का दर्जा देकर
अपनी विरासत के जयकारे लगा रहा है
दूसरे को अधम और अपने को उत्तम
बताने की होड़ चहुंओर लगी है
इस दौर में शब्द अपने अर्थ खो रहे हैं
कुतर्कों के नर्क में तर्क, गर्क हो रहे हैं।

३.
इस मीना बाजार में
आदमी कबाड़ की तरह पड़ा है
उसकी आस्थाएं जिंस की तरह
तराजू पर रख दी गई हैं
कबीर की साखी का अर्थांतर हुआ
और नए संतों की सोच में लोच है
तमाम सार्वजनिक जगहें
सियासी पंडालों से भर गई हैं
ऊंची जगहें गिरगिटी रंगों से पटी हैं
वक्त के इस नाजुक दौर में
अमन के फरिश्ते शांतिभंग के जुर्म में
सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं
फिलहाल इस मुकाम पर
मौजूद हैं जो तीन पीढ़ियां
वे चढ़ रही हैं अपनी अलग सीढ़ियां
दादा को भाती है पुरखों की सीधी-सादी राह
बेटे को कुचली निष्ठाओं ने किया है तबाह
पोते की चुनौती है अबूझ दलदल की थाह
चक्रव्यूह में घिरा है इंद्रप्रस्थ
कुरुक्षेत्र में मारक औजारों से लैस हैं
अभिमन्यु के परिजन-भद्रजन!
लेकिन ये तीर और तलवारें
पहली बार नहीं निकली हैं
गुमसुम सदियां बिछी हैं
कविता के रास्ते पर।

खंडित तानपुरे की संगत

छोटे शहर के खपड़ैल मकान में
अपने पूर्वजों की मेज-कुर्सी पर बैठ
किताबों में देखा-पढ़ा है
बर्फ का विराट संग्रहालय
वह हिमालय है
हमारे ठंढे मिजाज और सर्द खून का गवाह
कि सदियों से हम मुर्दों की भूमिका
ताउम्र जी रहे हैं
जबकि पूरे महादेश पर
अमावस की स्याह रात घिरती जा रही है
शुभ्र संवेदनाओं की सतह पर
कंटक वन के झाड़ उगाती हुई

सियासी महलों में अतिथि गृह सुसज्जित हैं
सम्राटों के कीर्तिगान अभिलेखों में संरक्षित हैं
सभागारों में वीर गाथाएं सुलिखित हैं
मनीषियों के पौराणिक प्रसंग सुभाषित हैं
ज्ञान-विज्ञान के संदर्भ ग्रंथ
पुस्तकालयों के सूची पत्र में उपस्थित हैं
क्रमबद्ध उपभोक्ता भंडारों की तरह
मगर जनगण के लिए कोई सुप्रबंध
सुरक्षित नहीं दिखती कहीं

नगर की पॉश कॉलोनियां
गरीब देश की दबी-कुचली काया में
चरक के दाग की तरह पसर रही हैं
गांव के मजबूत मकानों में
तनी लाठियों पर रंगारंग झंडे टंगे हैं
पूरे तंत्र पर मक्कार-फरेबी-धूर्तों का
कुटिल शिकंजा कस गया है
पहिए के नीचे की जमीन के लिए
कोई टुकड़ा साबुत नहीं बचा कहीं

हमें खुशी होती
अपने महान राष्ट्र के जयघोष में
स्वस्थ तन-मन से शरीक हो कर
लेकिन रुंधे गले और बलगमी छाती से
नहीं फूटती कोई ऊर्जस्वी धुन
संगीत जब रुदन बन जाए तो
कातर स्वर कमजोर हो जाते हैं।

इतिहास और मैं

कोई रथ सदियों पीछे छूट गया है
उसके पहियों की घरघराहट
अब भी गूंज रही है
मैं प्रत्यंचा से छूटे तीर की तरह
अपने पिछले पड़ाव पर
तरकस को छोड़ आया हूँ
समूची इतिहास-यात्रा
विद्युती आवेश से गतिशील है

मैं विगत का अवशेष
अनागत का पिता हूँ
काल के त्रिपार्श्वों पर
अनेक संस्कृतियों के रंग फलक
देख चुका मैं
बारूदी धमाकों का एक बवंडर
अभी-अभी आंखों से गुजरा है
पूरे देशकाल में
एक जंगी तनाव कस गया है
बाहर कर्फ्यू आदेश
और मृत्युभीत सन्नाटा है
जगह-जगह कैम्पों में
हथियारबंद फौजी हैं
प्रतीक्षित हैं कमांडरी हुक्मनामे
शवों की जलती सड़ांध तारी है
फिजां में
ध्वंसों की चिता जल रही है

इस दौड़ में विकलांग हो चुकी हैं
अनेक सभ्यताएं
किसी युद्ध में किसी के नाम
कोई पुरस्कार नहीं होता
उत्तेजित बौखलाहट में तप कर
विवेक व्यर्थ जलता है!
उजाड़ के खंडहर में
धराशायी संस्कृतियां
पुरातत्व के अवशेष रह जाती हैं
इतिहास के पिरामिड में
कई राष्ट्रीय कांक्षाओं के ताबूत
बंद हैं
कोई यान बहुत आगे निकल चुका है
मैं जेट के धुएं-सा पीछे रह गया हूँ।

संपर्क :द्वारा श्री नीरज कुमार, गेट नंबर १, सरला बिरला यूनिवर्सिटी कैंपस,महिलौंग, टाटीसिलवे, रांची८३५१०३/ मो.९९५५१६१४२२