दो कविता संग्रह ‘है यहाँ भी जल’ और ‘लिखना कि जैसे आग’। जयपुर में प्रशासनिक अधिकारी।

1-अग्निपाखी
कई-कई बार टूटता है कवि
कई-कई बार आबाद होती है दुनिया
कई-कई बार खाली होता है कवि भीतर से
कई-कई बार सरसब्ज होता दुनिया का आंचल
जब चमकदार नजर आता है धरती का चेहरा
अपनी कविता की आग में जलकर तब
भस्मीभूत होता है कोई कवि
रचना की बारिश में
उसी सनातन राख से फिर
हो जाता वह प्रज्वलित
जिस तरह
युग-युगांतर से अपनी ही राख से
बारिश में दुबारा आंखें खोलता है अग्निपाखी1
- कथा है कि अग्निपाखी जब गाता है तो उसके मुंह से ज्वाला निकलती है जिसमें वह खुद राख हो जाता है। फिर बारिश होती है तो वह अपनी ही राख से दुबारा जन्म ले लेता है।
कुछ लोग पेशेवर तरीके से सत्य का करते विरोध
कुछ लोग सत्य को नष्टप्रायः करने पर तुल जाते
ताकि संकट खड़ा हो मानवता के सामने
कुछ लोग पालते-पोसते उसे
झूठ की घेराबंदियों के भीतर
ताकि उनके सिंहासन महफूज रहें
कुछ लोग सत्य की ताकत हैं पहचानते
मगर सत्य के
महज सत्य होने भर के प्रकोप से भयातुर
उनके कदम यदा-कदा लड़खड़ा जाते
फिर भी थोड़े से पक्षधर लोग
सत्य को जीना चाहते हैं हर पल
उसके मधुर पराग को बूंद-बूंद पीना
स्वयं सत्यमेव हो जाना
जब से इन कुछ लोगों का चला है जिक्र
तब से सल्तनत ढूंढ रही है उनका पता
हुक्मरान की नींद औ’चैन बदस्तूर गायब है।
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