विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। संप्रति : झारखंड के सहकारिता विभाग में कार्यरत।
बुज़ुर्ग डाकिये से भेंट
ऐसी तेज़ होती बारिश में
तक़रीबन पच्चीस सालों के बाद वे मिलेंगे
यह हैरत होती है सोच कर
वे मिले मुझे एक दवाई की दुकान पर
बारिश की बौछारों से बचते हुए
बरसों देखे गए उस चेहरे को
भूलना असंभव था
आप यहां कैसे?
रोमांच और थोड़े संकोच से
भरते हुए मैंने पूछा
बहुत मोटे चश्मे के शीशे से झांकते हुए
उन्होंने मुझे ताका
और एकाएक आ गई मुस्कान के साथ
कहा कि पहचान में अब दिक्कत होती है
आप विनय हैं न नोनीहाट वाले!
पहचान लेने की ख़ुशी
उनके चेहरे पर पसर गई थी
अपने कपड़े का झोला संभालकर
कंधे पर चढ़ाते हुए
उन्होंने मेरे दोनों हाथ थाम लिए
यहां डॉक्टर को दिखाने आए थे
सांस बहुत फूलती है अब
क्या आप यहीं रहते हैं गोड्डा में?
अपनी रौ में बोले जा रहे थे
अपनी जात का डॉक्टर है
पर रहम नहीं है जरा भी
ग़रीबों से भी पूरी फीस लेता है
हां, अब ऐसा ही है, मैंने कहा-
अधिकांश डॉक्टर अब किसी को नहीं पहचानते!
फिर मन में कहा
वे सिर्फ अब पैसे को पहचानते हैं
मनुष्य को नहीं पहचानते!
अब तो दवा कंपनियां ही
उनकी रिश्तेदार हैं!
फिर उन्होंने इस शहर तक पहुंचने की
तकलीफ़ों का ज़िक्र किया
वह कुछ-कुछ बोले जा रहे थे
जैसे कुछ बुज़ुर्ग अनवरत बोलते जाते हैं
इस बीच पास खड़े उनके बेटे ने कहा
दोपहर की दवाइयां खा लीजिए
समय हो गया है
मैं अपने इलाक़े के उस
डाकिये को याद कर रहा था
जो उस समय तक़रीबन
चालीस-पैंतालीस का रहा होगा
प्रायः रोज ही आते थे मेरी डाक लेकर
सुस्ताते थे हमारी बैठक में
मां उन्हें चाय पानी के लिए पूछती थी
अचानक उन्होंने मेरे परिवार के बारे में पूछा
और कहा कि कितने बच्चे हैं आपके
वे कहां पढ़ते हैं
मां कैसी हैं
मैंने जब कहा कि मां अब नहीं रहीं
उनको गए आठ साल हो गए
तो आह! बोलते हुए दुख की कौंध
उनके चेहरे पर फैल गई
उन्होंने आकाश की ओर हाथ जोड़ते हुए
मृत आत्मा को याद किया
फ़िर कहा कि नोनीहाट की पोस्टिंग अच्छी थी
अच्छे लोग मिले वहां
आपका घर हमें कभी दूसरे का घर नहीं लगा
एक बार अपने गांव की
आखिरी बस छूट जाने के बाद
मेरे घर उन्होंने रात गुजारी थी
इस प्रसंग को थोड़े भरे स्वर में
उन्होंने दो बार दुहराया
हमें इस बात का पता नहीं था!
अपने रिटायरमेंट के बाद
अपने गांव की पैतृक जमीन पर
आम के डेढ़ सौ पौधों का एक बगीचा
उन्होंने लगाया था
यह बताते हुए बेहद खुश दिखे वे
मेहनत करनी पड़ती है विनय बाबू
लेकिन ढाई-तीन लाख सालाना
आ जाते हैं आम से
कितनी तरलता आश्वस्ति और संतोष दिखा
अपने उस आम के बगीचे के लिए
उनकी आंखें कह रही थीं कि
उन्होंने बड़ा काम कर दिया है
अगली कई पीढ़ियों के लिए!
फिर एक बेटे का ज़िक्र किया
जो बीएसएफ में सिपाही है
बस उसकी चिंता लगी रहती है
गहरी सांस भरते हुए वे कह रहे थे
समय अब पहले की तरह नहीं रहा
अब बहुत खराब होता जा रहा है
और यह छोटा वाला
यहीं गांव में दुकानदारी करता है
सब अच्छा चल रहा है विनय बाबू
कोई दिक्कत नहीं है
वे सजल हो रहे थे
हल्के कांपते हुए दोनों हाथ उन्होंने
मेरे कंधे पर रखे और
भावुक होते हुए कहा कि कभी आइए
हमारे घर आम के दिनों में
एकाएक दवाई दुकानदार से
मुखातिब होकर कहने लगे –
ये नोनीहाट के हैं
हम पहले नोनीहाट में नौकरी करते थे
ये कवि लेखक हैं!
यह सब सुनकर मैं झेंप रहा था
और दुकानदार का चेहरा
अच्छा-अच्छा कहते हुए
हल्की मुस्कराहट से भरा था
इस समय मैं किसी और मनोदशा में था
उनकी बातें सुनते हुए
एक कोलाज का बनना शुरू हो गया था
जैसे मेरे भीतर!
जैसे आधे-पौन घंटे की फ़िल्म चल रही थी
और मैं उसके भीतर था
उनके झुर्रियों से भर रहे
इन्हीं हाथों ने
हजारों चिट्ठियां पत्रिकाएं किताबें मनीआर्डर
मेरे घर पहुंचाए थे कभी!
अब तो कोई चिट्ठी नहीं आती!
इलाक़े का डाकिया कौन है
बरसों से नहीं जान पाया!
हमने बारिश के बीच
एक छोटी-सी झोपड़ी में साथ चाय पी
उन्होंने अपनी नौकरी के दिनों
और नोनीहाट के बहुत से लोगों को याद किया
और भर आईं आंखों को
बार-बार पोंछते रहे
चाय पीते हुए उन्होंने फिर कहा
आम के मौसम में आपका इंतजार रहेगा!
मुझे लगा कि आम का बगीचा
उनका स्वप्न था
जिसे वे सबके साथ बांटना चाहते थे
बारिश थम रही थी
उन्होंने मेरे हाथों पर अपना हाथ रखा
और जाने की इजाज़त चाही
स्टार्ट होती मोटरसाइकिल के
पीछे संभल कर बैठते हुए
आदतन उन्होंने नमस्कार किया
बारिश की हल्की होती बूंदों के बीच
मैंने नज़रों से ओझल होते देखा
अपने प्यारे डाकिया शंकर साह को!
संपर्क :पोस्ट नोनीहाट, दुमका, झारखंड-814145 मो.9431944937