युवा कवि। ताइवान के शिनचू शहर में खगोल विज्ञान में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो।
क्या हुआ होगा उन भाषाओं का
जिन्हें बोलने वाले लोग
करते गए पलायन
और अपने नए ठिकाने पर
बोलने लगे नई स्थानीय भाषा
छोड़ते गए अपनी मां बोली को
पिछड़ेपन की निशानी समझ कर
छोड़ते रहने की इस पुनरावृत्ति ने
लील लिया कितनी ही ज़िंदा भाषाओं को
संभव है
उन्हीं में से कुछ भाषाओं में लिखी गई हों
सबसे सुंदर कविताएं
और साहित्य की अनसुनी विधाओं में रचनाएं
दोपहर की नींद से उठकर
बोले गए हो दांपत्य के सबसे प्रेमिल शब्द
संभव है
हम लिख रहे हों कहीं कमतर
भौतिक शास्त्र के किसी वितरण के ग्राफ की चोटी
गई हो कट, उस भाषा के खो जाने से
और हम रचनात्मक सपाट पर चल रहे हों
या चढ़ रहे हों छोटी-मोटी चोटियाँ
जबकि किसी शिलालेख पर उकेरी लकीरें
तामीर हों कवित्व के उपेक्षित शिखर की
विलुप्त हो गई भाषाओं में से
शायद बच गई हो कोई एकाध
गुप्त भाषा
जिसका इस्तेमाल करते हों सैनिक
कोडेड संदेश भेजने के लिए
युद्ध पर जाने से पहले प्रेयसी को
उसी भाषा का गीत सुनाता हो सैनिक
बिना समझाए उसका मतलब
(सेना की गोपनीयता की शर्त के चलते)
जिसे वह समझती हो
कुछ रहस्यमय अगड़म बगड़म
और सहानुभूति रखती हो
उसके झक्कीपन से
फिर भी अम्लान पुष्प* वाली कहानी की तरह
विलुप्त भाषा के गीत रहते हों उसके साथ
इस तरह सेना के दायरे से बाहर
प्रेमिकाओं के मन में
हिलोरें मारती हो
एक खो गई भाषा
रूमानी अगड़म बगड़म बनकर।
*अम्लान पुष्प मेरे बचपन में पढ़ी ‘राजस्थान पत्रिका’ में प्रकाशित एक चित्रकथा थी। इस कहानी में युवतियां पति के बाहर जाने पर एक फूल को साथ रखती हैं जो अम्लान रहकर इस बात का प्रमाण देता है कि उनका पति जीवित और उनके प्रति वफादार है।
संपर्क: पोस्ट डाक्टरल फेलो/ रूम नं 522, जनरल बिल्डिंग-2 नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी नं 101, सेक्शन 2, ग्वांग-फु रोड शिनचू, ताइवान, 30013 फ़ोन: +886978064930